लेख

निस्पृह समाजशील अधिकारी – राजेशजी कावले

यवतमाल की नगर परिषद नं. 7 स्कूल की भाले सर जब भी इतिहास विषय पढ़ाने लगते हैं, तब तल्लीन हो जाते थे. छत्रपति शिवाजी महाराज, स्वामिनिष्ठ तानाजी मालुसरे, वीर मावले, बचपन में ही मोगली सत्ता को दिया गया धक्का, किल्ले बनाने के लिये बनाये गये दांव, जान न्यौछावर करने वाले साथी, जन्मभूमि की अस्मिता के लिये जान की परवाह न करते हुए किये गये पराक्रम. सभी मानो रोमांचित करने वाले सहपाठी बालमित्र राजू काले, संजय मुले, महेश जोशी,अनिल गंजीवाले,महेश देशपांडे, सुधीर घनवटे, कोंडाणा मुहिम के मावले,सर की क्लास यानि नखशीख विरश्री का संचार, घंटों खत्म होने के बाद भी असर कायम, मित्रों के साथ गिल्ली डंडा, खो-खो, कबड्डी, क्रिकेट खेलते समय सांघिक भावना के साथ देशभक्ति की लगन लगती थी. महापुरुषों का व्यक्तित्व, दूरदृष्टि, सहजीवन सहकार, समाजभान और मनुष्य मन को मोहित करता था. इन संस्कारों से बचपन में ही समाजशील वृत्ति का बीजारोपण हुआ व आगे उम्रभर विस्तारित होते गया.
उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम सैनिक नारायणराव अत्यंत शिस्तप्रिय थे. शासन की ओर से एक समिति में राज्यमंत्री पद को समकक्ष सदस्यत्व दिया गया. लेकिन देशसेवा सर्वतोपरी, तत्वों से कोई तालमेल नहीं. मेहनत करने पर जो मिलता है उससे संसार का पहिया खीचतें थे. मां रत्नाबाई के लिये पिता का शब्द प्रमाण, यानि सभी भाई बहन संगीता, अरुणा, शुभांगी व छोटा भाई मंगेश सभी शिस्त प्रिय थे. प्रत्येेक को वास्तविकता का भान होने से परिवार के सभी समाधानी और आनंदी थे.
अमोलकचंद कनिष्ठ महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते समय प्राचार्य पेशवे व प्रा. शंकरराव सांगले का व्यक्तित्व उन्हें अच्छा लगा. पदवीं व पदव्युत्तर शिक्षा यदि दाते महाविद्यालय के पूरी की फिर भी इन शिक्षकद्वयों का स्नेह लगातार वृद्धिंगत होते गया. राष्ट्रीय सेवा योजना व नेहरु युवा केंद्र के शिविर से तो इन शिक्षकों ने समाजकार्य की एक निरपेक्ष दृष्टि दी. साथ ही गुरुवर्य न.मा.जोशी व प्रा. सु.ल. देशपांडे की प्रेरणा तथा मित्रवर्य उदय तातड, सुनील व्यवहारे, मनोज रायचुरा, बाबा जयस्वाल व महेन्द्र सोरते की समर्थ साथ अभिनव उपक्रम चलाते समय पूरी तरह साथ में रहती थी. शिक्षा ग्रहण करते समय वर्ष 1981 में दारुबंदी विभाग पुणे में सिनेमा ऑपरेटर के रुप में नौकरी मिली. गांव-देहात, झोपड़पट्टियां, कामगार बस्तियां, पिछड़ावर्गीय बस्ती, शाला, आश्रमशाला आदि स्थानों पर जाकर दारुबंदी बाबत पिक्चर दिखाते थे. व्यसनमुक्ति के लिए समुपदेशन करते थे. इस उपक्रम से समाज के सुख-दुख की करीब से अनुभूति हुई. समाज को अपना समझकर प्रबोधन करने की कितनी आवश्यकता है, इस बारे में ज्ञात हुआ. उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी के साथ ही सही मायने में समाज कार्य किया.
स्वीकारी गई जिम्मेदारी पूरी करने के साथ ही नियमित अभ्यास शुरु था. अगले चरण की परीक्षा में सफलता मिली और जिला दारुबंदी अधिकारी के रुप में यवतमाल में नियुक्ति हुई, काम की जिम्मेदारी बढ़ी. कर्म ही पूजा यह ब्रीद जीवन में अंगिकार किये जाने से काम से मिलने वाला आनंद उत्तरोत्तर बढ़ते ही गया. दरमियान दो से चार हाथ हो गये. प्रविणाताई सहचारिणी के रुप में उनके साथ आयी. उन्हें राधिका व जुईका नामक दो बेटियां है. संसार के साथ ही सभी ने समाजसेवा को मनोभाव से स्वीकारा जिससे सेवाकार्य अधिक गतिमान हुआ. शासकीय नौकरी कहा जाये तो बदली आयी ही. अलग-अलग लोग मिलते गये. प्रत्येक से कुछ न कुछ सीखने मिला. मित्र प्रभाकर पत्की, दिनकर शेटे व अंबादास तावरेनी, निलेश पारवेकर एवं मदन येरावार ने वरिष्ठों के साथ शिष्टाचार सिखाकर व्यक्तित्व अधिक समझदार करने में मदद की.
औरंगाबाद में रहते समय एक घटना घटी, महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण होने का रिजल्ट आया. परिवार के सभी खुश थे. तभी अचानक रसोई घर में गैस सिलेंडर का विस्फोट हुआ. अचानक आनंद दहशत में परिवर्तित हो गया. परिवार की हानि हुई.
नौकरी के लिये वे विदर्भ के यवतमाल, चंद्रपुर, अकोला, वाशिम जिले में काम करने का अवसर मिला. लेकिन उनका दिल लगा तो अमरावती जिले के मेलघाट यह सातपुड़ा पर्वत की वनसंपदा व आदिवासी परंपरा ने ओतप्रोत भूभाग में. गुुुरुवर्य शंकरराव सांगले के माध्यम से रासेयो परिवार के प्राचार्य भा. वा. चोखंडे, लोकशाहीर ज्ञानेश्वर रोंगरे, विद्यापीठ रासेयो समन्वयक डॉ. दिलीप काले, प्रा. डॉ. पी.आर. राजपूत, प्रा. अंबादास मोहिते, गुरुवर्य डॉ. के.एम. कुलकर्णी, डॉ. एकनाथ तट्टे, डॉ. काशिनाथ बर्‍हाटे, कामगार कल्याण अधिकारी पुरुषोत्तम इखार, डॉ. प्रमोद भिसे, संमोेहन तज्ञ नवनाथ गायकवाड़, रमेश क्षीरसागर, राजेश पिदडी, राजेन्द्र पाटील से मुलाकात हुई. आदिवासी बांधवों के प्रश्नों बाबत सभी संवेदनशील होने के कारण शीघ्र ही काम की दिशा ठहरायी गई. दारुबंदी सप्ताह निमित्त व्यसनमुक्ति अभियान चलाया गया. गांव-गांव से लोकशाहीर ज्ञानेश्वर रोंगरे के नेतृत्व वाला लोकजागर शुरु हुआ. अल्पावधि में ही रोंगरे महाराज से तालमेल बढ़ने पर युवाजागर के कलाकार प्रकाश गणवीर, देवेन्द्र भुयार, संजय मैदानकर, अनिल राऊत, समीर देशमुख, संदीप भटकर, प्रफुल्ल गवई, संजय गाडेकर, चंदू पाखरे, शशी गवई, विलास चोपडे, अजय वाघ, प्रवीण दिवे, अंजु डोंगरे, अशोक वानखडे, सुनील बनसोड, कल्पना भुयार, उमाकांत कांबले, प्रमोद गायकी, लोककलाकार झिंगुबाई बोलके, कैलास पेंढारकर, राजेन्द्र भूडेकर,गौतम गुडधे के कलापथक, भजन, गीत गायन,लघुनाटिका ने संपूर्ण मेलघाट गूंजायमान कर दिया. निस्पृह रुप से किये गये कार्यों की दखल कुलगुरु, आयुक्त, जिलाधिकारी व सेवाभावी राजनीतिक नेताओं ने ली.
महाविद्यालयीन युवक-युवतियों को व्यसनमुक्ति बाबत जागरुक करने की आवश्यकता को देखते हुए रासेयो, दारुबंदी व कामगार कल्याण विभाग की एक अच्छी टीम होने के कारण अभि यान का ध्यान सहज होने वाला, लेकिन मुख्य दिक्कत यह थी कि रासेयो विभाग के पास स्वतंत्र वाहन नहीं था. वाहन मिलना या न मिलना वरिष्ठों की मर्जी पर अवलंबित था. समस्या कोई भी हो काम करने वाले मार्ग अवश्यक निकालते हैं. जहां चाह वहां राह. कुलगुरु व आयुक्त के सामने समस्या रखी गई, तुरंत हल भी की गई, कुलगुरु ने जिला दारुबंदी व कामगार कल्याण अधिकारियों के कार्योें की जरुरत विद्यापीठ परिक्षेत्र के विद्यार्थियों को होने का पत्र दिया व आयुक्त ने इन अधिकारियों को निर्देशित क्षेत्र में उनके विभाग के वाहन ले जाने की अनुमति दी. जिससे काम पूरा हुआ.
विद्यापीठ रासेयो, दारुबंदी व कामगार कल्याण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ज्ञानेश्वर रोंगरे महाराज व प्रकाश गणवीर के नेतृत्व में लोकजागर व युवाजागर कार्यक्रमों से पश्चिम विदर्भ के पांच जिलों में किये गये कार्य आज दो दशक के बाद भी जनसामान्यों की स्मृति में जीवित है. इस अभियान की दखल राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर ली गई व अनेक पुरस्कार विद्यापीठ ने हासिल किये. सब कुछ ठीकठाक शुरु रहते अचानक एक दिन सरकार ने दारुबंदी विभाग बंद करने के आदेश दिये. जिस विभाग ने दारु के विरोध में जनजागृति अभियान चलाया वहां के अधिकारी व कर्मचारियों को आबकारी विभाग में समकक्ष पद पर समाविष्ट कर उन्हें शराब बिक्री की यंत्रणा पर ही देखरेख करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
काम का स्वरुप बदला फिर भी सेवाभाव केंद्र स्थान कायम. शासन के आबकारी विभाग में प्रथम सहायक अधीक्षक और स्वकर्तृत्व सिध्दी से अधीक्षक राज्य उत्पादन शुल्क के रुप में पदोन्नति. इससेवा में कार्य करते समय हिंगोली, धुलेे, नगर, औरंगाबाद, सांगली, कोल्हापुर, अकोला, वाशिम जिले के लिकर माफिया के खिलाफ चलाये गये अमियान में कई करोड़ का शासन का डुबा हुआ महसूल वसूल किया.
जीवन के सफर में कई करीबी मित्र चले गये. कभी साथ में सेवाकार्य करने वालों की यादें. मित्रों में विशेषतः लोकजागरकार ज्ञानेश्वर रोंगरे महाराज व युवाजागरकार प्रकाश गणवीर का जाना हृदय पर जख्म कर गया. उनके परिवार की अवहेलना न हो इसके लिये उन्हें सर्वोतोपरि मदद की. कई कलाकार साथियों व बेरोजगार युवक-युवतियों को अपने पैरों पर खड़ा किया. वैश्विक महामारी के समय तो कई जरुरतमंदों को जीवनावश्यक वस्तुओं का वितरण किया.
ऐसे निष्ठावान, कार्यतत्पर व समाजशील अधिकारी राजेश कावले अपने औपचारिक सेवानिवृत्ति के समय दो वर्षों से अमरावती जिले में निष्ठा से काम कर रहे हैं. आज भी मेलघाट की स्मृति को उजाला देते समय आदिवासी बांधवों के प्रति प्रेम हृदय में उमड़ पड़ता है व उनकी आंखों में अलग ही भावसंवेदना उभरती ह ै. रासेयो के आजी-माजी समन्वयक, स्वयंसेवक, कार्यक्रम अधिकारी, कर्मचारी, प्राचार्य उन्हें आग्रह से शिविर में प्रबोधन के लिये ले जाते हैं और उनकी पसंद का उंगलियों से हाथों पर विशिष्ट प्रकार का लयबध्द कंपन निर्माण कर बारिश होने की ध्वनि निर्माण करने के लिये कहते हैं और आनंद लेते हैं.
राजेशजी को निरामय स्वास्थ्य सहित समृध्द संपन्न पारिवारिक व सामाजिक सुख प्राप्त हो, यहीं सदिच्छा!
– प्रा. डॉ. पी.आर.राजपूत, अमरावती

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