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जल विहार- उत्सव

हर आनंद और उत्साह की अभिव्यक्ति त्यौहारों से हुई है, जो भारत में प्रसंगानुकुल पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं. भारत कृषि प्रधान देश है तथा भारत के हर तीज त्यौहार कृषि और प्रकृति सौंदर्य से जुड़े हुए है जो भारत के हर राज्य में प्रसंगानुकुल समय-समय पर पूर्ण उत्साह के साथ मनाया करते है.
जलविहार और होली का पर्व प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत है. भारत में त्यौहारों का आगमन वर्षागमन के साथ शुरु हो जाता है जो वर्षभर चलते रहते है. (चैत्र मास से फाल्गुन मास तक) जिसका समारोप वसंत ऋतु के होली हास्य व्यंग विनोदी त्यौहारों के साथ होता है. यह विशेष है. जल विहार यह बुंदेली पर्व प्रकृती सौंदर्य व धार्मिक प्रसंग से ओतप्रोत आनंद और उत्साह का पर्व है जो समस्त बुंदेलखंड में पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
वर्षा आगमन से चारों ओर का वातावरण मन को प्रफुल्लित करने वाला होता है,चारों ओर हरियाली छा जाती है,पेड़ पौधे,पुष्पों से आच्छादीत हो जाते हैं.खेत-खलिहानों में फसलें उगने लग जाती है,जो जल विहार,नौकायान के लिए आमंत्रित करते हैं.इस दरमियान जल विहार का पर्व मन को प्रफुल्लित करने वाला होता है. भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त नगरवासियों के साथ यमुना तट पर आनंदोत्सव मनाया था, जो परस्पर स्नेह सुत्र में बांधने वाला प्रसंग था, जो भक्त और भगवान के बीच प्रेम-स्नेह की एक कड़ी बनी थी. विशेष यह है कि कृष्ण ने एक ओर जन्म के समय यमुना को दिए गए वर की वचन पूर्ति की थी तो दूसरी ओर जन-जन के साथ जल विहार कर आनंदोत्सव मनाने का अनूपम कार्य किया था. इसी पावन प्रसंग को बुंदेलिओं ने अंगीकार किया और जल विहार मनाने लगे, तथा इस प्रसंग को लोक पर्व के रुप अपनाने लगे.
जल विहार का धार्मिक स्वरुप – भारत के सभी तीज त्यौहार धार्मिक प्रसंगों से जुडे हुए हैं. जल विहार पर्व भी पूर्ण धार्मिकता के साथ जुडा हुआ व प्रकृति सौंदर्य से ओतप्रोत त्यौहार है.
एक कथा – कंस के बढ़ते अत्याचार से जनजन को मुक्ति दिलाने भगवान विष्णु ने बाल कृष्ण के रुप में अवतार लिया था. जहां कंस के अत्याचार से पीडित वसुदेवजी व देवकी कारागृह में बंदीस्त थे, भाद्रपद की अष्टमी को भगवान विष्णु बाल कृष्ण के रुप में अवतरीत हुए. देवकी व वासुदेवजी बंधनमुक्त हुए. कंस ने अपने काल (मृत्यु) से डरकर उन्हें बंदीस्त किया था, क्योंकि देवकी व वासुदेव के गर्भ से उत्पन्न होने वाला पुत्र कंस का काल बनेगा.
अवतरित बाल कृष्ण को कंस से बचाने, बाल कृष्ण को (चंगेर) टोकरी में (सुप में) रखकर कंस के कारागृह से निकल पड़े नंदग्राम की ओर (सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने). रास्ते में यमुना नदी पडी जो अथाह जल से परिपूर्ण थी. वसुदेवजी को पार करना असंभव सा लग रहा था वें भयभीत थे.
यमुनाजी (नदी) को आभास कृष्ण के अवतरण का – दूसरी ओर यमुनाजी को आभास हो गया था कि, भगवान विष्णु बाल कृष्ण के रुप में अवतरीत हुए है, क्यूं न उनके पावन चरणों को चुमकर कृतार्थ हो जाऊ जो सौभाग्य से चलकर आया है. अत: इसी अभिलाषा के तहत यमुनाजी ने अपना जलस्तर कम कर लिया ताकि वसुदेवजी यमुना में सहजता के साथ प्रवेश कर सके.
बाल कृष्णजी के साथ वसुदेवजी ने यमुना नदी में प्रवेश किया। वे जैसे-जैसे आगे बढते जाते थे यमुनाजी अपना जलस्तर बढाते जाती थी। ताकि वे बाल कृष्ण के पावन चरणों को चुम सके, इसी अभिलाषा के तहत जलस्तर बढाते गयी तथा जल वसुदेवजी के वक्षस्थल तक आ पहुंचा, वे भयभित हुए. अवतरीत बाल कृष्ण यमुनाजी की अभिलाषा से परिचीत थे, अत: कृष्ण ने अपना दाया पैर चंगेर (सुप से) लटका दिया ताकि यमुना अपनी अभिलाषा पूर्ण कर सके.
यमुनाजी ने भगवान के पावन चरणों को चूमा और एक वर भी मांग लिया. जिस प्रकार आपने आज मुझे कृतार्थ किया है, उसी तरह यौवनावस्था मेें भी मेरे तट पर आकर जल विहार कर आनंदोत्सव मनावे. मेरा भी गंगा के समान महत्व बना रहे, कृष्ण ने तथास्तु कहा, यमुनाजी ने जलस्तर कम कर वसुदेवजी का रास्ता सुगम किया और वे सुरक्षित स्थान नंदग्राम पहुंच गये.
बाल कृष्णजी ने यमुना को दिए गये वर के अनुरुप यमुना का महत्व बढाने बाल्यावस्था में यमुनाजी को ही क्रीडा स्थली बनाई थी व सुकी नाग को भी मोक्ष प्रदान किया था.
कंस के अत्याचार से मुक्ति- युवावस्था में भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध कर जन-जन को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई व सिंहासनारुढ़ हुए. जन-जन में खुशियां छायी थी.
वचनपूर्ति- एक दिन भगवान कृष्ण को जन्म के समय यमुनाजी को दिए गए वर की याद आई. तब उन्होंने विदुरजी से आग्रह किया कि आमसभा का आयोजन किया जाये, जिसमें सभी ग्रामवासियों का समावेश हो. उन्हें आदरपूर्वक आमंत्रित किया जाये.जिसके अनुसार भाद्रपद की बारस को आमसभा ली गई तथा भगवान कृष्ण ने यमुना तट पर जाकर जल विहार और आनंदोत्सव मनाने का निश्चय किया तथा निर्धारित तिथि के दिन सभी ग्रामवासी महिला, पुरुष, बालवृंद सहित सभी सज सवरकर कृष्ण दरबार में उपस्थित हुए. भगवान कृष्ण भी राधा सहित पूर्ण रुप से श्रृंगारित होकर रथारुढ़ हुए यमुना तट जाने के लिए. सभी नगरवासी नाचते गाते वाद्य वृंदों के साथ निकल पड़े यमुना तट की ओर. प्रकृति भी अपनी पूर्ण निखार पर थी. सुरम्य आनंददायी वातावरण से सभी में उत्साह का संचार कर रही थी. सभी प्रकृति के आनंद से सराबोर होकर बढ़ रहे थे यमुना तट की ओर.
आनंदोत्सव-यमुना तट पर पहुंचकर भगवान कृष्ण ने जल में विहार किया. आम जनता ने तट पर आनंदोत्सव मनाया. कितना पावन प्रसंग था कि भगवान के साथ जन-जन ने आनंदोत्सव मनाया. जो परस्पर स्नेह की पावन कड़ी बनी. स्नेह भोज प्रसाद का आनंद लुटकर ग्रामवासी लौट पड़े. इसी पावन प्रसंग को बुंदेलियों ने चुना तथा जल विहार मनाने लगे.
एक ओर भगवान श्री कृष्ण ने यमुुनाजी को दिए वर की वचनपूर्ति की तो दूसरी ओर समस्त ग्रामवासियों सह यमुना तट पर आनंदोत्सव मनाया था.
इसी पावन प्रसंग के तहत समस्त बुंदेलखंड में जलविहार मनाया जाने लगा. इस दिन समस्त ग्रामवासी सज धजकर भगवान की प्रतिमा को श्रृंगारित कर वाद्य वृंद भजन कीर्तन के साथ-साथ जल विहार करने लगे. जहां नदिया है वहां नदियों पर, जहां तालाब है वहां तालाबों पर जाकर जल विहार रस्म अदा करते हैं. पूजा अर्चना कर आनंदोत्सव मनाते हैं. प्रसाद वितरित करते हैं. झुमते गाते हर्षोल्लास के साथ वापस लौटते हैं.
अमरावती का जल विहार उत्सव- अमरावती शहर में बुंदेलियों की बहुतायत है.अतः अमरावती शहर में भी जल विहार उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.विशेष यह भी है कि यह पर्व गणेशोत्सव के मध्य में आता है जो महाराष्ट्र का लोक पर्व उत्सव है.साथ ही बुंदेलियों का भी लोकपर्व, उत्सव है. जल विहार इस दिन अमरावती शहर में दो जल विहार शोभा यात्राएं निकलती है. जो भव्य रुप में धार्मिक झांकियों, राष्ट्रीय झांकियों के साथ सामयिक दृश्यों के साथ लोकनृत्य, दिंडी, लेझीम व वाद्य वृंदों के साथ निकलती है तथा अंबा नदी पर जाकर जल विहार रस्म अदा की जाती है. भगवान श्री कृष्ण की मुल प्रतिमा (उत्सव प्रतिमा नहीं) सह श्रृंगारित रथ पर नदी तट पर जाते हैं.पूजा-अर्चना के साथ प्रसाद वितरीत कर आनंदोत्सव मनाते हैं.इस अवसर पर शहर के प्रमुख मार्गों पर प्रसाद,जलपान की व्यवस्था की जाती है. आतिषबाजी होती है. इस समय अमरावती में विशेष चहल-पहल रहती है.गणेश उत्सव व जल विहार का दूधशर्करा का योग रहता है इस दिन.
– कुसुम भारत साहू, उपमहापौर, महानगरपालिका अमरावती

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