दिन दुखीओं के दाता संत जलाराम
सौराष्ट्र गुजरात के संत पुरुष जलाराम बाप्पा एक सामान्य मानव होते हुए भी अपने श्रेष्ठ कार्य एवं आदर्शी भाव से पूजे जाते हैं. अपना समस्त जीवन एक साधारण गृहस्थ की तरह जीते हुए भी उन्होंने मानव सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित किया. भक्त जलाराम का जन्म संवत १८५६ को कार्तिक शु्नल सप्तमी को राजकोट के वीरपुर गाव में हुआ था. उनके पिता प्रधान ठक्कर तथा माता राजबाई धार्मिक संस्कारों वाली महिला थीं, जिसका प्रभाव जलाराम पर भी हुआ. बाल्यावस्था में उनकी भेंट गिरनार पर्वत के एक संत से हुई. उसके बाद से तो जलाराम के मन में भक्ति की धारा फूट पडी. १६ वर्ष की अवस्था में अनिच्छापूर्वक उनका विवाह विरबाई से हुआ. पत्नी ने धर्म पालन में किसी भी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं की. इनकी दयालु प्रवृत्ति और दानशीलता का कभी शी विरोध नहीं किया. उनके पिता ने साधु-संतों को इस तरह दान करना सामथ्र्य के बाहर बताया, तो वे अपनी पत्नी को लेकर घर से निकल पडे. वहां अपने काका के यहां दुकानदारी के साथ-साथ इस कर्म में भी लगे रहे. एक दिन तो जलाराम ने दस-बारह साधुओं को दान में न केवल आठ-दस गज बडे थान से कपडा काटकर दे दिये, वरन उन्हें भोजन भी करवाया. दुकान से आटा, दाल, घी भी दिया. रास्ते में काका ने दान देते हुए जलाराम की गठरी को देखकर पूछा: इसमें क्या है? भयवश उन्होंने कह दिया: इसमें उपले और पानी है. काका ने खोलकर देखा, तो उपले और पानी ही निकला. काका से अलग होकर पत्नी के साथ मेहनत-मजदूरी करने लगे. निजी संपत्ति न होने के बाद भी दान-दक्षिणा का कर्म चलती रहा. एक महात्मा ने जब उनके अन्न बांटने की परोपकार वृत्ति के बारे में सुना, तो उन्हें आशीर्वाद दिया, किंतु कुछ दिनों बाद जमा किया गया अन्न बांटने की परोपकार वृत्ति के बारे में सुना, तो उन्हें आशीर्वाद दिया, किंतु कुछ दिनों बाद जमा किया गया अन्न घटने लगा, तो उनकी पत्नी ने अपने आभूषण उतारकर दे दिये. इसके बाद तो अन्य क्षेत्र में कार्य में सहयोग करने वाले भी आ गये. उनके इस अन्नदान की प्रशंसा वीरपुर के ठाकुर मूलजी ने सुनी, तो उन्होंने दो सौ बीघा जमीन और एक कुआ उनको दे दिया. जलाराम प्रतिदिन साधु-संतों को दान-पुण्य में कुछ-न-कुछ देते और नियमानुसार प्रतिदिन सीताराम महामंत्र का सुबह-शाम जाप करते. ‘भजन करो-भजन कराओ‘ उनका महामंत्र था. उनके प्रमुख चमत्कारों में एक घटना जमाल नामक मुसलमान, तेली के जीवन से जुडी होती है. जमाल का लडका अचानक इतना अधिक बीमार हो गया कि, किसी भी वैद्य की दवा-दारु उस पर काम नहीं आयी. सब तरफ से निराश होकर जमाल जलारामजी की शरण में आया और बोला: प्राणों से प्यारे मेरे इस पुत्र को आप स्वस्थ कर दो, तो मैं पांच बोरी बाजरा चढाउंगा.
जलाराम ने जमाल के लडके को अभिमंत्रित जल पिलाया था कि, दो घंटे बीतते ही लडके ने आंखें खोलकर अपने पिता से बात की. इसके बाद जमाल ने चालीस पैमाना पांच बोरी अनाज व बैलगाडी भी दोन दे दी. ‘जला सो अल्ला‘ इस तरह वह २२ वर्षीय जलाराम बापा का शुक्रिया अदा करता हुआ खुशी-खुशी अपने घर को लौट गया. इसी तरह एक बार ध्रांगध्रा के महाराज के १५० सिपाही वीरपुर आये हुए थे. जलाराम बापा ने उन्हें प्रसाद के तौर पर दो लड्डू और सेव एक पात्र से दिये. उस अक्षयपात्र से प्रसाद सभी सिपाहियों को भरपूर मिला. वह पात्र पुन: ज्यों का त्यों हो गया. इस घटना की खबर महाराज ने सुनी, तो उन्होंने बहुत-सा धन और बहुत सारे बढिया पत्थरों की चक्कियां आश्रम में भिजवायी, ताकि साधु-संतों को अन्नदान में सुविधा हो सके. कहा जाता है कि, आश्रम में आज भी वहीं चक्कियां मौजूद हैं. एक बार ईश्वर के रुप में आये एक संत ने सामान्य वृद्ध का रुप लेकर जलाराम बापा से सेवा हेतु उनकी पत्नी मांग ली. जलाराम ने नि:संकोच सहमति दे दी. स्वयंम प्रभु श्रीराम ने संत जलाराम तथा वीरबाई परिक्षा ली. जंगल में वीरबाई को झोली तथा डंडा सौंपकर वृद्ध साधु (श्रीरामजी) कही अंतध्र्यान हो गये. आज भी वीरपुर में उस झोली तथा डंडे की रोज पुजा होती है.
संत जलाराम बापा यह मानते थे कि, सभी जीवों में ईश्वर बसता है. अत: दान-दक्षिणा देकर भी दिन-दुखियों में ईश्वर को पाया जा सकता है. साधु-संतों, दिन-दुखियों को अन्नदान देकर ईश्वर की भक्ति को पाने के साथ-साथ जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है.
आज भी सौराष्ट्र के लोगों तथा उनके अनुयायी अन्नदान की परंपरा को श्रद्धपूर्वक स्वीकार करते हैं तथा अन्य क्षेत्र स्थापित कर हजारों मन अनाज प्रतिमास दान में देते हैं. संवत १९३७ में माघ कृष्ण दशमी को जलाराम बाप्पा वैकुंठवासी हो गये. लेकिन आज भी उनके मुलमंत्र ‘भजन करो… भोजन कराओ‘ मुलमंत्र पर पुरे भारत में अन्नक्षेत्र निरंतर शुरु है. ऐसा ही अन्नक्षेत्र अमरावती में भक्तिधाम मंदिर में पिछले ३५ वर्ष से निरंतर शुरु है. लॉकडाउन के समय में रोज हजारों की तादाद में लोगों ने अन्न ग्रहण किया. आज संत जलाराम बाप्पा के जयंती पर शत्शत् नमन!
– चंद्रकांत एम. पोपट रघुवीर, अमरावती.