अमरावतीमुख्य समाचारलेख

स्व.दादासाहेब कालमेघ जनहितैषी कुलपति एवं जानकार संस्थान अध्यक्ष

शिक्षा विशेषज्ञ प्रा. वा. मो. उपाख्य दादासाहेब कालमेघ शिक्षा महर्षि डॉ. भाऊसाहेब देशमुख के अथांग शिवपरिवार में सर्वांगीण कीर्ति प्राप्त कर डॉ.भाऊसाहेब के विधायक कार्य में योगदान देने वाले कार्यसिद्ध व्यक्तित्व है. उन्होंने शिव परिवार में चौतरफा प्रसिद्धि हासिल की और डॉ. भाऊसाहेब के रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाया. यह सौभाग्य की बात है कि उन प्रतिभाशाली और ज्ञानी व्यक्तित्व का स्मृति दिवस पिछले 26 वर्षों से लगातार नागपुर और अमरावती में एक ही दिन विभिन्न सामाजिक गतिविधियों के साथ मनाया जा रहा है. पिता द्वारा शून्य से बनाई गई प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाने की महान जिम्मेदारी उनके सुपुत्र शरदराव व हेमंतराव ने सफलतापूर्वक निभाई है. यह दादासाहेब के जीवन की सर्वोच्च कमाई है. इस वर्ष नाशिक वैद्यकीय विद्यापीठ द्वारा स्व. दादासाहेब कालमेघ स्मृति दंत महाविद्यालय व अस्पताल नागपुर को मिली पहली रैंक ने इस तत्परता में मूल्य और योग्यता जोड़ दी है. दादासाहब के बचपन के जीवन का वरूड (खुर्द) यह कर्मभूमि दादासाहब के संघर्षपूर्ण जीवन का प्रमाण है. इस गांव में आश्रय के रूप में रहने और अपना जीवन बसर करने के लिए उनके द्वारा की गई कड़ी मेहनत की बात आज भी की जाती है. आज हमें लगता है कि कुलपति रहते हुए उन्होंने जिस राष्ट्रीय सेवा योजना का प्रस्ताव रखा और उसे क्रियान्वित किया, वह इसी श्रम दान का परिणाम होना चाहिए. उनके नाम पर इस गांव में एक आधुनिक स्मृति प्रेरणा केंद्र स्थापित किया गया है. इसके माध्यम से जरूरतमंद एवं भावी विद्यार्थियों को अधिकतम लाभ एवं उचित सहायता प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है. जानकारों का अनुमान है कि शीघ्र ही यह प्रेरणा केन्द्र इस स्थान पर रचनात्मक समाजोपयोगी कार्य का रूप ले लेगा. चूँकि दादासाहब में किसी भी बड़े संकट से उबरने का मानसिक साहस था, इसलिए जीवन की कोई भी घटना या कठिनाई उन्हें कभी विचलित नहीं कर सकी. यह सर्वविदित है कि इसी साहस के कारण उन्होंने एक कुशल प्रशासक के रूप में विरोधियों तथा गलत व्यवस्था के विरुद्ध वीरतापूर्वक संघर्ष कर नागपुर विश्वविद्यालय एवं श्री शिवाजी शिक्षण संस्थान में विजय प्राप्त की. ‘मैं नहीं तो फिर मैं कहूंगा वहीं’ यह मंत्र उन्होंने विरोधियों से बुलवाया और यह उनके जीवन और ईमानदार वर्चस्व की पहचान कराने वाली घटना बन गई. उनकी दूरदर्शिता और विद्वता का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि सरकार दिए गए मार्गदर्शन को क्रियान्वित करने का प्रयास कर रही है. दादासाहब 40 साल पहले जब वे कुलपति थे तब उनके द्वारा किया गया मार्गदर्शन इस दौर में चलाने का सरकार का प्रयास शुरु है. विश्वविद्यालय की शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने छात्रों को व्यावहारिक कौशल विकास की शिक्षा देने का प्रयास किया है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे औद्योगिक क्षेत्र विश्वविद्यालय को लाभ पहुंचा सकता है. अपने पूरे जीवन में उन्होंने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज, कर्मयोगी संत गाडगेबाबा और डॉ. भाऊसाहेब देशमुख की विचारधारा को प्रवाहित रखने का महान कार्य किया. विज्ञान और अध्यात्म का सुंदर समन्वय रखने वाले इस जननायक ने जिन्हें हमेशा बहुजन समाज के एक महान व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, आम लोगों के लिए एक अद्वितीय समाज सुधारक के रूप में इस वासुदेव उपाख्य दादासाहब मोतीरामजी कालमेघ कई उच्च पदों पर रहने के बावजूद खुद को सामान्य समझना ही उनकी असामान्यता थी. ऐसे लोग अनुकरणीय होते हैं. जीवन और जीने का तत्वज्ञान उनके जीवन ग्राफ से मिलता है. खास बात यह है कि उनकी अगली पीढ़ी भी उच्च शिक्षा विभूषित है. उनके बेटे शरदराव और हेमंतराव दिन-ब-दिन सफलता के क्षितिज को पार कर रहे हैं. इन दोनों की बेटियां यानी दादासाहब की पोतियां एक वैद्यकीय तो दूसरी इंजीनियरिंग क्षेत्र में आकर कालमेघ परिवार की विद्वत्ता को आगे बढा रही है. ऐसे असामान्य व्यक्तित्व पर कितना लिखे? उनका अमरावती में आयोजित स्मृति दिन के इस उपक्रम आयोजन-नियोजन परंपरा का मैं स्वयं हिस्सा होने के कारण मैं स्वयं को भाग्यशाली सेवक समझता हूं. तथा सभी को ओर से स्व. दादासाहब कालमेश की पावन स्मृति को विनम्र अभिवादन करता हूं.
– प्रा. गजानन भारसाकले, अध्यक्ष,
गाडगेबाबा मंडल, दर्यापुर
9552226925

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