जिंदादिली की मिसाल स्व.श्री. सुभाषचंद्र काबरा (नांदेड वाले)
जिंदगी तो हर कोई जी रहा है, पर बहुत कम लोग अपनी शर्तों पर जिंदगी जी कर मिसाल कायम करते हैं. बस ऐसे हि है मेरे फुफाजी स्व. सुभाषचंद्र बालाप्रसादजी काबरा. उनकी मुलभूमी नांदेड रही. 14 साल पहले वे नांदेड से अमरावती में आ बसे और बहोत ही कम समय में उन्होंने अपनी बातो से, स्नेह से सभी का मन मोह लिया. वे निरोग संस्था, अमरावती के सक्रिय सदस्य थे. अतीव परिश्रम, निस्वार्थ प्रेम, कर्मठ सहकर्मी ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे मेरे फुफाजी. परिवार मेें ही नहीं अपितु समाज में भी वे सब के चहिते थे. सुभाष फुफाजी ने उनके जीवनकाल मेें हमेशा हम सब के दिलों पर राज किया है. निरोग संस्था साल में दो बार शिबीर का आयोजन करता है. निरोग संस्था ने ट्रस्ट मेंबर होने से वे संस्था का काम पुरी निष्ठा से करते थे. नांदेड निवासी सुभाषजी काबरा वहां के राजस्थानी एज्युकेशन सोसायटी के सेक्रेटरी भी रह चुके है. अपने जीवन के 30 साल उन्होंने सेके्रटरी पद संभाला व उनके छात्र छाया ने राजस्थानी एज्युकेशन सोसयटी (नांदेड) का अभुतपूर्व विकास हुआ, उस सोसायटी में करीबन 7 स्कुल और कॉलेजेस का समावेश है, जो आज सफलता के चरम सिमा पर पहोचे है. वे लायन्स क्लब मिड टाफन नांदेड के ट्रेजरर के रुप में भी समाज कल्याण हेतु बहोत सारे प्रोजेक्ट लेते रहते थे. अपने ममतामयी व्यवहार से उन्होंने हम सभी को एक डोर में पिरोऐ रखा था. परिवार में हो या समाज में, वे हर कार्य को एक ऐसे नजरिए से देखते थे, बारिकियों को रखते थे, कि हम काम सर्वोपरिय हो जाता था. वे लखोटिया परिवार के जवाई थे. समाज व परिवार में वे अपने नाम से प्रचलित थे. ज्ञान का अथाह भंडार थे मेरे फुफाजी. आप उनसे किसी भी बारे में कुछ भी पुछ लो, चाहे फिर वो आज की टेक्नॉलॉजी हो, रिती रिवाज हो, दुनियादारी हो या सामान्य ज्ञान हो, वे हर चिज की जानकारी रखते थे. मै खुद कई बार किसी अटकल में अटक जाता था, तो उनसे राय लेता था. उनको यात्रा करने का बहोत शौक था. वे अपने जिवनकाल में कई सफल विदेश यात्रा कर चुके है. पांच भाईयों में वे ज्येष्ठ थे. ये भगवान की ही कोई माया है कि, वे उनकी माताजी व उनके छोटे भाई सभी महाशिवरात्री के दिन ही शेष में विलिन हुए है. एक सफल व्यवसायी, स्नेह के भंडार, कर्मठ व्यक्तित्व वाले फुफाजी पिछे धर्मपत्नी, बेटी सौ. रचना आशिष राठी (जो केशरबाई लाहोटी विद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापिका हैे), जवाई श्री आशिष राठी (मोर्शीवाले), दोयता, दोयती एवं भरापूरा परिवार छोड गए है.
जब कोई व्यक्ति जिसे आप मन से चाहते है या जिससे आप दुर नहीं रह सकते, अगर अचानक से वे आपको छोडकर भगवान के पास चले जाए तो, वे पल सब से ज्यादा दुखदायी होता है. हालांकि कोई शब्द वास्तव में आपको खोने का दु:ख कम करने में मदद नहीं कर सकता है, बस जाते है कि, आप हर विचार और प्रार्थना में बहोत करीब है.
वक्त के साथ जख्म तो भर जायेंगे,
मगर जो बिछडे सफर जिंदगी में,
फिर ना कभी लौट कर आयेंगे.
॥ पुज्य फुफाजी आपको शत: शत: नमन ॥
– एड. विनोद लखोटिया,
राजापेठ, अमरावती.