कुष्ठ सेवा महर्षी पद्मश्री दाजीसाहब पटवर्धन
पहले कुष्ठरोग को घृणा, कोप माना जाता था. किसी को कुष्ठरोग हुआ तो समाज से बेदखल कर दिया जाता. बहुत ही घृणास्पद बर्ताव होता. लोग कुष्ठरोग को विकृति समझते. पीडित को समाज से दूर रहकर सडक किनारे भीख मांगनी पडती. पेट के बच्चे के साथ भी लोग ऐसा ही व्यवहार करते. किंतु डॉ. शिवाजीराव उर्फ दाजीसाहब पटवर्धन के रुप में मानो कुष्ठरोगियों को अपना भगवान ही मिल गया था. दाजीसाहब ने न केवल उनके जख्मों पर मरहम लगाया, बल्कि उनका जीवन सुखमय बनाने के प्रयत्न किए.
वसती ज्या ठायी, दीन, दुखी, आर्त
विराजती तेथे चरण तुझे
तपोवन के प्रवेशव्दार पर लिखा गया यह संदेश वहां से गुजरनेवालों को सदैव प्रेरित करता हैं. सत्यम शिवम सुंदरम ऐसे निसर्गरम्य, सेवा, त्याग, तपस्या, संघर्ष का प्रतीक यानी ‘तपोवन’.
1950 से आज भी यहां अविरत कुष्ठ रोगियों की सेवा हो रही है. दाजीसाहब पटवर्धन ने इसे एक आदर्श और सभी सुविधायुक्त तथा दर्शनीय परिसर बना रखा है. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन कुष्ठरोगियों, नेत्रहीन, दिव्यांग और विधवा लोगों के लिए खपा दिया. पाई-पाई जोडकर तपोवन नाम का नंदनवन बनाया.
दाजीसाहब के कारण ही कुष्ठ पीडितों का जीवन सुखमय बना. मरीज और अनाथ विद्यार्थियों को दाजीसाहब ने इमानदारी, आत्मनिर्भर, परोपकारी, सेवावृत्ति और निष्ठा के गुणों की शिक्षा दी. इसी कारण अनेक अनाथ विद्यार्थी और रोगमुक्त मरीजों ने उनके उपकारों का भान रखा. वे भी दाजीसाहब के कार्य को आगे बढाने का प्रयास कर रहे हैं. जहां वे हैं वहां दाजीसाहब की प्रेरणा से ही ऐसे छोटे-बडे उपक्रम उन्होंने चला रखे हैं. इसे भी दाजीसाहब के प्रति अपार श्रद्धा कह सकते हैं.
पेशे से डॉक्टर दाजीसाहब ने स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय रहे. उन्हें कई बार जेल जाना पडा. गांधीजी की प्रेरणा से उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा का व्रत लिया. ताउम्र उसे निभाते रहे.
तपोवन को राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज, संत गाडगे बाबा, संत अच्युत महाराज ने भेंट दी हैं, सराहा है. आज भी तडके 5 बजे प्रार्थना से तपोवन का दिन आरंभ होता है. अपने दैनंदिन कार्य पूर्ण कर लगभग 8 बजे यहां के सभी लोग अपने नित्य काम में लगन से जुट जात हैं. पूरे परिसर की साफ-सफाई और उसे सुंदर, व्यवस्थित रखना जारी है.
दाजीसाहब ने तपोवन को नियोजनबद्ध और संस्कारीत रखने का प्रण किया था. वह प्रण अखंडित है. बल्कि परिसर को और भी अधिक सुंदर तथा प्रेरणास्पद बना दिया गया है. प्रसिद्धी से दाजीसाहब कोसो दूर रहे. कर्म ही ईश्वर की सच्ची सेवा मानने वाले दाजीसाहब ने अपना जीवन कुष्ठ पीडितों हेतु न्यौछावर कर दिया था. आज के दौर में ऐसे सेवाव्रती विरले होते हैं.
समय बदल गया है. नए अवसर उपलब्ध है. किंतु दाजीसाहब की विरासत लुप्त नहीं होनी चाहिए. आज अनेक संस्थाएं बनी है, किंतु तपोवन का काम लगनशील लोग जारी रखे हुए हैं. यही दाजीसाहब का आशीर्वाद कहना पडेगा. दाजीसाहब के कार्यो को नई योजनाओं से परिपूर्ण कर संस्था की उपलब्धियों को बढाने का प्रयत्न जारी है. यहां मौजूद शाला और कारखाना पर सरकार की तरफ से ध्यान देकर नया चैतन्य लाना होगा. गरीब किंतु लगनशील विद्यार्थियों को तपोवन के माध्यम से नि:शुल्क शिक्षा देकर संस्कारी पीढी निर्माण कर दाजीसाहब के विचारों को कायम रखना होगा. उनके कार्य निश्चित ही अजरामर है. हमें उसके लिए अपनी कार्य रुपी सेवा अर्पण करना ही दाजीसाहब को सच्ची श्रद्धाजंलि होगी.
दाजीसाहब का संदेश
मुझे भूलो, कार्य मैंने यह किया
किंतु कार्यो को नहीं भूलना
कर्म ही सेवा मानकर नि:स्वार्थ भावना से किए कार्य दाजीसाहब को अर्पण करना चाहिए.
– उमेश ज्ञानेश्वर इखे,
सहायक क्षेत्र अधिकारी,
भारतीय मृदा व भूमि उपयोग सर्वेक्षण विभाग,
भारत सरकार, किसान कल्याण मंत्रालय,
नागपुर केंद्र-9518571138