चलो फिर से अनुशासन का झंडा लहराएं
भारतीय संविधान निर्माण के लिए 22 समितियों का चुनाव किया गया संविधान सभा द्बारा संविधान निर्माण के लिए 114 दिन की बैठक की गई जिसमें 308 सदस्यों ने भाग लिया.
आज का दिन हम हिंदूस्तानियों के लिए गर्व का दिन है क्योंकि इस दिन हमारा संविधान लागू हुआ था. आज के ही दिन हमने अंग्रेजों के कानून को हटाकर खुद के संविधान को अपनाया था. आप सभी जानते ही होंगे कि, भारत की आजादी के बाद 9 दिसंबर 1947 को संविधान सभा बनाने की शुरुआत की, जिसे 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में बनाकर तैयार किया गया और इसी दिन भारतीय कांग्रेस सरकार द्बारा भारत में पूर्ण स्वराज को भी घोषित कर दिया गया था और उस दिन से हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाते हैं.
भारतीय संविधान निर्माण के लिए 22 समितियों का चुनाव किया गया संविधान सभा द्बारा संविधान निर्माण के लिए 114 दिन की बैठक की गई जिसमें 308 सदस्यों ने भाग लिया. इस बैठक के मुख्य सदस्य डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरु, डॉ. भीमराव आंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद आदि थे. इन सभी के अथक प्रयासों से हमें व भारत को कामयाबी हासिल हुई.
उक्त जानकारी हम सभी जानते हैं, पर आज के दिन इन्हेें स्मरण करके या पढकर हम आजादी के उन्हीं दिनों में एक बार फिर खो जाते हैं और गर्व से सीना चौडा हो जाता है. इसी प्रकार कई ऐसे कानून कायदे भारत में बने हैं जिसकी वजह से भारत के स्त्री-पुरुष, बच्चे और सभी भारतवासी महफूज महसूस करते हैं.
इसी आजादी और अपने खुद के संविधान के लिए कितने लोगों ने अपने प्राण देकर देश के लिए शहीद हो गए जिनका नाम भी हम नहीं जान सके परंतु इतनी कठिनाईयों से मिली हुई आजादी और संविधान का देश भी दुरुपयोग भी होता दिख रहा है. देश में, शहर मेें छोटी-छोटी बातों या राजनीति को लेकर आंदोलन, कर्फ्यू लग जाते हैं. इन आंदोलनों से कितने ही गरीबों का नाहक नुकसान हो जाता है, जिनका कोई दोष भी नहीं होता और यह आंदोलनकारी कुछ दिनों में कानून कायदे के चलते फिर से छूट जाते हैं. कभी ऐसा लगता है देश में कुछ और नए संविधान या कानून बनने चाहिए. जिससे शहर में आंदोलन या व्यवस्था करने वालों को बेल या जतानत पर नहीं सीधा बॉर्डर पर भेजा जाए तो एक भी उत्साही आगे शहर में व्यवस्था में सहभागी ही नहीं होगा, बलात्कारियों पर जल्दी केस लगाकर शहर के बीच में ही फांसी दी जाए, ऐसे कानूनों की आवश्यकता है. जितने देश के असामाजिक तत्व हैं इन्हें यह एहसास ही नहीं की बॉर्डर पर लडने वाले जवान की किस स्थिति में रहकर, परिवार से दूर रहकर हमें सुरक्षित रखते हैं. कितने बलिदानों के बाद हमेें अपना वतन जमीन संविधान प्राप्त हुआ है. हम और कुछ ना करें परंतु अपने अपने शहरों में अमन और शांति रखकर उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं. ‘तैरना है तो समंदर में तैर, नदी नालों में क्या रखा है. प्यार करना है तो वतन से करो, जाति-धर्म में क्या रखा है.’
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
– सारिका दीप मिश्रा
मो. नं. 7972032990