लॉकडाउन : कुछ शिथिलताएं जरूरी
कोरोना संक्रमण की राज्य में विकट स्थिति को देखते हुए पूरे राज्य में ६ से ३० अप्रैल तक लॉकडाउन घोषित किया गया है. इस लॉकडाउन को लेकर लोगों में विरोध का भी माहौल है. क्योंकि बीते एक वर्ष से शहर के नागरिक अनेक बार कोरोना संक्रमण के लिए जारी किए गये निर्देशों का पालन करते रहे है. विशेष यह कि नियम पालन करनेवालों की संख्या आरंभ से ही भरपूर रही है. लेकिन कुछ तत्व नियम को हाशिये पर रखकर अपनी मनमानी करते है. जिसके कारण जो लोग नियमावली का पालन करते है उन्हें भी अनावश्यक रूप से संक्रमण का खतरा झेलना पड़ रहा है. सरकार द्वारा लोगों को लॉकडाउन से बचाव के लिए बार-बार हिदायते दी गई. जिसमें कहा गया कि सोशल डिस्टेसिंग, मास्क पहनना, हाथों को सैनिटायजर करना व हाथ को साबुन से धोना जैसे सुझाव दिए गये. लेकिन इस पर अमल नहीं होने के कारण कोरोना संक्रमण का अनेक लोगों पर असर हो रहा है. इसके कारण शहर में कई लोग बीमारी की चपेट में आ रहे है. यह जरूरी है कि जो लोग नियमावली का पालन नहीं कर रहे है उनके खिलाफ कडी कार्रवाई की जाए. निश्चित रूप से इससे असामाजिक तत्वों पर रोक लगाई जानी चाहिए. क्योंकि यह बीमारी संक्रमण मात्र से हो जाती है तो स्पष्ट है कि जो लोग नियमों का पालन नहीं करते है उनका असर सामान्य लोगों पर भी पड़ता है. बेशक व्यक्ति कोरोना से बचाव के लिए अपने आप में नियंत्रण के अनेक उपाय कर रहा है. लेकिन कुछ लोगों के लापरवाही के कारण उसे अनावश्यक रूप से बीमारी की चपेट में आ जाना पड़ता है. कोरोना संक्रमण के चलते उससे बचाव के केवल तीन सूत्री उपाय की जानकारियां दी जा रही है. लेकिन बदलते मौसम को देखते हुए इसमें और क्या परिवर्तन किया जाना चाहिए इसकी भी जानकारी देना आवश्यक है. जब यह माना जा रहा है कि कोरोना विषाणु ने अब अपना स्वरूप बदल दिया है. बीमारी में पुराने लक्षण के साथ साथ कुछ नये लक्षण भी सामने आ रहे है. ये नये लक्षण क्या है इसकी भी जानकारी विभिन्न माध्यमों से लोगों को दी जानी चाहिए ताकि वे नये लक्षणों का एहसास होते ही उपचार की प्रक्रिया आरंभ कर दे. यदि लक्षणों की जानकारी नहीं रही तो सामान्य व्यक्ति बीमारी के प्रवेश होने के बाद भी उपचार के बारे में नहीं सोच सकता है. परिणामस्वरूप भीतर ही भीतर यह बीमारी अपना घर कर देती है. इससे समय पर उपचार भी कठिन हो जाता है. बीते लॉकडाउन के समय कोरोना के लक्षण के बारे में जगह-जगह बोर्ड लगाए गये थे जिससे लोगों को सावधानी बरतने में काफी आसानी गई थी. यही कारण है कि गत वर्ष मार्च में कोरोना का संक्रमण सीमित था. उस समय लोगों ने सभी सावधानिया बरती थी. अब भी वही किया जा सकता हैे इसके लिए कोरोना के नये स्वरूप की जानकारी लेकर उसके फैलने को रोकना चाहिए. इसके लिए प्रशासन को लोगों में कोरोना के प्रति जनजागृति आवश्यक है.
वर्तमान में कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रशासन का दायित्व है कि लोगों को बीमारी एवं उसके बदलते स्वरूप की जानकारी दी जाए ताकि लोग पहले से ही स्वास्थ्य के प्रति सावधानी बरतना आरंभ कर दे. अनेक लोगों का मानना है कि फरवरी माह में लगाये लॉकडाउन के बाद यदि नियमों का कडाई से पालन किया जाता तो इस बीमारी को रोका जा सकता था. मनसे नेता राज ठाकरे के अनुसार दूसरे प्रांतों से आनेवाले श्रमिको के कारण यह बीमारी फैल रही है. दूसरे राज्य में भी कोरोना है लेकिन उसके आंकडे घोषित नहीं किए जाते. परिणामस्वरूप दूसरे प्रांत से आनेवाले लोगों के कारण यह बीमारी फैल रही है. केवल एक ही कारण इस बीमारी को फैलने का नहीं माना जा सकता. क्योंकि अनेक कारण है जिसके चलते संक्रमण बढ़ रहा है. राज्य में बसों को आरंभ कर दिया गया है. इन बसों को पिछले लॉकडाउन के समय सैनीटायजर कर निरजंतुकीकरण किया जा रहा था. इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है. यहां तक कि निजी बसों को भी अनुमति दी गई है. समय के हिसाब से लॉकडाउन रहने के बाद भी कुछ शिथिलताएं आवश्यक है. लेकिन जब हम इसे ब्रेक द चेन का नाम देते है तो जरूरी है कि पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाए. आधे अधूरे प्रतिबंधों से किसी के साथ न्याय व किसी के साथ अन्याय की नौबत उत्पन्न नहीं होनी चाहिए. यही वजह है कि इस बार लॉकडाउन का विरोध किया जा रहा है.
विक एण्ड लॉकडाउन में सबकुछ बंद रखने का आदेश दिया गया है लेकिन कुछ चीजे नष्ट होनेवाली रहती है तथा उस पर ग्रामीण व कृषि क्षेत्र का अर्थचक्र जुड़ा रहता है. उन्हे यदि दो दिनों तक बाजार से दूर रखा जाए तो भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है. इसमें मुख्य रूप से दूध व दूग्धजनित पदार्थ आते है. क्योंकि रोजाना दूध का दोहन हर पशुपालको को करना पड़ता है. यदि लॉकडाउन में दूध बिक्री पर प्रतिबंध रहा तो यह नुकसान दूध विक्रेताओं के साथ किसानों को भी उठाना पड़ सकता है. दूध उत्पादन से लेकर उसके संकलन, विपणन तथा बिक्री से अनेक लोग जुड़े हुए है. इनके रोजगार तो प्रभावित हो रहे है पर दूध का उपयोग न होने से उन्हें अंत में नष्ट ही करना पड़ेगा. इसके लिए जरूरी है कि प्रशासन दूध व जल्द नष्ट होनेवाले खाद्य पदार्थो की बिक्री के लिए कम से कम चार घंटे का समय अवश्य दे. ऐसे में लोगों को भी जरूरत की वस्तु मिल जायेगी व दूध जो नष्ट होनेवाला है उसे रोका जा सकेगा. कुल मिलाकर लॉकडाउन समय की मांग है पर स्थिति को देखते हुए इसमें कुछ शिथिलताएं जरूरी है. प्रशासन को चाहिए कि वह संक्रमण रोकने के लिए कडे कदम उठाए पर अनावश्यक रूप से किसी का नुकसान न हो. इस बात का भी ध्यान रखें. खासकर कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा लापरवाही बरतने के कारण सावधानी बरतनेवालों को नुकसान न हो इसका ध्यान रखा जाना चाहिए. लापरवाह तत्वों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जाये तो निश्चित रूप से लोगों को राहत मिल सकती है.