लेख

‘महामंत्री’ गरीबचंद

एक राज्य के राजा ने आदेश दिया, राज्य के स्थापना दिवस पर प्रजा अपने घर पर पताका लहराये और आदेशानुसार प्रजा इस काम में जुट गई. एक गरीबचंद नामक व्यक्ति जो पेशे से मजदूर अर्थात अत्यंत गरीब वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था, उसके लिए समस्या थी पताका तो ले लेगा पर उसे लहराने उसके पास घर ही नहीं है. वह तो एक पुलीया के नीचे खुले में रहता है. उसे डर था अगर उसने पताका नहीं लहराया तो राजा तो बाद में पहले प्रजा ही उसे देशद्रोही करार देकर उसे मार मारकर उसका कचुमर ना बना दें. सो, वह रायचंद जो समस्याग्रस्त प्रजा को राय केे माध्यम से समस्या से निकलने के उपाय बताता था, उसके पास अपनी समस्या लेकर गया और उनके बीच जो संवाद हुआ वह इस प्रकार रहा-
गरीबचंद ः हुजुर मेरे पास पताका तो है पर घर नहीं, आप कोई रास्ता बताये जिससे राजा के आदेश की अवहेलना करने से बचा जा सके.
रायचंद ः देख भाई गरीबचंद, तुम्हारी समस्या राजा ने खड़ी की है तुम राजा के पास जाओ वहीं इसका हल भी देंगे.
गरीबचंद ः देने वाले वे घर भी थे यह बताकर की यह उनका सपना है, पर कई बरस बीत गये और यह बरस भी बीतने को है पर घर नहीं मिला. घर दे देते तो फिर यह समस्या ही खड़ी ना होती.
रायचंद ः एक बात बताओ, तुमने सपने संजोये है कभी?
गरीबचंद ः जी, अपना एक घर हो, यह मेरा सपना है.
रायचंद ः जो की साफ है पुरा नहीं हुआ.
गरीबचंद ः जी.
रायचंद ः पहली बात राजा ने सभी को घर देने का वादा नहीं किया था, इस वर्ष के अंत तक सभी के पास घर हो यह सपना था उनका और जैसे तुम्हारा सपना घर पाने का था पर पुरा नहीं हुआ. ठीक उसी तरह राजा का सपना था सभी को घर दने का, पर उनका भी पूरा नहीं हुआ. इसमें राजा की क्या गलती? वैसे भी सभी के सपने पूरे कहां होते हैं?
गरीबचंद ः इसमें गलती किसकी है?
रायचंद ः गलती तुम्हारी है, प्रजा की है. प्रजा आत्मनिर्भर नहीं तो इसमें राजा की कैसी गलती. और वैसे भी कभी राजा की गलती होती है क्या?
गरीबचंद ः मैं ठहरा मजदूर आदमी, दिनभर मेहनत से कमाकर दो वक्त की रोटी मुश्किल से कमा पाता हूं. ऐसे में घर बनाने कहां से पैसा बचा पाउंगा. पुलिया के नीचे रहने वाले को कर्ज कौन देगा? इसलिए राजा के भरोसे था.
रायचंद ः समझ सकता हूं तुम्हारी समस्या, हमारे राज्य में गरीब का खुद का ईंट-सिमेंट का घर होना लोहे के चने चबाने के जैसा है. पर तुम्हारी समस्या का हल है मेरे पास. एक बात बताओं, तुम ईमानदार और देशप्रेमी हो?
गरीबचंद ः ईमानदार इतना कि जिस दिन काम नहीं मिलता, उस दिन भूखे पेट सो जाता हूं. पर चोरी चकारी नहीं करता और मेरी देशभक्ति ही है कि फटेहाल जगह पर पताका लहराने से बच रहा हूं, वर्ना दुनिया कहेगी कि राज्य की प्रजा के पास सिर ढंकने छत और तन ढंकने पूरा कपड़ा भी नहीं और घरों पर पताका लहराने का आदेश दिया जा रहा है. सोचिये, हमारे राज्य की दुनिया भर में कितनी बदनामी होगी.
रायचंद ः तुम्हारी ईमानदारी और देशभक्ति देख इतना तो कह ही सकता हूं कि तुम्हें खुद के घर पर पताका लहराने से कोई रोक नहीं सकता. पर कुछ वर्ष लगेंगे.
* गरीबचंद ः पर इस वर्ष?
रायचंद ः इस वर्ष प्रजा की गाली सुन लेना, लेकिन भविष्य में तुम्हारी ईमानदारी और देशभक्ति की यह प्रजा मिसालें देगी?
गरीबचंद ः मजदूर तो रोज ही गाली सुनता है, आप बस रास्ता बताये कि कैसे खुद का घर ले सकूं, जिस पर पताका लहरा सकूं?
रायचंद ः एक ही रास्ता है, पताका को अपने सीने से लगा राजा के दरबार में एक कार्यकर्ता के रुप में जुड़ जाओ. ईमानदारी से मजदूरी तो करते ही हो, वहां ईमानदारी से राजा जो कहे, वह कार्य करना. काम ना मिलने पर खाली पेट नींद त्यागते हो ना, वैसे तुम्हारे पास त्यागने कुछ है नहीं, पर राजा काम में कुछ त्यागने कहे, तो त्याग देना और एक दिन ऐसा आएगा, जिस दिन राजा तुम्हारी ईमानदारी, वफादारी, देशभक्ति देख तुम्हें दरबार के मुख्य ओहदे में से कोई भी ओहदा दे देगा.
गरीबचंद ः जैसे?
रायचंद ः जैसे, महामंत्री, रक्षा मंत्री, राज्य मंत्री. और तब तुम्हारे पास स्वयं का घर होगा और उस दिन उस घर पर पताका लहरा देना.
गरीबचंद ः पर क्या यह संभव है?
रायचंद ः हमारे राज्य में एक रथ वाहक अपनी मेहनत से महामंत्री बन सकता, तो एक मजदूर भी अपनी लगन और मेहनत से कोई सा भी मंत्री बन सकता है. यह भी हो सकता है कि भविष्य में तुम भी राजा बन जाओ. फिर केवल खुद के घर पर ही नहीं, बल्कि अपने कार्यालय पर भी पताका लहराने मिलेगा. इतना ही नहीं राज्य की सरकारी इमारतों जैसे पाठशालाएं, विश्वविद्यालय आदि पर भी तुम्हें बतौर मुख्य अतिथि के रुप में पताका फहराने आमंत्रित किया जाएगा और उस दिन आज जो प्रजा पताका न लहराने के लिए तुम्हें गालियां दे रही है, वहीं प्रजा तब तुम्हारा गुणगान करेगी और अपने बच्चों को तुम्हारी मिसाल देते हुए यह कहेगी, देखो एक मजदूर कैसे बना राज्य का महामंत्री. यही एक रास्ता है खुद के घर को पाने का और उस पर पताका लहराने का, वर्ना मजदूर रहकर कभी अपना घर नहीं बना पाओगे. इसकी मैं गारंटी देता हूं और यह तुम भी जानते हो और ध्यान रहे जो पुलिया तुम्हारा छत बनी हुई है, वह हमेशा छत बनी रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं.
गरीबचंद ने रायचंद को धन्यवाद देते हुए उम्मीद भरे कदम दरबार की ओर बढ़ा दिये.
– सुनील राठी (समर शेष)
रचनात्मक लेखक, कवि,लाईफ स्किल्स एक्सपर्ट (पी.जी.डी. काउंसिलींग एवं सायकोथेरेपी)

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