धर्माचारण के पालन हेतु समर्पित माहेश्वरी समाज
शव हूं मैं भी शिव के बिना,
शव में शिव का वास.
शिव मेरे आराध्य हैं,
मैं हूं शिव का दास
भगवान शिव, जिनका एक नाम भगवान महेश भी है. ऐसे देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के अनुग्रह से उत्पन्न हुई वैश्यवर्ण की जाति को माहेश्वरी कहा जाता है. राजस्थान राज्य अंतर्गत मारवाड क्षेत्र से वास्ता रखने के चलते उन्हें मारवाडी भी कहा जाता है. माहेश्वरी जाति के संस्थापक व उद्धारक श्री उमा महेश भगवान के साथ ही देवसेनापति कुमार श्री कार्तिकेय जी एवं प्रथम पूज्य देवता श्री गणेश जी को माहेश्वरियों का कुलदेवता या कुलदैवत माना जाता है. माहेश्वरी जाति द्वारा बनाये जानेवाले मंदिरों में मुख्य रूप से शिव परिवार की ही स्थापना की जाती है. धर्माचारण के लिए पूरी तरह से समर्पित रहनेवाले माहेश्वरी समाज द्वारा सत्य, प्रेम, न्याय व योग साधना को अपने जीवन का मुख्य आधार माना जाता है. इसके साथ ही आज माहेश्वरी समाज देश सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में जाकर बस गया है और हम जिस स्थान, देश, प्रदेश या शहर में रहते है, वहां पर अपने धर्माचारण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करने के साथ ही संबंधित क्षेत्र की स्थानीय संस्कृति व परंपरा का भी पूरा आदर-सम्मान करते है. यहीं वजह है कि, अलग-अलग क्षेत्रों में रहनेवाले माहेश्वरी समाजबंधू संबंधित क्षेत्रों के स्थानीय नागरिकों के साथ पूरी तरह घुलमिल गये है. साथ ही साथ उन्होंने वहां पर अपनी अलग और विशेष पहचान भी बनाई है.
– संदेश रांदड
अकोला.