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मकर संक्रान्ति फलम्

अमरावती/दि.11-सजयति सिन्धुर वदनो देवोयत्पाद पंकजस्मरणम्, वासरमणिरिव तमसां राशि विघ्नानाम् ॥1॥
समभिवन्द्य रविंशशिनंकुंजं शशिसुतं सुरराजगुरुं भृगुम्। रविजमीशहरिं कमलासनं मकर संक्रमणं प्रवदाम्यहम् ॥2॥ तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलोदकी, तिलभुक् तिलदाता च षट्तिलाः पापनाशकाः ॥3॥
स्वस्ति श्री मन्नृपति वीर विक्रमादित्य गताव्दा ः (संवत्)2078 शके 143 आनंद नाम संवत्सरे पौष शुक्ल 12 (द्वादशी) 38/36 तिथौ शुक्रवासरे रोहिणी 34/25 तदु ः मृगशिरा नक्षत्रे शुक्ल 19/08 तदु. ब्रह्म योगे तात्कालिके वालव करणे, दिनमान 26/48 सू.उ.06 ः 39 सू.अ.05ः21 सूर्योदया दिष्टम् 35।25 स्थानीय समय से रात्रि 8 बजकर 49 मिनट स्टेण्डर्ड समय से रात्रि 9 बजकर 8 मिनट पर यानी (ता. 14।1।2022 ई. को रात्रि में 9 बजकर 8 मिनट पर मकर संक्रांति अर्की है) अस्मिन. समये सिंह लग्नोदय ः वृष राशौ मकर संक्रमण स्यात्। ततो देवानां दिनोदयः दैत्यानां ॥ रात्र्युद्नमः दक्षिणायन हेमन्त ऋतु ः धनु संक्रान्तियों निवृताः उत्तरायण शिशिर ऋतु ः मकर संक्रान्तयश्च प्रवृत्ता ः अश्या ः पुण्यकालः संक्रान्तिकाले तथा संक्रान्ति कालात्पराः 20 वा40 घट्य ः पुण्याः तेन संक्रान्ति कालात्पर दिने सूर्योदयात् सायंकाले पुण्यकालः (ता.) 15।1।22 ई. को प्रातः काल से दिन 1 बजकर 8 मिनट तक विशेष पुण्यकाल एवं । सायंकाल तक सामान्य पुण्यकाल रहेगा. वाहनं व्याघ्रः उपवाहनं अश्वः, पीत वस्त्रं, गुलाबी कंचुकी, कुंकुम लेपनं, कमल पुष्पधारणं मुक्ताफल भूषणं, रौप्यपात्रं पायस (स्विर) भक्षणं, गदायुद्धं, सर्पजातिः, कौमार्य वस्थाः, निविष्टा, स्थितिः, मु.30 फलम् वारनाम मिश्रा पशु सुखदा, नक्षत्रनाम मंदाकिनी नृप सुरवदा उत्तरे आगमन, दक्षिणें गमनं नैऋत्यां दृष्टिः शुक्रवारफलम्ः-संक्रांति शुक्रवार को लगे तो जगत में भय का नाश सुखों की वृद्धि, हाथी-घोड़े आदि वाहनों को पीड़ा, सभी प्रकार के वस्त्र तथा धान्य मन्दा तिल, तैल तथा सरसो आदि का भाव तेज होवे. मृगशिरा नक्षत्र फलमः- राजा प्रजा में शान्ति, गायें अधिक दूध देगी, ब्रह्म योग फलम् – वर्षा का अभाव जनता में अशांति होती है. अथैतेषां फलम्- प्रजा सुखी रहती है था मांगलिक कार्यों की वृद्धि होती है। शुक्लपक्ष फलम्- सफेद धातु और सफेद वस्त्र का भाव तेज होता है। भद्रातिथि फलम्- संसार में दुर्भिक्ष तथा चौरादि का उपद्रव होता है। युद्ध के समय छोटे राष्ट्र । का शासक बड़े राष्ट्र के शासक को जीतने की इच्छा करता है। स्थिर लग्न फलम् ः- सन्यासी भूस्वामी आदि एवं एक ही देश में स्थित रहने वालों को पीड़ा होती है. व्याघ्र वाहन फलम् ः- संक्रान्ति के वाहन यदि व्याघ्र हो तो शासकों में परस्पर दुश्मनी, किसानों को पीड़ा, चौपाये पशुओं का नाश और प्राणियों के हिंसा करने वालों की वृद्धि होती है। अश्व उपवाहन फलम् ः- संक्रान्ति का उपवाहन अश्व हो ो युद्धादि उपद्रवों की संभावना, क्षत्रियों को कष्ट, घोड़ों की हानि और व्यापार में वृद्धि होती है. पीत वस्त्र फलम् ः- संक्रान्ति के वस्त्र पीले हो तो प्रसूतिका स्त्रियों को बीमारी से पीड़ा, छोटे बालकों तथा उनकी माताओं को कष्च, केसर, हल्दी आदि पीली वस्तुओं का भाव तेज और इनके व्यापारियों को दुख होता है। कुंकुम लेपन फलम् ः-संक्रान्ति का लेपन कुंकुम (केसर) हो तो मनुष्यों को पीड़ा, सौभाग्यवती स्त्रियों को कष्ट, केसर, हल्दी आदि वस्तुओं के भाव तेज होता है। और इनके व्यापारियों को कष्ट होता है। पायस (रिवर) भक्षणं फलम् ः- संक्रान्ति का भक्ष पायस हो तो दूध, दही, घी आदि रस पदार्थों का भाव तेज धान्य की वृद्धि लोगों में सन्तोष, व्यापार की उन्नति तथा गोधन से जीविका चलाने वालों को पीड़ा होती है। भिन्दिपाला (गदा) युधं फलम् ः- संक्रान्ति का आयुध गदा हो तो शासकों को कष्ट, जनता को चिन्ता, दक्षिण के देशों में भय, उत्कल तथा बंग राज्य में उपद्रव औड़ यवनशासित देश में आनंद रहता है. संक्रान्ति की स्थिति बैठी हो तो नेत्र व अतिसार रोगों की वृद्धि, राजा को कष्ट, ब्राह्मणों को पीड़ा, चौपाये पशु दुखी, वर्षा मध्यम और धान्यादिक का भाव सामान्य रहता है. 30 मुहूर्त फलम् ः- संक्रांति के 30 हो तो वर्षा मध्यम, अनाजों की उपज सामान्य शासक और जनता सामान्य रुप से दुखी रहती है. सभी वस्तुओं का भाव सम रहता है. आगमन फलम् ः- उत्तरदेश वासीनां सुखम्। गमन फलम् ः- संक्रान्ति का गमन दक्षिण दिशा में हो तो दक्षिण के देशों में शासक व जनता को कष्ट एवं धान्य का भाव तेज होता है. अग्नि कोण के देशों मेंं भय औश्र पश्चिम के देशों में सुख होता है. दृष्टि फलम् ः- संक्रान्ति की दृष्टि नैर्ऋत्य कोण में हो तो दक्षिण तथा पश्चिम के देशों में अकाल की संभावना रहती है. उत्तर के देशों में युद्ध आदि का भय और पूर्व के देशों में सुभिक्ष रहता है। बालव करण स्वरुपम ः- संक्रांति के समय बालव करण हो तो उसका शरीर स्थूल, चारभुजा, काला नेत्र ऊंची दृष्टि, लम्बे कान और रुण्डमाला धारण किए हुए ऐसा स्वरुप संक्रान्ति का होता है। मकर संक्रान्ति का महत्व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं. चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है. लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है. एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रान्ति मनाई जाती है. बताया जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था. तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा. दान करना शुभ मकर संक्रांति के पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है. इस दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्व है. इस दिन किया गया दान अक्षय फलदायी होता है. शनि देव के लिए प्रकाश का दान करना भी बहुत शुभ होता है. (संक्रान्ति के दौरान किए जाने वाले दान)नए बर्तन, कांसे के बर्तन (तिल और घी से भरे और उस पर सूर्य के चित्र के साथ), भोजन, कपड़ा, तिल, गुड़, गाय का चारा, ऊनी कपड़े, गर्म कपड़े, घी, भूमि, गाय, दो दीपक, दो दर्पण, अनाज, दलिया, हल्दी, नारियल आदि से भरे कटोरे किसी दाता को दान देना चाहिए।
टिप ः– इस वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जाएगी.
– पं. श्री करण गोपाल पुरोहित (शर्मा)
विलासनगर गली नं. 2, हनुमान मंदिर के पास, अमरावती

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