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विधायक का विवादित बयान

बुलढाणा के विधायक संजय गायकवाड व्दारा एक बयान में कहा गया है कि कोरोना के दौर में मंदिर बंद है. भगवान को लॉक किया गया है. इस महामारी के दौर में आपकों बचाने कोई नहीं आयेगा. इसलिए व्रत, उपवास बंद करो व मांसाहार आरंभ करो. विधायक के इस बयान की वारकरी संप्रदाय ने तीव्र शब्दों में निंदा की है. मुख्य बात तो यह कि विधायक व्दारा लोगों को महामारी से बचाव के लिए जो सलाह दी गई है वह किसी फाईव स्टार से कम नहीं है. विधायक महोदय कहते है कि व्रत, उपवास बंद करो, रोजाना 4 अंडे खाओ, एक दिन के अंतराल में चिकन का भोजन करे और प्रोटीन युक्त पदार्थ को पर्याप्त मात्रा में आहार में ले. विगत एक वर्ष से जारी लॉकडाउन, कोरोना संक्रमण के कारण जारी अनेक प्रतिबंधों के चलते वर्तमान में लोगों के पास दो समय की नमक रोटी भी मिलना कठिन हो गई है. ऐसे में वे अंडे, चिकन तथा प्रोटीन युक्त पदार्थों के लिए धन कहा से लायेंगे. विधायक के अनुसार इस महामारी में कोई बचाने आने वाला नहीं है. ऐसे में फिर लोगों पर इतने अधिक प्रतिबंध क्यों लादे जा रहे है. जब उन्हें नियमों का पालन करने के बाद भी बीमारियों का शिकार होना पडेगा तथा भुख से बिलखकर दम तोडना होगा तो कोेरोना संक्रमण भी उनका क्या बिगाड लेगा. क्योंकि भुखमरी अपने आप में ही सबसे बडी महामारी है. विश्व में भुखमरी को लेकर कई बार अनेक मामले सामने आये है. चाहे कुपोषण की चर्चा में भुखमरी की बात सामने आयी हो या कारोबार बंद होने के कारण लोगों को घेरते आर्थिक संकट के कारण स्थिति निर्माण हुई हो. उसे देखते हुए यह लगता है कि एक बहुत बडा वर्ग जो रोज कमाकर रोज खाने की जीवनशैली अपनाता है. उन्हें सहायता देने की बजाय सत्ताधारियों व्दारा नये नये बयान दिये जा रहे है. यदि संक्रमण रोकने का इतना ही ख्याल है तो क्यों नहीं अपनी स्वयं की निधि से स्लम बस्तियों ेमें पोषाहार का वितरण करे. भले ही पोषाहार उपलब्ध न हो तो सामान्य तौर पर रोजमर्रा की जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुएं दी जानी चाहिए. इससे उनका दो समय का चुल्हा जल सके. इस ओर कोई सहयोग देने की बजाया अनेक नेतागन अपनी मर्जी के मुताबिक बयान दे रहे है. विशेष यह कि बयान देते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि उनके बयान बाजी से एक बहुत बडे वर्ग की भावनाएं आहत होती है.
विधायक महोदय जैसे मंदिर इस समय बंद है तथा भगवान लॉक है. ऐसे में लोगों को कोई बचाने नहीं आयेगा. चुंकि विधायक महोदय का चिंतन अंत्यत सीमित है. जिसके चलते वे ऐसी बात कह पा रहे है. उन्हें भारतीय अध्यात्म के बारे में पता नहीं. भगवान की मूरत चाहे लॉक में रहे या खुले में विचरन करे, भक्तों पर कोई असर नहीं होता है. कोरोना संक्रमण से पूर्व भगवान केवल मंदिरों में ही थे, लेकिन अब वे मंदिरों से निकलकर लोगों के घरों में पहुंंच गए है. यहां तक की अनेक भक्तों के हृदय में भी उन्होेेंने अपना वास कर लिया है. केवल मंदिरों में ही भगवान को नहीं खोजा जाता है. हर संप्रदाय में भगवान को सर्वव्यापी कहा गया है. जिस समय पृथ्वीपर अनाचार बढ गया था तब पृथ्वी पर इस बात को लेकर चिंता की जाने लगी थी कि राक्षसी वृत्ति को नष्ट करने के लिए भगवान से प्रार्थना की जाए तब देवलोक में हर कोई अपने-अपने तरीके से भगवान के रहने की जगह बता रहा था. उस समय भगवान शिव ने कहा कि ‘हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम के प्रगट होई मैं जाना’. जाहीर है भारतीय संस्कृति में भगवान हर जगह है. उन्हें मंदिर बंद होेने से या खुले रहने से विशेष फर्क नहीं पडता.
ईश्वर के प्रति आस्था लगभग सभी लोगों में रहती है. जिस तरह दवा लेते समय कुछ परहेज जरुरी है. उसी तरह ईश्वरी आस्था को कायम रखने के लिए व्रत, उपवास जैसी परंपरा भी हमारे ऋषि-मुनियों ने स्थापीत की थी. जिसका आज तक पालन हो रहा है. इसलिए उपवास, व्रत आस्था का विषय है. यह देशवासियों की सहिष्णुता है कि वे वर्तमान सरकार व्दारा जारी निर्देशों में मंदिर बंद होने के आदेश का भी एक जिम्मेदार नागरिक की तरह पालन कर रहे है.इस हालत में उन्हें भले ही अपने इष्ट के दर्शन न हो पा रहे हो लेकिन उनके दिल में आस्थाओं का स्थान आज भी उतना ही बना हुआ है. इस हालत में किसी भी नेता को मनमानी बयानबाजी करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी की भावनाएं आहत न हो. बुलढाणा के विधायक व्दारा जिस तरह की बयानबाजी की गई उससे स्पष्ट है कि राजनीति से जुडे लोगों व्दारा किसी बात को प्रस्तुत करते समय उसके प्रभाव को नजरअंदाज किया जाता है. इसलिए जरुरी है कि धार्मिक मामलों में अव्वल इस तरह के बयान देना ही नहीं चाहिए, यदि देना है तो उसके हर पहलुओं पर विचार कर दिया जाना चाहिए. बहरहाल बुलढाणा के विधायक को चाहिए कि वह अपने बयान पर चिंतन करे. उच्च पद पर आसीन होना बडी बात नहीं है. पद कि हिसाब से विचारधारा भी होनी चाहिए. बेशक हर किसी को अपनी राय देने का अधिकार है, लेकिन राय देते समय औरोें की भावनाओं का भी ख्याल रखा जाना चाहिए.

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