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आई मला खेळायला जायचय…

बचपन की याद की जाये तो हरएक की आंखों के सामने आती है पुरानी यादें. फिर से वहीं आवाज, वहीं जोरशोर, अपने मित्रों के साथ खेले गये विविध खेल, लुकाछिपी, दौड़, खिलौने, गुड्डे-गुड़ियों की शादी, कबड्डी और सभी का पसंदीदा खेल क्रिकेट और फिर प्रत्येक के मुंह से निकलता है वह यानि मां की पुकार मां मुझे खेलने जाना है.
बचपन कितना भी सुंदर क्यों न हो, हम भी अपनी मां से ऐसी ही विनती करते थे कि आई मला जाऊ देना व खेळायला. लेकिन अपनी मां तुरंत ही हमें खेलने के लिये जाने की अनुमति नहीं देती थी. थोड़ी देर तो भी विनती करनी पड़ती थी, फिर कही उधर से आने के बाद पढ़ाई करेंगे, इस आश्वासन पर मां अनुमति देती थी.
फिर क्या था खुशियां ही खुशिया, अपनी मित्र मंडली के साथ विविध खेल खेलना, खेलने में पूरा समय बीत जाता था कि वक्त का पता ही नहीं चलता था. फिर आखिर में मां को बुलाने के लिये आना ही पड़ता था, फिर मां हमें टाट डपट करते घर ले जाती थी. लेकिन मां के गुस्सा करने में भी प्रेम होता था है ना?
लेकिन अब यह हमेंं बहुत कम देखने को मिलता है. विज्ञान व्दारा की गई प्रगति के कारण मैदानी खेल चार दीवारों के भीतर कब आ गये पता ही नहीं चला. ऐसी इस परिस्थिति में अब कोरोना महामारी ने गत डेढ़ वर्षों से अत्यंत भयानक परिस्थिति निर्माण कर यह बीमारी अपने देश में आयी. इस कारण सभी ओर कड़ा लॉकडाऊन लगा, घर के ज्येष्ठों से लेकर बच्चों तक किसी भी घर से बाहर निकलने में मनाही होने के कारण मैदान में खेलने जाना मानो सपना बनकर रह गया हो.
आज की परिस्थिति को देखते हुए ऐसा कहने की इच्छा होती है हे ईश्वर यह संकट जल्द से जल्द खत्म होने दो और फिर से एक बार हम बच्चों को पहले के समान खेल खेलने दो बचपन का आनंद लेने दो और फिर से एक बार मां के कानों में वह पुकार आने दो… आई मला खेळायला जायचय.
– हिमांशु अजय तराले, मधुराशिष कॉलोनी, अमरावती

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