लेख

मेरे दोस्त सोमेश्वर पुसदकर तुम बहुत याद आयोगे

सोमेश्वर पुसदकर को कभी हताश, निराश, हारी अवस्था में नहीं देखा. हम मित्रों को पता है, प्रसंग परिस्थितियां कैसी भी हो,सोमेश्वर हिम्मत और कुशलता के साथ शांत मन से अपने हाथ के किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचाता था. यकिन नहीं होता कि वह किसी को भनक भी नहीं लगने देगा और चुपचाप दुनिया से विदा हो जायेगा. ६.५९ पर हम ६ लोगों के वॉट्स अॅप ग्रुप के एक जोक पर हंस रहे थे. इसके बाद ढाई घंटे में ही मैसेज आया, सोमेश्वर इस दुनिया में नहीं रहा. विश्वास करे तो भी कैसे? विश्वास नहीं होता कि वह चला गया. लगता है जैसे टेन्शन घेवू नका ना भाऊ, मी सगळं व्यवस्थित करतो कहते हुए वह किसी भी क्षण सामने आकर खड़ा हो जायेगा.
मौत की क्या कीमिया होती है, कहना कठिन है. कभी हतोत्साहित न होनेवाला  सोमेश्वर डेढ़-दो महिने से दूसरी ही भाषा बोलने लगा था. कोरोना के कारण दो महिने घर में बंद रहने के बाद उसने की आगे बढ़ाकर पुराने यारों से मिलने की ठानी. मुझे  बंडुभाऊ खोरगडे,अविनाश असनारे, विजय हरवानी की जमा कर हर दो-चार दिन की आड़ में खोरगडे वकील साहब के फार्म पर शाम हमारी महफिल जमने लगी. पहले हायवे पर घूमना, फिर घर से लाए डिब्बों पर हाथ साफ करना. हंसी-मजाक,यहां-वहां जाने की प्लानिंग जैसा सबकुछ मई महिने में कोरोना के कारण देशभर में मजदूरों का घरों को लौटना शुरू था. नागपुर मार्ग पर वहार्ड और सब कुछ सेवाभावी संस्थाएं भोजन  की मुफ्त व्यवस्था कर रहे थे. एक दिन वह हमें लेकर वहां गया. हीमाणसं खूब महत्वाचं काम करत आहे. अविनाश भाऊ तुमच्या कॉलम में यांच्याबद्दल लिहा, ऐसा कहते हुए उस दिन उसकी जेब में जितने पैैसे थे. सभी उसने वर्हाड के पदाधिकारियों को दे दिए.
यह सब शुरू रहते “मला अलीकडे खूप डिप्रेस वाटत आहेे पोरं खूप लहान आहते. त्यांची चिता वाटते” बीच-बीच में बोलने लगता. हम अपनी तरह से उसे समझाते. कुछ भी हो सोमेश्वर मन से मजबूत था.अपनी जिदंगी में बुरे दिन भी उसने देखे थे. ३०० रूपये की नौकरी से शुरूआत कर परिस्थितियों से संघर्ष कर उसने सफलता प्राप्त की थी. अब वह यशस्वी प्रभावी माना जाता था, लेकिन उसने अपने संघर्ष के दिनों को कभी नही भुलाया. जो भी  परेशान दिखाई देता उसकी वह मदद करता था. कोरोना के समय कुछ पत्रकारों की नौकरी गई. सुनकर वह कहता अपन मिलकर इन्हें कहीं न कहीं नौकरी देने की कोशिश करेंगे. एक-दो को उसने खुद फोन कर सांत्वना भी दी थी.
कहने को सोमेश्वर व्यावसायिक, राजनीतिक था, पर उसे मानवता से बेहद लगाव था. उसके इसी गुण के कारण विविध क्षेत्र के छोटे-बड़े लोग उसके साथ स्नेह संबंधों से बंधे रहते. पत्रकारिता में रहते कई बार शिवसेना व सोमेश्वर के विरोध में भी कालम में लिखने को आ जाता था, लेकिन  इससे हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ता था न उसने कभी मेरी पत्रकारिता में दखल दी,न मैने उसके राजनीति में २००८-०९ में सोमेश्वर, रघु, बंडुभाऊ  खोरगडे, वैभव दलाल, अविनाश असनारे और भी कुछ मित्र एक वर्ष सिक्किम-दार्जिलिंग, दूसरे वर्ष हिमाचल प्रदेश के दुर्गम भागों में घूमकर आए. तब यात्रा के दौरान सोमेश्वर के संबंध और नियोजन पर नजर गई. किसी भी  हालत में हायपर होने का नहीं. एक प्रसंग याद आता है.२००९ को जिस दिन हमें सिक्किम से लौटना था. उसके एक शाम पहले अचानक गोरखा मुक्ति मोर्चा ने रास्ता रोको आंदोलन छेड़ दिया. बागडोगरा से हमारा वापसी का विमान सुबह ११ बजे था. चिंता तो सभी को थी कि आंदोलन के कारण हम शायद ही समय पर विमान पकड़ सके. लेकिन वह था कि पूरी तरह शांत,कहने लगा, तुम्ही शांत झोपा, की बघतो. वह बाहर गया,क्या करामत की मालूम नहीं, लेकिन दूसरे दिन सुबह जब हम बागडोगरा के लिए निकले  तक एक लक्जरी गाड़ी हमें एस्कार्ट कर रही थी. उसने हमें सीधे हवाई अड्डे ले जाकर छोड़ा. ऐसी करामाते सोमेश्वर के लिए सामान्य बात थी. आगे भी कई बार ऐसा प्रतीत हुआ.
पत्रकारिता में रहते अनेक प्रभावी लोगों को करीब से देखा, लेकिन सोमेश्वर  जैसा उत्कृष्ट आयोजक,संगठन नहीं देखा.नहीं शब्द उसकी डिक्शनरी में नहीं था. कैसी भी अडचनों को वह स्वयं सुलझाता था. शिवसेना जिला प्रमुख से आगे किसी पद पर वह रहा नहीं, लेकिन किसी भी विधायक मंत्री की अपेक्षा वह अधिक प्रभावी था. कई लोग अपने व्यक्तिगत कामों के लिए सोमेश्वर के पास आते थे. क्योंकि केवल राजनीति में ही नहीं साहित्य,खेल, शिक्षा  जैसे कितने ही क्षेत्रों में उनके व्यापक संबंध थे. प्रभाकरराव वैद्य, बी.टी. देशमुख, गिरीश गांधी, किशोर देशपांडे जैसे माई-बाप भी सोमेश्वर की जरूरत को महसूस करते थे.ऐसे लोगोंं को सोमेश्वर समाज की धरोहर मानता था और उनका हर तरह से ख्याल रखना अपना कर्तव्य समझता था. हर साल सुरेश भट के स्मृति दिवस पर वह खुद कार्यक्रम आयोजित करता था.सोमेश्वर ने जितने विधायक काम किए उसकी गिनती करना संभव ही नहीं हैे. शैक्षणिक सत्र की शुरूआत में जरूरतमंद लड़कों की फीस भरना, किताबें देना उसका नियमित कार्य था. बीते १०-१५ सालों में अमरावती में जो भी भव्य-दिव्य कार्यक्रम हुए है. उनमें किन्हीं अर्थो में सोमेश्वर शामिल रहा है. प्रतिभाताई पााटिल के राष्ट्रपति बनने के बाद राज्य का पहला भव्य सत्कार कार्यक्रम सोमेश्वर ने ही आयोजित किया था
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उध्दव ठाकरे से लेकर शिवसेना के सारे बड़े नेता उसे व्यक्तिगत तौर पर जानते थे. पार्टी अडचन में होतो वह उसे सलाह भी करते.लेकिन उसे राजनीाितक ताकत देने पर पार्टी ने कभी भी विचार नहीं किया. उसके बावजूद सोमेश्वर की शिवसेना पर अडिग आस्था थी. वह कहता था, जो पहचान मिली है वह शिवसेना से मिली हैे इसलिए काम करते रहना चाहिए. अपनी राह बड़ी करते जाना चाहिए. बाद के वक्त में उसने ऐसा ही किया. २००९ में अमरावती में इंडिया बुल का थर्मल प्रोजेक्ट आया. प्रकल्प के लिए किसानों के हक का पानी दिया गया. इसके विरोध मेें बी. टी. देशमुख, प्रभाकरराव वैद्य के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय तक लड़ाई लड़ी गई. विदर्भ के अनुशेष के प्रश्न पर भी सोमेश्वर ने अच्छा अध्ययन किया. सालो तक कई विविध व्यासपीठ पर यह सवाल उठाए जाते रहे.
विद्यापीठ के व्यवस्थापन परिषद का सदस्य रहते विद्यार्थियों के हित में अनेक निर्णय उसने लेकर दिखाए. वह प्राय: कहा करता, अलग-अलग राजनीतिक पार्टी,सामाजिक  संगठन, उसके पदाधिकारी हर तरह से मदद करते रहते. यह हमारे बुधवारा के संस्कार हैे. पिछली पीढ़ी बहुत-बहुत भली थी. उनकी तुलना में मैं कुछ भी नहीं हूॅ. किसी के प्रति उसके दिल में किसी तरह की कटुता नहीं देखी. कभी वह यारो का यार था, कमाल का दिलदार और खुशमिजाज था और ऐसे आदमी का अचानक चला जाना बेहद वेदना देनेवाली घटना है. मरने के बाद आदमी का क्या होता है यह तो मालूम नहीं.  
someshwar-pusadkar-amravati-mandalलेकिन  मुझे यकीन  वह जहां कहीं भी गया होगा वहां भी यहां जैसी दुनिया ही आबाद करेगा. सोमेश्वर यार तुम बहुत याद आयोगे.
                                                                                                                                         अविनाश दुधे.
                                                                                                                           (मीडिया वॉच व पोर्टल के संपादक)

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