‘पिंजडे में बंद रहकर मालिक द्बारा मुहैया किया गया अमरुद और मिर्च खाने की बजाए
मैंने खुला आकाश चुनना पसंद किया.
अपने पंखों पर भरोसा जो था!’
सुबह के साढे दस बज रहे हैं. रामपुरी-कैम्प से सीधे राजकमल चौक. वहां से बायीं ओर मुड कर सौ कदम पर गावंडे मार्केट मेें स्थित ऑफिस में पहुंचने का समय. कई सालों से जारी है, यह सिलसिला. दोपहर एक बजे तक मिलेंगे वे यहां. फिर शाम को पांच से रात आठ बजे तक. आज 80 साल के हो गये हैं, फिर भी पहचान लेंगे आप उन्हें. कोई फर्क नहीं पडा है उनमें. मार्च 1963 में 10,000 की पहली बीमा पॉलिसी देते वक्त जैसे थे, वैसे ही आज भी है, नारायणदास जी पारवानी.
अमरावती शहर ने आसमान छू लिया जीवन बीमा के क्षेत्र में भारतीय जीवन बीमा निगम की मात्र एक शाखा थी, अब चार हो गयीं. पश्चिम विदर्भ के पांच जिलों का मंडल कार्यालय खुल गया. एक हजार से अधिक बीमा-अधिकर्ता. साल-दर-साल एमडीआरटी और कोर्ट ऑफ टेबल जैसे एक से बढकर एक अंतराष्ट्रीय सम्मानों से लबरेज. लेकिन अच्छी-भली, एलआईसी की कार्यालयीन नौकरी छोडकर पिछले 58 साल से जीवन-बीमा क्षेत्र में ‘फुल-टाइम’ सक्रिय रहते हुए ‘बीमा-महषि’ के रुप में अपनी पहचान कायम करने वाले नारायणदास जी एकमात्र हैं. सोचा, क्यों न उनसे जरा बात की जाए?
प्रश्न: पारवानी जी, ऑफिस में नौकरी कर रहे होते तो, आज से बीस साल पहले रिटायर होकर घर में आराम कर रहे होते. आपको क्या पडी थी, ये भागदौड भरा व्यवसाय चुनने की?
उत्तर: नौकरी छोडते वक्त इस विकल्प पर बहुत सोचा था. आखिर पिंजडे में बंद रहकर मालिक द्बारा मुहैया किया गया अमरुद और मिर्च खाने की बजाए मैंने खुला आकाश चुनना पसंद किया. अपने पंखों पर भरोसा जो था! यहां हर कदम पर चुनौती है. पहले केवल भारतीय जीवन बीमा निगम के ही अभिकर्ता हुआ करते थे मार्केट में. अब बाईस और भी कंपनियां हैं. उनके अभिकर्ता हैं. उनके प्रॉडक्टस हैं. हर साल एक नया लक्ष्य, हर पॉलिसी एक नयी चुनौती. ऐसे में न केवल अपना अस्तित्व बनाये रखना अपितु नयी उंचाइयां प्राप्त करते जाना अपने आप में एक ‘थ्रिल’ है.
प्रश्न: आपको ज्यादा खुशी कब होती है? नयी पॉलिसी देते हैं तब या क्लेम का भुगतान होता है, तब?
उत्तर: क्लेम और वह भी मैच्युरिटी-क्लेम का भुगतान होता है, तब. क्योंकि बीमा-धारक पॉलिसी के रुप में एक सपना खरीदता है. बच्चों की पढाई का सपना, मकान का सपना, बेटी के ब्याह का सपना, बुढापे के प्रावधान का सपना. मैच्युरिटी-क्लेम इन सारे सपनों के साकार होने का अवसर होता है, इसलिए सर्वाधिक आनंद होता है.
प्रश्न: अपनी उल्लेखनीय उपलब्धि किसे कहेंगे?
उत्तर: उपलब्धियां कई हैं. 1976 में मैं अमरावती से पहला चेअरमैन-क्लब मेंबर बना. तब पूरे भारत में मात्र 100 एजंट सीएम-क्लब मेंबर थे. आज 40,000 से अधिक हैं. वर्ष 2002 में बीमा-व्यवसाय के अंतराष्ट्रीय सर्वोच्च शिखर एमडीआरटी के लिए क्वालिफाई करके लॉस वेगास (यूएसए) जाकर सन्मानित होनेवाला अमरावती से पहला एजंट था. 1983-84 में उच्च-पदस्थ अधिकारियों का सालाना वेतन 40,000 रु. था तब मैंने एक लाख ेसे अधिक (1,05,875) वार्षिक रिन्यूअल कमीशन अर्जित करके बीमा-अभिकर्ता के प्रोफेशन को एक सन्मानित व्यवसाय के रुप में स्थापित किया.
1987-88 मेें 1 करोड 41 लाख से अधिक का नया व्यवसाय करके विदर्भ में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया. 13 अप्रैल 2006 को समाज ने ‘संत कंवरराम सिंधी रत्न-अवॉड’ से सन्मानित किया. इस प्रकार की और भी कई उपलब्धियां हैं.
प्रश्न: आपने अपने 58 साल की एजंसी में 2000 से अधिक लोगों को 5000 से अधिक बीमा-पॉलिसी दी हैं. इस दौरान ऐसा कोई अनुभव जो आपको सर्वाधिक सुखदायी लगा हो!
उत्तर: अनुभव अनेक हैं. एक अभी जो याद आ रहा है, वह बतलाता हूं. एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे जो कांग्रेस के लीडर भी थे. उनकी 6 लाख 50 हजार की बीमा पॉलिसियां थीं. एक दिन आकर कहने लगे, ‘भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा हूं. सारी पॉलिसिज सरेंडर करके जो भी पैसा मिल सकता है, दिला दीजिए.’ मैंने हिसाब लगाया, करीब डेढ लाख रुपया मिल सकता था. कहने लगे ‘मुझे आज ही 30,000 की सख्त जरुरत है.’ मैंने 30,000 की व्यवस्था कर दी. बात टल गयी. कुछ ही दिनों में एक मनी-बैंक पॉलिसी का क्लेम मिल गया. वे पॉलिसिज के प्रीमियम भरने लगे. कुछ मनी-बैक पॉलिसिज के क्लेम मिलते रहे. पॉलिसिज बंद होने से बच गयीं. वर्ष 2002 में उनका अकस्मात निधन हो गया. परिवार में 12,50,000 रुपए का क्लेम मिला. उस समय पूरे परिवार के चेहरे पर कृतज्ञता के जो भाव देखें, उन्हें जीवनभर भुलाया नहीं जा सकता.
प्रश्न: एलआईसी की ओर भी कई प्रतिद्बंद्बी कंपनियां हैैं. क्या आपको उनसे जुडने की इच्छा नहीं हुई?
उत्तर: कई कंपनियां हैं. उनकी ओर से मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के प्रयत्न भी हुए. लेकिन एलआईसी छोडकर उनसे जुडना यानी एक निर्मल जल के विशाल स्त्रोत को छोडकर किसी कुएं को अपनाने के समान होता. सारी 22 कंपनियां मिलकर एलआईसी से आधा भी व्यवसाय नहीं कर पा रही हैं. दूसरी बात है कि, लगातार 65 साल से बीमा-व्यवसाय में कार्यरत एलआईसी ने जो प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता अर्जित की है, उसका कोई सानी नहीं है. इसी कारण मैंने अपने पुत्र महेश को एलआईसी का ही एजंट बनने की सलाह दी और आज वो भी पिछले कई सालों से एमडीआरटी क्वालिफाई कर रहा है.
प्रश्न: डॉक्टरी-शिक्षा में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय स्तर पर कडी स्पर्धा-परीक्षा से गुजरना पडता है. इसके बावजूद सुना है, आपके परिवार में बडी संख्या में डॉक्टर्स हैं या मेडिकल-शिक्षा ले रहे हैं. क्या यह सच है?
उत्तर: यह बात पिछले वर्ष तब चर्चा में आयी जब मेरा नवासा (दोहता) सीईटी में पूरे भारत में 115वें स्थान पर आया. उससे पूर्व मेरे दो पुत्र, एक बहू, पुत्री, दामाद, पोते, पोतियां आदि दस (10) डॉक्टर्स हैं या प्रशिक्षण ले रहे हैं. यह मेेरे लिए गौरव की बात जरुर है, पर इसे मैं शत-प्रतिशत उनकी बुद्धिमत्ता और ईश्वर की कृपा मानता हूं.
प्रश्न: आज आप अस्सी के हो गये हैं. क्या अब तक के अपने जीवन से संतुष्ट है?
उत्तर: जी हां, मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं. अपने बीमा-धारकों को सेवा देने में मुझे अद्भूत आनंद मिलता हैं.
उनके चेहरे पर खिली समाधानी-मुस्कान देखकर मैं अपनी उम्र भूल जाता हूं. संक्षेप में, इस व्यवसाय से मुझे समृद्धि, मान-सन्मान, परिवार, खुशी, संतोष, सबकुछ मिला. जीने के लिए इसके अलावा और चाहिये भी क्या? सुनकर मुझे एक छोटा-सा शेर याद आ जाता हैं: ‘कदम बढा पूरी ताकत से, तज से भय के भाव मंजिल खुद बढकर चूमेगी, राही तेरे पांव.’
80वें जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं देकर और ‘फिर मिलेंगे’ कहकर मैं पारवानी जी से बिदा लेता हूं.
– भगवान वैद्य ‘प्रखर’
मो. 9422856767