प्राकृतिक ऑक्सीजन का जतन
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान एक बात प्रखरता से सामने आयी है कि ऑक्सीजन समय पर न मिलने के कारण अनेक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा . हालाकि विगत अनेक वर्षो से यह आशंका जताई जा रही है कि पेड पौधों की कटाई नियंत्रित नहीं की गई तो आनेवाले समय में प्राणवायु मिलना कठिन हो जायेगा. निश्चित रूप से यह स्थिति सामान्य व्यक्ति के लिए भयावह साबित होगी. हर वर्ष ५ जून को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण दिन मनाया जाता है. महाराष्ट्र में भी तीन वर्ष पूर्व तक इस दिन को आस्था एवं उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है. लेकिन विगत वर्ष में कोरोना संक्रमण के चलते इस दिन के प्रति उदासीनता का माहौल रहा. सरकारी स्तर पर आयोजनों की कमी रही. वहीं पर सेवाभावी एवं पर्यावरण प्रेमी संस्थाओं को भी आयोजन की अनुमति नहीं मिल पायी. जिसके कारण हर वर्ष पर्यावरण का अनुशेष बढता जा रहा है. इसके लिए सरकारी विरोधाभास को भी जिम्मेदार माना जा सकता है. कुछ वर्ष पूर्व तक अनेक सेवाभावी संस्थाएं शहर के विभिन्न खुले स्थानों पर पौधे रोपित किए जाते रहे है. पर्यावरण के संकट की समस्या को समझते हुए अनेक सेवाभावी संस्थाओं ने पौधोरोपण का कार्य आरंभ किया था. लेकिन विगत दो वर्षो से कोरोना संक्रमण के चलते पर्यावरण दिन को नहीं मनाया जा रहा है. इन दिनों अनेक नेतागण द्वारा ऑक्सीजन प्लांट लगाने का कार्य शुरू है. यह एक अच्छी बात है. इससे मरीजों को ऑक्सीजन की कमी नहीं होने दी जायेगी.
ऑक्सीजन की इस कमी को कृत्रिम संसांधनों द्वारा पूरा करने का कार्य जारी है. जगह-जगह ऑक्सीजन के प्लांट निर्मित हो रहे है. इससे अस्पतालों में कोविड-१९ के मरीजों को ऑक्सीजन के अभाव में दम न तोडना पडे. लेकिन अभी इन प्रयासों से लोगों का जीवन बचाना जरूरी है. पर इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि जरूरी है कि पर्यावरण की क्षति को रोका जाए. पर्यावरण की समस्या को समझते हुए अनेक जनप्रतिनिधियों को लेकर आम नागरिको ने हर वर्ष पौधारोपण आरंभ किया था. हर वर्ष लाखों की संख्या में पौधे पर्यावरण संवर्धन के लिए सामाजिक संस्था के पदाधिकारियों द्वारा बडे पैमाने पर पौधे लगाए जाते थे. लेकिन वर्तमान में पौधारोपण को लेकर प्रशासन के पास कोई योजना नहीं है. जबकि पर्यावरण दिन केवल चार दिन रह गया है. ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि पर्यावरण संवर्धन की दिशा में कदम उठाए. सरकारी स्तर पर यदि यह कार्य नहीं होता है तो सेवाभावी संस्थाओं के सहयोग से यह कार्य किया जाना चाहिए. पर सरकारी स्तर पर पर्यावरण जतन का कार्य की कोई योजना नहीं है. सेवाभावी संस्थाओं के लिए कोई भी सामाजिक और धार्मिक आयोजन पर पाबंदी लगाई गई है. ऐसे में ऑक्सीजन का जतन कैसे होगा.
आमतौर पर प्रशासन हर कार्य में नागरिको की सहभागिता रखता आया है. चाहे गणेशोत्सव के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने का प्रश्न हो तो पुलिस प्रशासन की ओर से पुलिस सेवामित्र की मदद ली जाती है. उन्हें साथ में रख व्यवस्था की दिशा में कार्य किया जाता है. इसी तरह अन्य क्षेत्रो में भी जनता का सहयोग लिया जाता है. पर्यावरण की समस्या अत्यंत जटिल होती जा रही है. इसके लिए अति आवश्यक है कि सरकार अपने स्तर पर पर्यावरण जतन का न केवल प्रयास करे. बल्कि जो सेवाभावी संस्थाएं पर्यावरण जतन के लिए आगे आना चाहती है. उन्हें योग्य सहयोग दे. कुछ वर्षो पूर्व शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के ७५ वे जन्मदिवस पर ७५ हजार पौधे रोपित करने का कार्य किया गया. इसके पीछे मुख्य उद्देश्य पर्यावरण जतन ही थाा. आज पर्यावरण मंत्रालय स्व. बालासाहब ठाकरे के पौत्र आदित्य ठाकरे के पास है. इस हालत में यह अपेक्षा अवश्य की जा सकती है कि इस वर्ष पर्यावरण संवर्धन के लिए वे स्वयं पहल करेंगे. पर्यावरण प्रेमी संस्थाओं को न केवल प्रोत्साहित करेंगे बल्कि उनके पर्यावरण संबंधी लक्ष्य को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगेप्त
कुल मिलाकर देश में जो ऑक्सीजन का संकट उभर रहा है वह कृत्रिम संसाधनो के माध्यम से नहीं सुलझ सकेगा
. इसके लिए पर्यावरण के मूल स्त्रोत पेड पौधों के रोपण पर ध्यान देना जरूरी है. केवल पौधारोपण तक स्वयं को सीमित नहीं करना है. उसके जतन का भी ध्यान देना आवश्यक है. यदि पर्यावरण के प्रति हर कोई अपने दायित्व का निवर्हन करे तो निश्चित रूप से इसके सार्थक परिणाम सामने आयेंगे.