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परस्पर सहयोग ही देगा राहत

कोरोना संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा है. संक्रमण का यह दौर विगत मार्च माह से आरंभ हुआ है. जो अब तक जारी है. स्पष्ट हैकि सरकार के पास न तो कोई ठोस योजना है और न ही लोगों को बीमारी से निजात दिलाने के लिए रूपरेखा. केवल लॉकडाउन का ही एकमात्र विकल्प सरकार के पास है. जिसके जरिए वह इस कोरोना के संक्रमण को दूर करने के लिए प्रयास कर रही है. इस बात की अनुभूति देश के हर बच्चे-बच्चे को है कि जब तक रोजगार सुचारू नहीं होते तब तक अनेक घरों में चूल्हा जल नहीं पायेगा. लेकिन इस बात को न तो प्रशासन स्वीकार करना चाहता है और न ही सरकारे. लोगों की पीडा को देखते हुए अनेक सामाजिक संस्थाएं जरूरतमंद लोगों को सहायता देने के लिए आगे आ रही है. अमरावती में अनेक संस्थाएं कोरोना से संक्रमित के परिजनों को नि:शुल्क भोजन व आवास की सुविधा उपलब्ध करा रही है. अनेक संस्थाएं लॉकडाउन के कारण रोजगार से वंचित परिवारो को खाद्यान्न की कीट प्रदान कर रही है. जबकि सरकारी स्तर पर मिलनेवाला राशन भी लोगों को समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. कोरोना का संक्रमण कब थमेगा यह कहा नहीं जा सकता. क्योकि पहली लहर, दूसरी लहर और पता नहीं कितनी लहर आती रहेगी व बीमारी का संक्रमण जारी रहेगा. ऐसे में सरकारी स्तर पर जरूरतमंदों को कोई सहायता मिलेगी यह कहा नहीं जा सकता. लेकिन अनेक सेवाभावी संस्थाओं को जरूरतमंदों की पीडा का अहसास हो रहा है. यही कारण है कि वे लोगों की सहायता के लिए आगे आ रहे है. आमतौर पर पाया जाता है कि चुनाव के मुहाने पर अनेक नेतागण दानवीर कर्ण बन जाते है. राशन की कीट से लेकर ब्लैंकेट, अन्य सामग्री का वितरण करते है. लेकिन आज वे भी कहीं नजर नहीं आ रहे है. लोगों को आत्मनिर्भर रहने का मंत्र देकर उनके हाल पर ही छोड़ दिया गया है. करीब दो माह से जारी लॉकडाउन के बाद अब लोगोंं को उम्मीद थी कि जून से कुछ शिथिलता मिलेगी तथा सामान्य व्यक्ति की रोजी रोटी का सिलसिला आरंभ होगा. लेकिन इसमें भी अनेक शर्तो को रखा जा रहा है. पॉजिटीवविटी कम रही तो ही शिथिलता मिलेगी. इतने लंबे लॉकडाउन के बाद यदि पॉजिटीवविटी कम नहीं हो रही तो उसके लिए सामान्य नागरिक क्या कर पायेगा. मजबूर होकर जिस तरह उसने दो माह का संघर्ष झेला है. उसे और कुछ माह झेलने की मानसिकता बनानी पडेगी. भले ही मन बन भी जाए लेकिन रोजमर्रा की आवश्यकता की पूर्ति कौन करेगा. भूख केवल शब्दों से नहीं बूझती. उसके लिए अनाज की जरूरत होती है. लेकिन जिनके पास रोजगार नहीं है वे अनाज लाए तो भी कहा से्र, परिणामस्वरूप उन्हेें केवल लॉकडाउन समाप्त होने की पथराई नजरों से प्रतीक्षा करनी पड रही है. क्योंकि कोरोना संक्रमण के बाद अब लोगों के सामने ब्लैक फंगस, व्हाईट फंगस, येलो फंगस का खतरा भी कायम है. कोरोना के लिए जहां ऑक्सीजन, वेंटिलेटर व इंजेक्शन की मारामारी चल रही थी वह अब नई बीमारियों के उत्पन्न होने से फिर बढ गई है. अब समय आ चुका है मनुष्य ही मनुष्य का तारणहार बन सकता है. यदि सक्षम लोग जरूरतमंदों को सहायता करे तो जरूरतमंदों को योग्य आहार मिल सकता है.
लॉकडाउन भले ही जारी रखा जाए पर सभी लोगों को कुछ घंटों की रोजगार की ढील दे. इससे छोटे बडे रोजगार आरंभ हो जायेगे तो लोगों के पास कुछ पैसा आना आरंभ हो जायेगा. इससे कई लोगों की आजीविका चलेगी. इसलिए सरकार को चाहिए कि वह लॉकडाउन के मामले में गंभीरतापूर्वक विचार करे. यह तो स्पष्ट है कि लंबे लॉकडाउन के बाद भी पॉजटीवविटी कायम है. ऐसे में इस समस्या का निदान कैसे होगा. इस बारे में जानकार का मत लेना जरूरी है. केवल लॉकडाउन लगा देने से समस्या का हल नहीं निकल पायेगा. जरूरी है कि लोगों के घरों में खाली कनस्तर की गंभीरता को समझते हुए फिर से लोगों को रोजगार आरंभ करने का अवसर दिया जाए. सेवाभावी संस्थाओं को भी चाहिए कि वे अब जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सुविधा से लेकर भोजन आदि की व्यवस्था भी करने का प्रयास करे. हालाकि शहर में अनेक संस्थाएं इस कार्य को कर रही है. लेकिन अभी सही जरूरतमंदों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. इसलिए जरूरी है कि लॉकडाउन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण शिथिलताएं दी जाए. इससे आम नागरिक को राहत मिल सकती है.
कुल मिलाकर कोरोना संक्रमण का यह दौर लोगों की उम्मीदों पर असर कर रहा है. अनेक लोग निराशा की गर्त में जाने लगे है. यदि लॉकडाउन व अनेक प्रतिबंधों से कुछ लाभ होता दिखाई देता है तो जन सामान्य भी इस तरह के प्रतिबंधों को स्वीकार कर सकता है. दो माह से लगातार लोग इस पीडा को झेल ही रहे है. इसलिए प्रशासन को चाहिए कि वह जरूरतमंदों की पीडा को समझे व आनेवाले दिनों में लॉकडाउन में कुछ शिथिलताएं दे.

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