रिश्ते जीने की अदम्य ऊर्जा का संचार है राखी!
रक्त से स्वर्णिम भाई :- बहन का रिश्ता सिर्फ इमोशंस का ककहरा साथ नही पढ़ता बल्कि सबसे बड़ा हमराज , हमदर्द और हमराह भी होता है ।कलाई पर धागा बांधती बहन दुलार , मनुहार ,वॉर लाड़-प्यार को भी बांधती है , जो हर उतार -चढ़ाव में सानिध्य बना रहे कि मंगलकामना करता है । भाई भी नेग के रूप में उस अनकंडीशनल सपोर्ट को सुनिश्चित करता है , जो स्त्री की सबसे बड़ी पूंजी है ।
भाई -बहनों की हुड़दंग करती टोली आज मैच्योर प्रोफेशनल्स में बदल गई है और वर्तमान समय मे एक बच्चे के परिवार में समाप्त हो गई है ।भावनात्मक खालीपन का यह दौर ढेरो वर्चुअल रिश्ते बना रहा है , जहां औपचारिक अपनापन है । वाकई यह आत्ममंथन का समय है कि सोशल साइटस में प्रेम खोजा जाये या दो कदम बढ़ा अपनो से मिला जाये। जब उम्र कम थी तो कोई बात या हावभाव खराब लगने की मेंटल स्थिति नही थी । आयु स्तर और प्रायवेसी ने जन्म से जुड़े रिश्ते में भी बडे ईगो को जन्म दिया है । ऐसे में यह नितांत आवश्यक है कि परिपक्वता को री -डिफाइन किया जाये ।मैच्योरिटी का अर्थ यह नही कि नैसर्गिक प्रेम को अभिव्यक्त न करे । स्वाभाविक और सुंदरतम आनंद तो यही है कि अल्हडता बनी रहे …नेग मांगती बहने और नोकझोंक करते भाई सृष्टि का श्रृंगार यू ही बढ़ाते रहे ।
● अलग है मतभेद नही :- एक स्कूल में अध्यापिका मनीषा कहती है , हम दो भाई -बहन है । सभी का स्वभाव एक -दूसरे से एकदम अलग है ।छोटी -छोटी बातों पर हमारी बहस हो जाती है , पर ऐसे डिफरेंसेज नही है कि हम आपस मे एक -दूसरे से बोले नही या हमारा रिलेशन कमजोर हो जाये । भाई -बहन की विचारधारा और लाइफ स्टाइल एक जैसी होंगी , यह जरूरी नहीं है । हरेक का नजरिया बेहद व्यक्तिवादी इनपुट है , लेकिन इसे संबंधों पर हावी नहीं होने देना चाहिए । कोई भी विचार या मत इतना शक्तिशाली नही हो सकता जिसके लिये रिश्तों की प्राथमिकता बदल दी जाये ।
गृहणी और अपने पेशे की जिम्मेदारी कुशलता से निभा रही सुषमा अपने भाई को याद करती है और बात आगे बढ़ाते हुये भावुक हो जाती है । वह कहती है जब तक भाई मेरे शहर में था बड़ा सहारा और भरोसा था । किसी भी बहाने से दोनों थोड़ी देर भी साथ बैठ जाते थे तो जीवन फिर लौट आता था , लेकिन दूसरे शहर में उसका ट्रांसफर हो जाने के साथ लगता है वह हमदर्दी भी शिफ्ट हो गई ।
बचपन के गहरे साथी जब स्थितियों में बदलाव के कारण दूर हो जाते है तो संवादहीनता के कारण थोड़ी दूरी महसूस होने लगती है । शायद यही भारतीय संस्कृति की समृद्धता है कि वह पर्व के माध्यम से क्षण भर में वह दूरी पाट देती है । टाइप बी शहरों में रहने वाले लोग मेट्रोज की अपेक्षा डिफरेंस को आसानी से संभाल लेते है और बड़ा कारण है कि महानगरों की तरह हमे अवसाद और चिंता नहीं होती ।ऐसे में जरूरी है यह समझना कि आज स्ट्रेस मैनेजमेंट की पहली शर्त यही है कि अपनो को हर डिफरेंट वर्जन के साथ पूरी तरह अपनाये ।
◆परस्पर रक्षा का संकल्प है :- जरूरी नहीं है कि घर मे भाई होना ही चाहिए । अब जमाना बदल चुका है । लड़कियों वाले परिवार में हमेशा यह आशंका बनी रहती है कि भाई नही है , जीवन भर कौन निभायेंगा …! बहनों ने समूचे सोशल डाइनमिक्स को बदलते समय के साथ धत्ता बता दी , उन्होंने रिश्ते जीने की अदम्य ऊर्जा विकसित की , जहां बड़ी -बड़ी बहनों ने न केवल अपनी छोटी बहनों को पढ़ाया , बल्कि सर्वांगीण विकास कर इस योग्य भी बना दिया कि वह राष्ट्र की उन्नति कर सके ।दूसरी ओर छोटी बहनों ने भी ऐसा मान रखा कि बड़ी बहनों को गर्व से भर दिया ।
आज के परिवारों में बेटा -बेटी का महत्व नगण्य हो गया है । समान परवरिश , बेहतर शिक्षा , उत्कृष्ट संभावनाओं ने भाई – बहन की अवधारणा को सोशली रिप्लेस किया है । एक कॉलेज में लेक्चरार पिंकी कहती है , हम दो बहनें है , हमने कभी किसी लड़के की ओर नही ताका कि वह कहे और हम उसे राखी बांधे । हमारी परवरिश भी ऐसे हुई कि कभी यह ध्यान ही नही गया कि भाई है या नही । जब तक माता -पिता थे तब भी हम बहने आपस मे एक -दूसरे के सपोर्ट सिस्टम थे और आज भी एक -दूसरे में पूरा जीवन पा लेते है ।
यह उन्नत अवस्था है जब किसी संस्कृति में उसके उत्सवों और पर्वो का व्यवहारिक स्वरूप मुखर हो । रक्षाबंधन के त्योहार ने बहुत संकीर्णताओं को समाप्त किया है ।सही मायने में यह पर्व विचारधारा के विकास का आयोजन है ।
◆संकटमोचक भाई -बहन की जोड़ी :- जिम्मेदारियों , जवाबदेही और गृहस्थी ने हम सभी को इतना व्यस्त कर दिया है कि कभी भाई -बहन शेयर नहीं कर पाये अपनी बातों को , लेकिन उम्र बढ़ने के साथ एक -दूसरे की तकलीफों और खुशियों को सुनना बड़ा संबल देता है । गृहणी माया कहती है कि मेरी भाभी के देहांत के बाद मेरे भईया , जो मुझसे करीब सात साल बडे है , वह लगभग रोज ही फोन पर हालचाल ले लेते है । जब हम युवा थे तो भईया के बहुत सख्त व्यक्त्तित्व को देखकर यह लगता ही नहीं था कि कभी इनमें इतना बड़ा बदलाव आयेगा कि वह स्वयं पहल कर बात करेंगे …शायद इसी को भाई -बहन का प्यार कहते है । यह संभव है कि आजकल की आपाधापी भारी जिंदगी में कभी बरसो बरस समय ना मिले कि सुकून से भाई – बहन बात करे , पर जरूरत पड़ने पर वही भाई -बहन की जोड़ी सबसे बड़ी ट्रबलशूटर ( संकटमोचक ) बनकर उभरती है । ऐसे में यह विचारणीय है कि छोटी सी जिंदगी में बड़े रिश्ते जीने चाहिये ।
◆रक्षकों के प्रति आभार है राखी :- रक्षाबंधन यानी कि राखी बांधना । असल मे एक जिम्मेदार सोच से जुड़ा भाव है । अपने कर्तव्य को निभाने का वादा है ।अपने दायित्व को समझने का बोध लिये है । यही वजह है कि हमारे यहां सिर्फ भाई को ही राखी बांधने का रिवाज नही है । राखी के पर्व का संबंध रक्षा करने के वचन से जुड़ा है इसलिए जो भी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार जताने के लिए भी रक्षासूत्र बांधने की रवायत है । यही वजह है रक्षा के कई सूत्र सामाजिक सरोकार से भी जुड़े होते है । सरहद पर देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिये भी हर साल देशभर से राखियां भेजी जाती है ।यह कितना सुखद है कि धर्म , जाती और वर्ग से परे भारतीय बहने अपने सैनिक भाइयों के लिए पावन प्रेम में गूंथे रक्षासूत्र भेजती है ।सामाजिक जुड़ाव के भाव के चलते रक्षाबंधन का ऑयर पर्व केवल सगे भाई -बहन को ही समर्पित नही है । कई लोग अपनी मुंहबोली बहनों से भी राखी बंधवाते है ।रीत यह भी है कि कई घरों में पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बांधते है ।इस पावन पर्व से जुड़ा भाव ही इतना सुंदर है कि हमारे यहां सृष्टि के रचयिता ईश्वर को भी रक्षासूत्र बांधे जाने का रिवाज है ।
बचपन की यादों का चित्रहार है राखी,
हर घर मे खुशियों का उपहार है राखी
रिश्तों में मीठापन का अहसास है राखी
भाई-बहन का परस्पर विश्वास है राखी
दिल का सुकून और मीठा से जज्बात है राखी
शब्दो की नही पवित्र दिलो की बात है राखी
सौ. निवेदिता स्कंद जोशी
कुबेर विहार , गाड़ीतल
हडपसर, पुणे