लेख

राष्ट्रमाता कस्तुरबा

पूज्य महात्मा गांधी की सुविद्य पत्नी “कस्तुरबा” त्याग, तपस्या, सेवा और सादगी संपन्न शांत स्वभाव वाली एक आदर्श महिला थी. तथा सहचारिणी और सहधर्मिनी होकर पूज्य “बा” ने 62 वर्ष तक “बापू” को उत्साहपूर्ण सहयोग दिया. जीवन की अंतिम घडी तक दृढ रहकर सहजता से हंसते हुए बापू के संकल्पो में साथ दिया था.

पूज्य “बा” ने सदा पति के सुख संतोष में अपना सुख समझा और उसके लिए प्राण तक न्यौछावर करने को सदा तत्पर रही. पति निष्ठा के द्वारा ईश्वर भक्ति का अनुपम उदाहरण भी प्रस्तुत किया. कस्तुरबा जी ने जीवन भर राष्ट्र की सेवा की और बडे से बडे संकट में पति (बापू) का साथ दिया था. कस्तुरबा एक श्रद्धालु पत्नि और स्नेहमयी माता थी. अपनी सादगी और सेवाशिलता के कारण “बा” भारतीय महिला समाज की एक आदर्श प्रतिमा बन गई थी.

महात्मा गांधी ने जिस दिन राष्ट्र की मुक्ति और आजादी के लिए फकीरी धारण की, उसी दिन माता कस्तुरबा भी अपने प्रिय बच्चो का सम्बधियों एवम् स्नेहियो का और अपने गृहस्थ सुख का मोह त्याग कर उनके साथ हो ली.
अपने पति की वे सच्ची अनुगामिनी थी, मृत्यु की अंतिम घड तक उनके साथ भारत की स्वतंत्रता के लिए जुझती रही. कस्तुरबा जी साधारण पढी लिखी और संसारिक ज्ञान विज्ञान से कम परिचित थी. लेकिन कर्तव्य परायणता, देशभक्ति, सहृदया, पति सेवा और उत्सर्ग की सजीव मूर्ति थी.
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता प्राप्ती के लिए एक यत्नशिल राष्ट्र बनाने की जो अमर साधना की उसमें कस्तुरबा जी का बहुत बडा भाग रहा है.

* एक जीवन झांकी
– जन्म : बडे ही संयोग की बात है कि, महात्मा गांधी और कस्तुरबा जी ने एक ही नगर एक ही सन 1869 में पोरबन्दर में जन्म लिया. दोनों में मात्र 6 मास का अंतर रहा. कस्तुरबा जी बापू से 6 माह छोटी थी.
– शिक्षा : उस जमाने में शिक्षा का बहुत ही कम प्रचार था तथा उस समय लडकियां बहुत ही कम पढा करती थी. अत: कस्तुरबा जी के शिक्षा की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया था. लेकिन माता-पिता ने शिक्षा से अधिक संस्कारिता और गृह दक्षता पर जोर दिया. कस्तुरबा जी को धर्म, व्यवहार और रीति नीति की अच्छी शिक्षा मिली और इसी के बल पर महात्मा गांधी जैसे महापुरुष का जीवन संगिनी बन सकी.
– विवाह : 13 वर्ष की आयु में मोहनदास करमचंद गांधी की पत्नि बनी और गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया. 18 वर्ष की आयु में प्रथम पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई.
– एक पत्निव्रत – गांधीजी पर एक पत्निव्रत का संस्कार पडा था और वे “सत्य” के आरंभ से उपासक होने के कारण वें दृढता के साथ जीवन भर कायम रहे.
– महात्मा गांधी के इंग्लैंड से वकालात पास करने के बाद राजकोट में वकालत शुरु की किंतु मनोकुल सफलता नहीं मिली. इसी दरम्यान एक मुकदमें के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रिका जाना पडा. गांधी जी 3 वर्ष अफ्रिका में रहें. वहां गए थे वकालत करने मगर भारतीयों की दुर्दशा से प्रभावित होकर वें उनके सुधार कार्य में जुट गए. उन्होंने अफ्रिका में स्थाई निवास बनाने का निश्चय किया.

* “कस्तुरबा जी की अफ्रिका यात्रा”
महात्मा गांधी 3 वर्ष बाद अफ्रिका से भारत लौटे तथा भारत के बडे बडे शहरो में भ्रमण किया, नेताओं से मिलें और प्रवासी भारतीयों की स्थिति से देशवासियों को अवगत कराया. डरबन के बुलावे पर गांधीजी को अफ्रिका लौटना पडा. इस बार वें अकेले न जाकर कस्तुरबा जी को भी साथ लें गए.

* कस्तुरबा जी का सुखमय दाम्पत्य जीवन
कस्तुरबा जी को गृहस्थ आश्रम का असली अनुभव व आनंद अफ्रिका में ही प्राप्त हुआ, क्योंकि ससुराल में सारे कुटुंब में एकसाथ रहने के कारण उन्हें अपने पति का पूर्ण सहवास का अवसर नहीं मिल सका और न ही प्रतिभा का विकास करने का साधन ही मिला. अफ्रिका में कई वर्ष तक जीवन सुखमय और विघ्नरहित चला.

* सत्याग्रही कस्तुरबा
कस्तुर बा जी, गांधीजी के विचारो और प्रेरणाओ से प्रेरित होकर सत्याग्रह के पथ पर अग्रसर हुई. द. अफ्रिका में “बा” ने अपने गांधीजी की सच्ची जीवन संगिनी बनकर दिखाया. उन्होंने आराम और एश के जीवन का खुशी से त्याग कर साधना, तप और सेवा के मार्ग को अपनाया. गांधी जी ने जब सत्याग्रह की दुंदभि अफ्रिका में बजाई तब कस्तुरबा जी ने अपनी आहुति डाली और अपने टुटे स्वास्थ्य के बावजूद जेल गई.

* चम्पारन में
द. अफ्रिका से वापस आने के बाद जब गांधीजी का ध्यान चम्पारन के किसानों और मजदूरों की दुदर्शा की ओर गया तब उन्होंने चम्पारन में रहकर अपने दिन-देश बंधुओं की असम्मानजनक स्थिति के सुधार का व्रत लिया. तब कस्तुरबा जी हर क्षण उनके साथ थी.

* खेडा सत्याग्रह
खेडा सत्याग्रह में भी “बा” का महत्वपूर्ण योगदान रहा. खेडा सत्याग्रह में गांधीजी नेतृत्व करते थे. तो दूसरी ओर कस्तुरबा जी गांव-गांव, घर-घर जाकर सत्याग्रही स्त्री-पुरुषो में जीवन भरती थी.
* बरदोली का लगान विरोधी आंदोलन
नमक सत्याग्रह के साथ बरदोली में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में लगान बंदी आंदोलन शुरु हुआ. कस्तुरबा जी ने इस आंदोलन में अपनी पूर्ण शक्ति के साथ योग दिया.

* अस्पृश्यता निवारण में भी सक्रिय योगदान
चुंकि कस्तुरबा एक धर्म पारायणा और सती महिला थी. पति के कल्याण के लिए सब कुछ न्यौछावर करना एक पवित्र धर्म था. जो अपने पति की अनुगामिनी बनने में सदा गर्व का अनुभव करती थी. वह भला वैष्णव होते हुए भी पीछे कैसे रह सकती थी. कस्तुरबा ने अस्पृश्यता निवारण में सक्रिय भाग लिया. चुंकि वे पूर्व अनुकुल नहीं थी.

* अथक सेविका
राष्ट्रमाता कस्तुरबा अथक राष्ट्रसेविका थी. दिन-रात आश्रम आंतरिक व्यवस्था और गांधीजी की सेवा सुश्रुषा में संलग्न रहना, हर कार्य में हाथ बटाना उनका नीजि गुण था. साबरमति आश्रम, सेवा ग्राम आश्रम में आने वाले सभी अतिथियों का आतिथ्य और व्यवस्थापन में दिन-रात लगी रहती. आश्रम वासियों की वह सच्चे अर्थो में माता थी. वें राष्ट्र सेविका भी थी और आदर्श गृहणी भी.

* आदर्श पत्नी
कस्तुरबा जी भले ही विदुषी महिला न रही हो मगर वें आदर्श पत्नि जरुर थी. उनका सारा जीवन इसी (रेखा) पर रचित था. गांधीजी के साथ उन्होंने काफी कष्टो और असुविधाओं का सामना भी किया. पर कभी “ऊफ” न की, और नहीं कही दखलंदाजी की.

* राष्ट्रमाता का कारवास
महात्मा गांधी की तरह राष्ट्रमाता कस्तुरबा भी भारत की आजादी के आंदोलन में बराबर योग देती रही और कई बार उन्हें कारावास की भी यात्रा करनी पडी. भारत के सत्याग्रह आंदोलन में राष्ट्रमाता कस्तुरबा ने महत्व पूर्ण योगदान दिया और अपनी अनंत साधना द्वारा आंदोलन को यशस्वी बनाया.

* आगा खां महल के कारावास में राष्ट्रमाता का निर्वाण
कस्तुरबा जी हृदय रोग से पीडित थी. साथ ही वृद्धावस्था तथा क्षीण शक्ति के कारण उनका स्वास्थ्य एकदम गिरते गया. रोग से कस्तुरबा का शरीर जर्जर हो चुका था. तथा उन्हें न्युमोनिया ने बुरी तरह पछाड दिया. जो कि उनके लिए अंत में घातक सिद्ध हुआ. महाशिवरात्री का पावन दिन और सूर्य भगवान भी सायंकाल को अपनी अंतिम रश्मीयों से आगा खां महल के कारागृह को आलोकित कर रहे थे. राष्ट्रमाता कस्तुरबा ने 7 बजे अंतिम सांस ली और राष्ट्रदेवता के चरणों में अपने प्राणो को अर्पण कर दिया.

* संसार व्यापी शोक
राष्ट्रमाता के निधन पर भारत के बाहर भी अनेक देशो में शोक मनाया गया. भारत व विश्व की महिला समाज की “अपारक्षति” बताते हुए शोक संवेदना प्रगट की गई. राष्ट्र देवता के चरणो पर “बा” का पावन बलिदान है और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की यह अमर घटना है. यह बलिदान भारत के स्वतंत्रता पथ को सदा आलोकित करता हैं.
– सौ. लिना कामेश साहू

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