लेख

प्रदूषण की चपेट में नदियां

दिनों-दिन बढते शहरीकरण व औद्योगिकरण के कुच्रक के कारण अनेक किस्म के प्रदूषण बडे पैमाने पर बढ रहे है. जिसमें जल प्रदूषण की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सर्वेक्षणानूसार देश के 351 छोटी-बडी नदियों के किणारे अत्यंत प्रदूषित हो चुके है. इससे महाराष्ट्र के 53 नदियों का समावेश है. मुख्य रुप से विदर्भ की वैनगंगा, वर्धा इन बडी नदियों के साथ कन्हान, वेणा आदि का समावेश है. निश्चित रुप से बढते जलसंकट को देखते हुए यदि नदियों के जल को प्रदूषण मुक्त किया जाए, तो उसका जनसामान्य को लाभ मिल सकता है. हालांकि नदियों को लेकर अनेक परियोजनाएं बनती रही है. जिसमें नदी जोडो अभियान, गंगा स्वच्छता अभियान सहित अनेक अभियान छेडे जाते रहे है. लेकिन नदियों की स्थितियों में कोई सुधार नहीं आया है. बल्कि दिनों-दिन नदियों के प्रदूषित होने का सिलसिला जारी है. इस हालत में जब नदियों पर ध्यान दिया जाए. औद्योगिकरण व शहरीकरण के कारण नदियों में प्रदूषित जल का प्रमाण बढा है. एक ओर यह माना जा रहा है कि, भविष्य में जलसंकट का स्वरुप इतना भयंकर रहेगा कि, तीसरा महायुद्ध जलसंकट के नाम ना हो. ऐसे में जलस्त्रोत की सुरक्षा अतिआवश्यक है. पाया जा रहा है कि, शहरों में अनेक बडे-बडे कुएं पूरी तरह प्रदूषित हो गये है. कई स्थानों पर तो लोगों ने जगह का उपयोग करने के लिए कुओं को पाट दिया है. जाहिर है कि, जलसमस्या की गंभीरता को अभी लोगों ने गंभीरता से महसूस नहीं किया है.
जलस्त्रोतों में सबसे बडा योगदान नदियों का रहता है. जिस क्षेत्र में नदियां है वहां प्राकृतिक वातावरण बना रहता है. नदियों के आसपास पानी की सतह अधिक रहती है. जिसके कारण जलसंधारण कार्यों को गति दी जा सकती है. इसलिए जरुरी है कि, नदियों में स्वच्छता बनाई रखी जाए. लेकिन पाया जाता है कि, बढते औद्योगिकरण के कारण पानी का बहाव नदियों से जुडा रहता है. जिससे नदियां सभी क्षेत्र में प्रदूषित होने लगी है. अतिआवश्यक है कि, इन नदियों के बारे में समीक्षा की जाए व योग्य उपाय योजना की जाए. कुछ शहरों में मलजल प्रकल्प की रुपरेखा बीते दिनों बनी थी. इसके माध्यम से प्रदूषित जल को स्वच्छ बनाकर कृषि आदि कार्यों में उपयोग में लाया जा सकता है. लेकिन इस प्रकल्प को गतिमान करने की दिशा में कदम नहीं उठाये गये है. भविष्य की जरुरतों को देखते हुए अब यह हर किसी का दायित्व हो गया है कि, वे जल का योग्य नियोजन करें. हर वर्ष ग्रीष्मकाल में पानी का संकट सभी क्षेत्रों में गहरा जाता है. इस वर्ष भी यहीं स्थिति नजर आने लगी है. दुर्गम क्षेत्रों में पानी का अभाव महसूस किया जा रहा है. लोगों को दुर दराज क्षेत्रों से पानी लाना पडता है. ऐसे में यदि जलस्त्रोतों को सही ढंग से विकसित किया जाए, तो इसका लाभ जनसामान्य को मिल सकता है.
वर्तमान में अनेक संसाधनों के माध्यम से प्रदूषित जल को प्रदूषण रहित बनाकर जनसामान्य को राहत पहुंचाई जा सकती है. लेकिन इसके लिए प्रबल इच्छाशक्ति आवश्यक है. इसी तरह जल का संवर्धन यह समय की भी मांग है. लेकिन पाया जाता है कि, जलसंवर्धन की दिशा में जिस प्रमाण में काम होना चाहिए वह नहीं हो पाता है. यहीं कारण है कि, हर बार लोगों को जलसंकट का सामना करना पडता है. यह माना जा रहा है कि, अगला विश्व युद्ध पानी की समस्या को लेकर होगा. यह नौबत न आये इसलिए जलसंवर्धन की ओर हर किसी को ध्यान देना चाहिए. खासकर नदियों का प्रदूषण दूर किया जाए. जिससे लोगों के समक्ष उभरने वाला जलसंकट नष्ट किया जा सकता है.

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