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संत जगनाडे क्रांतिकारी संत : हभप रंगराव महाराज कडू

संत जगनाडे महाराज पुण्यतिथि निमित्त

भारत देश में अनेक ऋषि, संत, महात्मा, राजनीतिक, गणमान्य व्यक्ति ऐसे अनेक क्रांतिकारी व्यक्तियों का जन्म हुआ. इन सभी ने देश व विदेश में संगीत,कला,क्रिड़ा,फिल्म,कृषि,साहित्य,योग, संशोधन,वास्तुशिल्प, धर्मशास्त्र, वेद पुराण, उपनिषद आदि अनेक क्षेत्रों में क्रांति की. इसलिए विश्व के नक्शे में भारत का नाम उच्च स्थान पर लिखा गया व भारत विश्वगुरु बना. महाराष्ट्र यह संतों की नगरी है. इस भूमि में अनेक क्रांतिकारी साधु अवतरित हुए, इनमें से संत जगनाडे यह एक क्रांतिकारी संत थे. संतों की कोई जात, पात,धर्म, पंथ,संप्रदाय नहीं होता, संत ही एक वृत्ति हैं. संत कबीर महाराज कहते हैं- जाति न पूछो साधू की, पूछ लिजिए ज्ञान, मोल करो तलवार की, पड़ी रहने दो म्यान॥ संत कबीर॥ हम धर्म, पंथ, संप्रदाय, जाति इस द़ृष्टि से संतों को देखते हैं. इस दृष्टि को संतोतं ने अंधी दृष्टि कहा है. तुका म्हणे आंधळे हे जन गेले विसरुण खर्‍या देवा ॥तुका॥ संतों का कुल व नदी का मूल खोजना नहीं. चाकन इस गांव में एक बार जगतगुरु संत तुकोबाराया का कीर्तन हुआ. उस कीर्तन में 16-17 वर्ष के संत जगनाडे महाराज उपस्थित थे. कीर्तन के तर्कनिष्ठ, विज्ञाननिष्ठ, पुरानी अंधश्रद्धा व रुढ़ी पर प्रहार करने वाले तथा प्रस्थापित व्यवस्था का सामना करने वाले तुकोबाराया का कीर्तन सुन अज्ञानी, अशिक्षित, दीन दलित लोगों का परिवर्तन होने लगा. इसलिए कुछ धर्म मार्तंड, वेदांतीशास्त्री पंडितों के पैरों तले जमीन खिसकने लगी. इनमें प्रमुख रुप से रामेश्वर भट्ट, मबाजी गोसावी थे. आप्पाजी गोसावी (पुणे) ने तो अभंग के लिए सरकार को आवेदन किया था. वहीं महाराज के अभंग में सालो मालो इस नाम के गृहस्थ ने अभंग के अक्षरों में फेरफार कर स्वयं के नाम से अभंग करने से इसका महाराज को काफी खेद हो रहा है, ऐसा वे कहते हैं. सालो मालो हरि चे दास, यानी केला अवघा सत्यानास॥तुका॥उस समय सर्वधर्मशास्त्र विशिष्ट धर्ममार्तंड के हाथ में था. स्त्रीशुद्रों को ऐसे शास्त्रों में अधिकार नहीं, इसी तरह गत सभी संतों का व तुकोबाराया का संत जगनाडे महाराज पर के धममार्तंडी छल करते थे. परेशान करने रामेश्वर भट्ट ने तुकोबाराया की अभंग गाथा इंद्रायणी में डूबा दी. ऐसे में तुकोबाराया का जीवन अस्थिर होकर दुखमय हो गया. उन्होंने 13 दिनों तक अन्न,पानी ने लेते इंद्रायणी के किनारे अनुष्ठान किया. पांडुरंग परमात्मा से उन्होंने प्रार्थना की- ईश्वर मुझे मार डालो लेकिन मेरी अभंग गाथा विश्व के कल्याण के लिए मुझे लौटा दो. जगनाडे महाराज बाजू में बैठे थे. तुकोबा के 14 मंजिरा बजाने वाले थे. इनमें से संत जगनाडे (तेली) व गंगाधर मवाल (ब्राह्मण) ये दोनों प्रमुख मंजिरा बजाने वाले थे. संताजी तेली बहुत प्रेमयुक्त अभंग लिखते थे. अभंग गाथा इंद्रायणी में डूबाने के कारण सभी संत व वारकरियों में चिंता का वातावरण था. तब संत जगनाडे महाराज के अंतःकरण में एक विलक्षण चमत्कार हुआ. क्रांति रुपी तेजपुंज दिव्य ज्योती प्रगट हुई. अनंतकोटी सूर्य के प्रकाश से आत्मप्रभा जागृत होकर इन तेरह दिनों में संत जगनाडे महाराज ने अभंग व आज बाजू के परिसर में, रात-दिन भूख प्यास की परवाह किए बगैर परिभ्रमण कर अभंग जमा किये व संपूर्ण अभंगों की गाथा अपने हाथों से लिखी व तुकोबाराया को साष्टांग दंडवत कर हाथ में दी. आंखें खोलकर देखने के बाद अभंग गाथा लेकर आये जगनाडे महाराज की ओर दिव्य दृष्टि से देखकर दोनों के आनंद की परिसीमा खत्म होकर दोनों एक-दूसरे को आलिंगन देकर समरस हुए थे. दोनों काफी खुश हुए. तुज पाहता विठ्ठला॥तुका॥ मैंने अनेक लेखकों का तुकाराम महाराज का चरित्र पढ़ा,अभंग गाथा पढ़ी, लेकिन जगनाडे महाराज से संबंधित उल्लेख या अभंग नहीं पढ़ा. लेकिन पांडुरंग बालाजी कवडे लिखित 1956 में प्रकाशित हुए चरित्र में जगनाडे महाराज का पृष्ठ क्रमांक 109 पर उल्लेख हुआ है. इस चरित्र में अभंग का प्रमाण देकर उस समय की सत्य परिस्थिति का विश्लेषण किया गया है. यह चरित्र अभ्यासकों से पढ़ने की विनंती, इसी तरह कर्मठ धर्म मार्तंडों के बंदीखाने से छुटने के लिए संत जगनाडे महाराज ने वैचारिक दरिद्री के दलदली रत हुए सभी दलित बांधवों को तारने के लिए यह अभंग गाथा इंद्रायणी से तारने की क्रांति की. स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि मुठ्ठीभर लोगों के हाथ में धर्म जब तक हैं, तब तक मंदिरों में, ग्रंथों में हटवादी विचारों में, आचार में और बाह्य दिखावे में वह डटकर बैठा हुआ था.वहां से बाहर निकलकर जिस वक्त वह विश्वव्यापी होगा, उसी समय उसे सत्यता और जीवित रुप भी प्राप्त होगा. (स्वा.वि.खंड 1 प्रकरण धर्म की आवश्यकता) ऐसे विचार स्वामी विवेकानंद के हैं. जगनाडे महाराज ने घाणी का अभंग, तैलसिंधू, शंकरदिपीका, योगाची वाट, निगुर्णाच्या लावण्या, भजन,कवन आदि ग्रंथ संपदा लिखर आध्यात्मिक क्रांति की, ऐसे संत जगनाडे क्रांतिकारी संत थे. संत वाङ्मय पढ़कर दरीद्रता दूर करने अज्ञानता दूर करने, कुप्रथा, अंधश्रद्धा मिटाने आदि बातों का निर्धार करना, यहीं उनकी पुण्यतिथि निमित्त श्रद्धांजलि पुण्यस्मरण होगा.
कोरोना महामारी से स्वयं का व अन्यों की रक्षा करें, यहीं जनता जनार्दन से नम्र प्रार्थना।
– रंगराव बा. कडू, मोतीनगर, अमरावती
मो. नं. 8087353769

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