संत व दिव्य पुरुषों के कारण सदैव ही भारतभूमि गौरवान्वित होती रही है. संत शिरोमणी गोबिंदराम साहिब भी ऐसे ही संत रहे हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान, तपस्या से विश्व का कल्याण करने के साथ ही मानवसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर कार्य किया.
जन्म और विद्या
संत गोबिंदराम साहिब शदाणी संतों में आठवें संत हुए. आपका जन्म गुरुवार, 25 अक्तूबर 1944 को सिंधू पाक स्थित शदाणी दरबार हयात पिताफी शहर में हुआ. आपके पिता सातवें शदाणी ज्योति शहनशाह साई राजाराम साहिब आध्यात्मिक गुणों से परिपूर्ण थे. संत गोबिंदराम की वाणी में ही सरस्वती का वास था. अलौकिक शक्ति ऐसी कि जिसे भी कुछ प्रदान किया, वरदान दिया वह फलित हुआ. 5 वर्ष की उम्र से ही आपकी शिक्षा प्रारंभ हुई. बाद में अंग्रेजी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की. आंतरिक रौशनी ऐसी कि उनके हर कार्य देखकर ऐसा ही लगता जैसे सभी कुछ आपका सीखा-पढा हुआ है. ज्ञानियों की सभा में बैठते तो बडे लोग भी उनकी बातों में मग्न हो जाते. जहां जा बैठते, वहां तारामंडल के बीच चंद्रमा से प्रतीक होते. उन्हें देख बरबस लोगों के हाथ उन्हें प्रणाम करने के लिए उठ जाया करते. एक बार स्कूल से सीधे आकर भंडार साहिब (रसोईघर) में आकर मां राधीदेवी से बोलेे, मां भूख लगी है, खाना दो. मां ने कहा-भंडारा तैयार है, अभी भगवान को भोग लगाकर तुझे खाना देती हूं. पर संतजी ने भोग वाली थाली उठा ली और खाते हुए चले गए. जब मां ने संत राजाराम साहिब से इस बात की शिकायत की तो उनका कहना रहा कि तुम भोग किसे लगाती हो? माता बोली, भगवान को. संतजी ने उन्हें समझाते हुए कहा गोविंद तो स्वयं भगवान हैं, भगवान ने अपने भोग की रोटी उठाकर खा ली.
शदाणी गादी पर विराजमान होना
पूज्य शदाणी दरबार साहिब की परंपरा रही कि जब भी ज्योति की तब्दीली होती है, तो ब्रह्मलीन होने से पहले वे शदाणी संत, सभी पंचायतों को बुलाकर गद्दीनशीन होने वाले के बारे में बताते हैं और नए संत में शदाणी ज्योति-शक्ति का प्रवेश करा देते है. सातवें ज्योति शहनशाह साई राजाराम साहिब 20 मार्च 1960 को ब्रह्मलीन हुए और जाते हुए शाणी गद्दी गोबिंदराम साहिब को सौंप गए. साढे पंद्रह साल की उम्र में 4 अप्रैल, 1960 को गोबिंदराम साहिब शदाणी पर विराजमान हुए. हिदायतों के मुताबिक और संत शदाराम साहिब के नियमों के अनुसार ही आप सभी नित्यनेम सत्संग का कार्य पूरा करने लगे. आंगतुक श्रद्धालुओं की संख्या भी तेजी से बढने लगी.
हिंदुस्थान यात्रा
पाकिस्तान के साथ ही हिंदुस्थान और दुनिया के दूसरे देशों में भी शदाणी सेवक व श्रद्धालुओं की बडी संख्या निवास करती है. संत होते ही दयालु प्रकृति के. हिंदुस्थान के श्रद्धालुओं का भी बेहद आग्रह था कि संतजी यहां भी पधारें. 21 अप्रैल 1969 को गोबिंदराम साहिब अपने परिवार के साथ हिंदुस्थान के लिए रवाना हुए. हिंदुस्थान आकर उन्होंने यहां के श्रद्धालुओं की इच्छा पूरी की. जब भी वे पाकिस्तान लौटने को तैयार होते, हर बार श्रद्धालु विनय आग्रह कर उन्हें रोक लेते. कई बार संत साहिब को अपना कार्यक्रम बदलना पडा और वे श्रद्धालुओं के प्रेमवश यही के होकर रह गए. इधर पाकिस्तान के श्रद्धालु भी विनती कर रहे थे कि दातार, दया करो, वापस आओ, पर हुआ. वहीं जो मालिक को मंजूर था. 25 मई 1976 को संतश्रीजी हिंदुस्थान से वाया दुबई, कराची पहुंचे. तब हजारों की संख्या में शदाणी प्रेमी कराची पहुंचे. वहां से विशाल जुलूस के साथ आप पूज्य शदाणी दरबार हयात पिताफी आए. आप ढाई महीने तक पाकिस्तान में रहकर अपने श्रद्धालुओं को कृतार्थ करते रहे. इस दौरान संतश्री ने पंचम शदाणी ज्योति पूज्य माता हासीदेवी के जन्मस्थान खानपुर महर में 13 अगस्त 1976 में नए शदाणी दरबार का शिलान्यास किया.
हिंद-पाक यात्रा की मंजूरी
सातवें गद्दीसर साई राजाराम साहिब की बरसी हर साल पूज्य शदाणी दरबार, रायपुर में मनाई जाती है. पहली बार मार्च, 1976 में मशहूर गायक भाई पंजूराम और कुछ श्रद्धालु रायपुर पहुंचे. संतश्री के दर्शनलाभ कर सभी को बेहद आनंद हुआ. इसके बाद प्रयास होने लगे कि हर साल पाकिस्तान से 15 दिनों के लिए शदाणी श्रद्धालुओं का जत्था हिंदुस्तान आ सके. प्रयास रंग लाए और 1 फरवरी 1983 को पाकिस्तान और हिंदुस्तान सरकार के बीच कानूनी स्वीकृति बनी कि मुस्लिम और सिखों की तरह ही शदाणी भक्त भी अपने-अपने धार्मिक स्थानों पर जा सकेंगे. सन् 1985 में 15 दिनों के लिए मिलने वाले वीजा की मियाद बढाकर 30 दिनों की कर दी गई. यात्रियों की संख्या भी 200 से बढाकर 500 कर दी गई.
रायपुर में बना जगप्रसिध्द शदाणी दरबार
रायपुर शहर में 10 किलोमीटर दूर, रायपुर-जगदलपुर मेनरोड पर संत गोबिंदराम साहिब ने जगप्रसिध्द शदाणी तीर्थ के लिए बडी जमीन खरीदी. 20 जनवरी 1988 को आपके ही हाथों पहली ईंट रखी गई और आज यहां बेहद लुभावना शदाणी तीर्थ बना हुआ है. पूरी दुनिया से शदाणी श्रद्धालुओं का यहां आना लगा रहता है.
देवलोग गमन
संतश्री गोबिंदराम साहिब मानव जाति को प्रेम-भक्ति-विश्वास की गंगा अर्पित कर मंगलवार, 22 अप्रैल 2003 को अपनी इच्छाशक्ति से प्रभु चरणों में मिलने के लिए अपनी अनंतयात्रा पर निकल पडे. ऐसे महान संतों के जन्मदिन पर शदाणी परिवार की ओर से शत्-शत् प्रणाम.