सत्यप्रकाशजी देवीलाल गुप्ता यह नाम अमरावतीवासियों के लिए नया नहीं है और किसी परिचय का मोहताज भी नहीं हैं. एस.टी. महामंडल से सेवानिवृत्त होते ही उन्होंने अपना जीवन दूसरों की भलाई के लिए न्यौछावर कर दिया है. रामचरित मानस में कहा गया है-‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’ मानव सेवा ही सबसे बडा धर्म है, यह कविता गुप्ताजी पर चरितार्थ होती है. अंधे, अपंगों की मदद करना, गरीब विद्यार्थियों की सहायता करना ही ईश्वरीय पूजा मानते हैं. साहू समाज के सभी धार्मिक आयोजनों में उपस्थित रहकर सहयोग करना, मां कनकेश्वरी देवी की देवी भागवत कथा हो, चिन्मयानंद बापू की रामकथा हो या सुधांशू महाराज के उपदेशों के धार्मिक आयोजन हों, सभी में उपस्थित रहकर भक्तों की सेवा करना, बाहरगांव से आनेवाले भक्तों को ठहराने का प्रबंध, उनके भोजन की व्यवस्था गुप्ताजी स्वयं करते हैं. तन, मन, धन से कार्यक्रम की शोभा बढाते हैं.
डॉ. गोविंद कासट मित्र मंडली में शामिल होकर ठंड से ठिठूरते गरीब लोगों को गरम कपडों का दान गुप्ताजी ने किया है. इर्विन अस्पताल में जाकर रोगियों को फल वितरित करना अपना कर्तव्य समझते हैं.
उनकी इन सामाजिक सक्रियता को देखकर विश्वरत्न सम्मान पुरस्कार तथा इंटरनेशनल शिरोमणि पुरस्कार से वे सम्मनित हो चुके हैं. अखिल भारतीय साहू वैश्य महासभा दिल्ली द्बारा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा विदर्भ प्रदेश अध्यक्ष पद पर उनकी नियुक्ति हुई है. अभी तक 125 से ज्यादा अॅवार्ड व प्रमाणपत्र प्राप्त हो चुके हैं. फिर भी उन्हें किसी भी तरफ का गर्व नहीं हैं. उनकी बातचीत और व्यवहार में सहजता है, यही गुण उनके व्यक्तित्व को निखरता है. आकाशवाणी अमरावती द्बारा दो बार उनका साक्षात्कार प्रसारित हो चुका है. सत्यप्रकाशजी देवीलाल गुप्ता अपनी उम्र के 73वें वर्ष में पदार्पण कर रहे हैं. समस्त साहू समाज, धर्मप्रेमी और शुभचिंतक उनका हार्दिक अभिनंदन करते हुए उनकी लंबी उम्र की कामना करते हैं.
– गणेश कुशवाह
एन.ए.हिंदी समाज शास्त्र
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