लेख

स्व. श्री उमरलालजी केडिया उर्फ बाबुजी के 34 वें पुण्यस्मरण

बाबूजी जैसा नेता न कभी हुआ है, न होगा

अमरावती में सामाजिक राजनीति में स्व. उमरलालजी केडिया उर्फ बाबूजी एक बड़ा नाम हैं. आम चुनाव कोई भी हो, सबको बाबूजी की मदद की जरूरत पडती थी. वर्ष 1952 से 1972 तक अमरावती नगर निगम पर बीस वर्षों तक बाबूजी की सत्ता थी. लेकिन 1972 में करीबियों ने बगावत कर दी और बाबूजी की सत्ता गिर गयी. उसके बाद भी राजनीति में बाबूजी का दबदबा बढ़ता ही गया. बाबूजी जब नगर पालिका के अध्यक्ष थे तब वे नगर पालिका के प्रांगण में कुर्सी डालकर बैठते थे और लोगों के काम तत्परता से करते थे. इसलिए बाबूजी की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी. उन्होंने कई कार्यकर्ताओं, नेताओं, विधायकों, सांसदों को बनाया. स्व. काकासाहेब नवाथे, स्व. डॉ. देवीसिंहजी शेखावत, स्व. बबनराव मेटकर को विधायक निर्वाचित कराने में बाबूजी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. स्व. नानासाहेब बोंडे 1977 में भारी मतों से लोकसभा जीते. बाबूजी की संस्था और राजनीतिक कौशल के कारण पूर्व सांसद स्व.के.जी. उर्फ बाबासाहेब देशमुख उस समय बाबूजी का बहुत सम्मान करते थे. के.जी. और बाबूजी साथ रहकर चुनाव जीतते थे.

कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य स्व. यशवंतराव चव्हाण, वसंतदादा पाटिल, वसंतराव साठे, बैरिस्टर अंतुले साहब, उमाशंकरजी दीक्षित, शंकरदयाल शर्मा, ये सभी लोग बाबूजी का सम्मान करते थे. बाबूजी का इन बड़े सदस्यों से सीधा संपर्क था.

मैं बाबूजी का बहुत कनिष्ठ कार्यकर्ता था. मेरे दादा बाबूजी के मित्र थे जबकि मेरे पिता स्व. सुधाकर वाघ बाबूजी के अनुयायी थे. 1978 से मैं बाबूजी के व्यक्तिगत सम्पर्क में आया. उस समय हमारी आर्थिक स्थिति खराब थी. यह देखकर बाबूजी को बहुत बुरा लगता था. वे कहते थे कि संजय, मैं आपके परिवार के लिए कुछ नहीं कर सका. मेरे पास कोई शक्ति नहीं है, मेरे पास सत्ता नहीं और न ही कोई पद.
बाबूजी मुझसे बहुत प्यार करते थे. वे हमेशा मेरे लिए कुछ करना चाहते थे. वर्ष 1981 में कपास पणन संघ में लिपिक के पद रिक्त थे, बाबूजी ने मुझसे आवेदन करने को कहा. इतना ही नहीं, उन्होंने उस समय यवतमाल के तत्कालीन कॉटन फेडरेशन के डायरेक्टर स्व.फूलचंदजी अग्रवाल के पास मुझे भेजा. उन्हें फोन भी किया. मेरा ऑर्डर निकल गया लेकिन मेरी बदकिस्मती, उस ऑर्डर पर रोक लग गई. और सारी भर्तियां रद्द कर दी गईं.

बाबूजी को बुरा लगा. उन्होंने मुझसे पूछा कि आप अपना खुद का सुनार का व्यवसाय क्यों नहीं शुरू करते. व्यवसाय के लिए मैं तुम्हें मदद करता हूूं ऐसा कहकर उन्होंने मुझे पूंजी के रूप में दो हजार रुपये दिए और मैंने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया. मैं अपने पैरों पर खड़ा हुआ. बाबूजी को ऐसे कई परिवार बहुत प्रिय थे. उन्होंने कई परिवारों की मदद की. चाहे विवाह समारोह हो, नामकरण संस्कार हो या दुखद प्रसंग, बाबूजी सभी को मदद करने तत्पर रहते थे. और हर काम करने की पहल करते थे.
मैंने बाबूजी से बहुत कुछ सीखा. उन्होंने मुझे राजनीति, संगठन, इन विषयों का पाठ बहुत ध्यान से पढ़ाया. बाबूजी के कारण ही मुझे राजनीति में काम करने का मौका मिला. शहर के हर वार्ड, मोहल्ले में बाबूजी के समर्थक और अनुयायी थे. उनके पास कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज थी. यदि कोई कार्यकर्ता जिससे वे प्रतिदिन मिलते थे, वह नहीं आता था, तो बाबूजी तुरंत किसी को उसके घर पूछने के लिए भेजते थे. क्या वह मुसीबत में है? क्या आप बीमार हैं यह बात समझ में आते ही वह उससे जाकर पूछता था और उसकी मदद करता था. यही कारण है कि बाबूजी शहर की सभी जातियों और धर्मों में लोकप्रिय थे.

बाबूजी हिन्दी भाषी मारवाड़ी समुदाय से थे, फिर भी वे बहुजन समुदाय से बहुत प्रेम करते थे. मुस्लिम समुदाय को बाबूजी अपने जैसे लगते थे. स्व. दिगंबरबुवा हीरपुरकर, शंकर अप्पा गदगकर, गनुभाऊ नवाथे, बाबासाहेब शिरभाते, रघुनाथ भोवते, नरहरि पीठे गुरुजी, राधेलालजी जयस्वाल, अमृतभाई जोशी, बिहारीलालजी अग्रवाल, तिवसा जिनवाले राठीजी, शिवचंदराय झुनझुनवाला, अनंतराव टाले, बंडोपंत गोखले, प्रभाकर मारुलकर, नारायणदास बियाणी, वसंतराव गुल्हाने, विठ्ठल मैंदड, प्रभाकरराव चोरे, शांताराम सरोदे, डॉ. मदन आचलिया, रमेश लढ्ढा, राजेंद्रजी नावंदर, देवकिसन शर्मा, रावसाहेब इंगोले, बैजनाथजी केशरवानी, दौलतभाई देसाई, देवराजजी बोथरा, गोकुल मास्टर बसेरिया, रत्नलाल दीक्षित, रत्नशंकर तिवारी, अमृतलालजी गुप्ता, साहेबराव पाटिल इंगोले, जुगलकिशोर अग्रवाल गुरुजी, कलावतीबाई लुंगे, नलिनीबाई हाडके, लीलाबाई लवंगे, प्रेमताई डहाके, साथ ही अब्दुल सत्तार बाबू, सरदारभाई, कैय्यामुद्दीन ठेकेदार, दादूभाई मंसूरी, मुस्तफा पहलवान आदि कई मुस्लिम सदस्य भी बाबूजी के प्रति वफादार थे. ये सभी सदस्य एक फोन कॉल या मैसेज पर सामने आ जाते थे.

उस समय बाबूजी का प्यार भरा हाथ जिसके कंधे पर होता था, वह बहुत महान माना जाता था, और समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही थी. बाबूजी ने ऐसे असंख्य कार्यकर्ताओं को तैयार किया जो गर्व से कहते हैं कि वे बाबूजी के कार्यकर्ता हैं.
लेकिन आज की राजनीति बहुत ही गंदे और निम्न स्तर पर चली गई है, पैसा और गुंडागर्दी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है, निष्ठावान कार्यकर्ताओं और पार्टी की कोई कद्र नहीं कर रहा है. इसीलिए आज कांग्रेस पार्टी भी खतरे में आ गई है. ऐसे महान जननेता 5 मार्च 1990 को अचानक इस दुनिया से चले गये. हम लोगो को हमेशा के लिए अकेला कर के.

1994 में बाबूजी की मृत्यु के बाद डॉ. देवीसिंहजी शेखावत शहर कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उन्होंने मुझसे बस इतना ही पूछा कि बाबूजी का दफ्तर आजकल बंद लगता है, मैं दिल से चाहता हूं कि वहां शहर कांग्रेस का एक दफ्तर हो. यहां शक्ति है, ताकत है, जीत है, यहां से कई सांसद, विधायक चुने गये. मैंने भी 1985 में इसी कार्यालय से चुनाव प्रचार किया था और निर्वाचित हुआ था. यह स्थान कांग्रेस कार्यालय के लिए दिलाने का प्रयास करें. और मैंने उसी दिन काम शुरू कर दिया. बाबूजी के सहयोगी स्व.हिरपुरकर गुरूजी, डॉ. मदन आचलिया, राजेंद्रजी नावंदर, बाबासाहेब शिरभातेे, गदगकर अप्पा, इन सभी से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया. यह मंडली बहुत खुश है क्योंकि स्व. बाबूजी की स्मृति और स्मृतियाँ फिर से प्रकाशमान हो जाने वाली थी. इन सभी के साथ हम केडिया परिवार के पास गए, मैंने उनसे अनुरोध किया, उन्होंने तुरंत अनुरोध का सम्मान किया और चौबलवाड़ा में कांग्रेस का शहर कार्यालय खोलने की मंजूरी दे दी और कार्यालय की चाबियाँ डॉ. देवीसिंहजी शेखावत को सौंप दी. अगले दो वर्षों में डॉ. देवीसिंहजी शेखावत ने पहल की और नगर निगम में बाबूजी की मूर्ति लगवाने का संकल्प लिया. नगर निगम द्वारा एक सुन्दर स्थल उपलब्ध कराया गया तथा पिलर खड़े कर चबूतरा बनाया गया. प्रतिमा का खर्च केडिया परिवार ने वहन किया. तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख जी के शुभ हस्ते और प्रतिभाताई पाटिल, वसुधाताई देशमुख, डॉ. सुनील देशमुख की उपस्थिति में इस प्रतिमा का भव्य अनावरण समारोह आयोजित किया गया. नगर निगम के सभाकक्ष में भी स्व. बाबूजी का तैल चित्र लगाया गया. इसलिए बाबूजी की स्मृतियां आज भी जीवित हैं. ये सभी डॉ. देवीसिंहजी शेखावत की पहल और प्रयासों से हुआ. ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है.
आज सिर्फ यादें ही बची हैं. बाबूजी सदैव हमारी स्मृति में हैं, बाबूजी जैसा नेता न कभी हुआ है, न होगा, यह भी उतना ही सत्य है, उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि.
-संजय सुधाकर वाघ,उपाध्यक्ष,
शहर जिला कांग्रेस कमेटी अमरावती.
मो. 9422155621

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