लेख

सोमेश्वर पुसतकर एक अद्भुत रसायन

शिवसेना नेता, आझाद हिंद गणेशोत्सव मंडल के कर्ताधर्ता सोमेश्वर पुसतकर का मंगलवार 2 अगस्त को द्बितीय स्मृतिदिन पर उन्हें याद किया गया. उनकी स्मृति में श्री संत अच्यूत महाराज हार्ट अस्पताल को सोमेश्वर पुसतकर लोकगौर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सोमेश्वर पुसतकर एक अद्भुत रसायन थे. उनकी मानवता बडी मोहक थी. उनके पास जीवन के सभी क्षेत्र के लोगोें को जोडने की अद्भुत कला थी. इन्हीं गुणों के कारण महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों के छोटे-बडे लोग उनसे प्रेम करते थे. किसी भी सदस्या की स्थिति में दोस्तों और परिचितों की मदद करना उनकी विशेषता थी. विभिन्न क्षेत्रों में उन पर विश्वास करने वाले हजारों लोग है. यह उनके स्वभाव में निहित था. मैंने कई प्रभावशाली लोगों को करीब से देखा है. लेकिन मैंने सोमेश्वर जैसा उत्कृष्ट आयोजक, संयोजक नहीं देखा. वह किसी भी समस्या का समाधान आसानी से कर लेते थे. राजनीति में शिवसेना कभी जिलाध्यक्ष के पद से आगे नहीं बढी. लेकिन वह किसी भी विधायक, मंत्री से ज्यादा प्रभावशाली थे. सोमेश्वर के पास कभी भी सत्ता की स्थिति नहीं थी. लेकिन उन्हें हमेशा अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों का समर्थन मिला. उनकी मोबाइल फोन पर जो 80 प्रतिशत कॉल दिन भर आती रहती थी. वह किसी ना किसी मामले में मदद मांगती रहती थी. हर किसी को जितना हो सके, उतनी मदद करते थे. नहीं शब्द उनकी डिश्नरी में नहीं था. वह सैकडों लोगों की मदद करते थे. लेकिन ऐसा करते हुए उन्होंने हमेशा ध्यान दिया कि, इस हाथ की खबर उस हाथ को नहीं लगनी चाहिए. ना केवल राजनीति बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्य, खेल, शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उनके व्यापक संबंध थे. प्रभाकरराव वैद्य, बी.टी. देशमुख, दिवाकर रावते, गिरीष गांधी, किशोर देशपांडे जैसे पितातुल्य लोगों ने भी सोमेश्वर का समर्थन महसूस किया, यह और इस तरह के लोग समाज की अमूल्य संपत्ति है. उनकी रक्षा की जानी चाहिए. वह हमेशा कहते थे कि, उन्हें उनकी हर तरह से मदद करनी चाहिए. बढो के प्रति कृतज्ञता की भावना उनके व्यक्तित्व में निहित थी. गाडगे बाबा, वीर वामनराव जोशी, नानासाहब बमनगावकर, डॉ. पंजाबराव देशमुख, हरिभाउ कलोती, सुरेश भट, अरुण साबु जैसे अमरावती के गौरवशाली महापुरुषों के बारे में वें हमेशा बोलते थे. हर साल सुरेश भट के स्मृति दिवस पर वे स्वयं के बल पर जितोड मेहनत कर कार्यक्रम करते थे. इस अवसर पर वे कई महान कलाकारों को अमरावती लेकर आये. अमरावती में सांस्कृति और उत्सव कार्यक्रमों के साथ-साथ सोमेश्वर ने कई रचनात्मक कार्य किये है. उन्होंने सीमा पर शहीद हुए सैनिकों के परिवार के मदद के लिए कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया. किसान आत्महत्याग्रस्त परिवारों की भी मदद की. हर दिवाली-दशहरा पर वह भानखेड रोड पर किसान परिवारों और मातोश्री वृद्धांश्रम जाते थे. बुजुर्गों को नये कपडे, मिठाई और नाश्ता देते थे. जरुरतमंद बच्चों की फिज का भुगतान करना, उन्हें किताबें और अन्य शिक्षा सामग्री प्रदान करना, उनके नियमित काम का हिस्सा था. वह जब जिला बैंक के प्रशासक थे, तो उन्होंने एक पैसा लिये बिना कई बच्चों को रोजगार दिया. उनके संबंधों के माध्यम से निजी नौकरी पाने वालों की बडी संख्या है. पिछले 15 से 20 वर्षों में अमरावती में हुए सभी भव्य और दिव्य आयोजनों में सोमेश्वर ने सिंह की भूमिका निभाई. राष्ट्रपति बनने के बाद राज्य मेें प्रतिभाताई पाटील के पहले भव्य अभिनंदन समारोह की योजना खुद सोमेश्वर ने बनाई थी. ऐसे कई कार्यक्रम है, उनकी रचनात्मकता ने आझाद हिंद गणेशोत्सव मंडल को पूरे महाराष्ट्र में प्रसिद्ध बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई. अमरावती व राज्य के प्रसिद्ध कलाकारों और लेखकों के एक या एक से अधिक कलात्मक, सुंदर रुप और कार्यक्रमों पर दावत देते थे. गणेशोत्सव के 10 दिन सोमेश्वर में उत्साह देखा जाता था. दुर्भाग्य से शिवसेना ने सोमेश्वर के इन गुणों और शक्तियों का उचित उपयोग नहीं किया. अगर पार्टी ने सोमेश्वर को सत्ता दी होती, तो विदर्भ आज शिवसेना का एक मजबूत संगठन नजर आता. उद्धव ठाकरे से लेकर शिवसेना के तमाम बडे नेता उन्हें निजी तौर पर जानते थे. जब भी पार्टी पर संकट आता था, वह उनसे सलाह मशवीरा करते थे. कई मुश्किल काम भी उन्होंने मौके पर किये. लेकिन पार्टी ने उन्हेें राजनीतिक सत्ता देने के बारे मेें कभी नहीं सोचा, लेकिन फिर भी सोमेश्वर शिवसेना के प्रति वफादार थे. वह कहते थे कि, हमें शिवसेना ने मान्यता दी है. हमें काम करते रहना चाहिए. अपनी लाईव को बडा करते रहना चाहिए. पिछले कुछ सालों में उन्होंने ऐसा ही किया. कई सामाजिक, व्यापक मुद्दों को उठाया. उन्होंने पार्टी और संगठन से परे अपनी पहचान बनाई थी. 2009 में अमरावती में इंडिया बुल का थर्मल प्रोजेक्ट आया उस प्रोजेक्ट के लिए किसानों का सही पानी दिया गया. इसके खिलाफ बी.टी. देशमुख, प्रभाकरराव वैद्य के नेतृत्व में उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय तक लडाई लडी. उन्होंने विदर्भ के बैकलॉग के सवाल पर भी अच्छा अध्ययन किया था. हाल के वर्षों में उन्होंने विभिन्न मंचों पर इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया. विश्वविद्यालय में प्रबंधन परिषद के सदस्य रहते हुए उन्होंने छात्रों के हित में कई निर्णय लिए. जब मैं विश्वविद्यालय की प्रबंधन परिषद में था, मैंने प्रवेश द्बार पर गाडगे बाबा की एक मूर्ति स्थापित करने के लिए उनके संघर्ष का अनुभव किया, जो गाडगे बाबा के सटीक कार्य की व्याख्या करता है. मदद करते हुए उन्हें कभी अपने-पराए का अहसास नहीं हुआ. वह विभिन्न राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों उनके अधिकारियों और कार्यकर्ताओं की हर तरह से मदद करते थे. ये हमारे बुधवारा के संस्कार है. पिछली पीढी मेें ऐसे कई लोग थे. मेरी उनसे तुलना कहीं नहीं, वह हर बात नम्रता से कहते थे. उनके मन में कभी किसी के प्रति कोई कटुता या द्बेष नहीं था. मैंने उसे कभी किसी का बुरा बोलते नहीं देखा. उसे गपशप करने से नफरत थी. सोमेश्वर की कितनी यादें बयां की जा सकती हैं. वह यारो का यार थे. वह अत्यंत दयालु, खुश, प्रफुल्लित करने वाला था. वह हमेशा अच्छाई, अच्छे लोगों, अच्छे काम के शौकीन थे.
– अविनाश दुधे

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