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भारत में हरित क्रांति के अगुआ थे स्वामीनाथन
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 फरवरी को यह घोषणा की है कि भारत में ‘हरित क्रांति’ के जनक माने जाने वाले दिवंगत कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन (पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन) को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। जानकारी देना चाहूंगा कि पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एमएस स्वामीनाथन के साथ एक तस्वीर शेयर करते हुए यह बात कही है। सच तो यह है कि स्वामीनाथन कृषि क्षेत्र में भारत का गौरव थे। सच तो यह है कि स्वामीनाथन को “भारत में हरित क्रांति का अगुआ” माना जाता है.
वास्तव में यह बेहद खुशी की बात होने के साथ ही हम सबके लिए अत्यंत ही गौरव की बात है कि भारत सरकार देश में कृषि और किसानों के कल्याण में उनके बहुत ही उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित कर रही है। यह बहुत ही रूचिकर है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था, जिसने स्वामीनाथन को झकझोर कर रख दिया था और इसे देखते हुए ही उन्होंने वर्ष 1944 में मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। उल्लेखनीय है कि 1947 में वे आनुवंशिकी और पादप प्रजनन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) आ गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपना शोध आलू पर किया था। पाठकों को यहां यह जानकारी भी देना चाहूंगा कि स्वामीनाथन सिविल सेवा की परीक्षा में भी शामिल हुए और भारतीय पुलिस सेवा में उनका चयन भी हुआ। उसी दौरान नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फेलोशिप के रूप में कृषि क्षेत्र में एक मौका मिला। स्वामीनाथन ने पुलिस सेवा को छोड़कर नीदरलैंड जाना सही समझा. 1954 में वह भारत आ गए और यहीं कृषि के लिए काम करना शुरू कर दिया.
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि आनुवांशिक-विज्ञानी स्वामीनाथन ने वर्ष 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकिसित किए। उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं एम. एस. स्वामीनाथन को ‘विज्ञान एवं अभियांत्रिकी’ के क्षेत्र में ‘भारत सरकार’ द्वारा सन 1967 में ‘पद्म श्री’ और 1989 में ‘पद्म विभूषण’ से भी सम्मानित किया गया था। गौरतलब है कि उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विदित हो कि हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू किया गया एक प्रयास था। इन्हें विश्व में ‘हरित क्रांति के जनक’ के रूप में जाना जाता है। इस महान कृषि वैज्ञानिक इनका निधन 98 वर्ष की अवस्था में पिछले वर्ष 28 सितंबर को बीमारी के कारण अपने आवास चेन्नई में हो गया था। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 1970 में नॉर्मन बोरलॉग को उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के उनके इस महानतम कार्य के लिये नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। यदि हम यहां भारत की बात करें तो भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व मुख्य रूप से एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा किया गया था। यह भी विदित हो कि हरित क्रांति को तीसरी कृषि क्रांति के रूप में भी जाना जाता है। हरित क्रांति के कारण भारत में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हुआ और देश कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना। यह हरित क्रांति ही थी जिसके कारण से भारत में फसल की पैदावार और कृषि उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि देखी गई और भारत कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता का साक्षी बना.
पाठक अवश्य जानते होंगे कि हरित क्रांति के परिणामस्वरूप खाद्यान्न विशेषकर गेहूंँ और चावल के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई, जिसकी शुरुआत 20वीं शताब्दी के मध्य में विकासशील देशों में नए, उच्च उपज देने वाले किस्म के बीजों के प्रयोग के कारण हुई। विवरण मिलता है कि इसकी प्रारंभिक सफलता मेक्सिको और भारतीय उपमहाद्वीप में देखी गई। वर्ष 1967 से पहले भारत में खाद्यान्न का उत्पादन इतना नहीं होता था और भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में एक आत्मनिर्भर देश नहीं था। जानकारी देना चाहूंगा कि 1943 में, भारत विश्व में सबसे अधिक खाद्य संकट से पीड़ित देश था। बंगाल में अकाल के कारण पूर्वी भारत में लगभग 4 मिलियन लोग भूख के कारण मारे गए थे. वर्ष 1967-68 तथा वर्ष 1977-78 की अवधि में हुई हरित क्रांति भारत को खाद्यान्न की कमी वाले देश की श्रेणी से निकालकर विश्व के अग्रणी कृषि देशों की श्रेणी में परिवर्तित कर दिया। वास्तव में दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत में भुखमरी की समस्या को दूर करने हेतु हरित क्रांति शुरू की गई थी। ग्रामीण विकास, औद्योगिक विकास पर आधारित समग्र कृषि का आधुनिकीकरण; बुनियादी ढांँचे का विकास, कच्चे माल की आपूर्ति आदि हरित क्रांति के दीर्घकालिक उद्देश्यों में शामिल थे। हरित क्रांति के अन्य उद्देश्यों में क्रमशः फसलों का वैज्ञानिक अध्ययन करना,कृषि और औद्योगिक दोनों क्षेत्र के श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करना तथा कृषि का वैश्वीकरण करना शामिल था। इतना ही नहीं यह हरित क्रांति ही थी जिसके कारण से भारत में कृषि भूमि में विस्तार संभव हुआ। हरित क्रांति के कारण ही वर्ष में एक के बजाय दो फसल जिसे दोहरी फसल प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है, प्राप्त करने का निर्णय लिया गया. इससे पहले भारत में वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती थी। हरित क्रांति के कारण ही भारत में विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं, बांधों का निर्माण करने के साथ ही अन्य सिंचाई तकनीकों का विकास भारत में प्रारंभ हुआ। जानकारी देना चाहूंगा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा उच्च उपज देने वाले बीज(सुपीरियर जेनेटिक्स), मुख्य रूप से गेहूं , चावल, बाजरा और मक्का के बीजों की नई किस्मों को विकास किया गया. गेहूँ तो लंबे समय तक हरित क्रांति का मुख्य आधार बनी रही। हरित क्रांति की ही देन है कि भारत में कृषि में ट्रैक्टर, कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग जैसे आधुनिक तरीकों एवं प्रौद्योगिकियों का प्रयोग शुरू हुआ। हरित क्रांति के कारण भारत में फसल उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1978-79 में 131 मिलियन टन अनाज का उत्पादन हुआ और भारत विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पादक देश के रूप में स्थापित हो गया। खाद्यान्न आयात में अभूतपूर्व कमी आई। हालांकि हरित क्रांति ने बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा दिया जिससे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर, कंबाइन, डीज़ल इंजन, इलेक्ट्रिक मोटर, पंपिंग सेट इत्यादि विभिन्न प्रकार की मशीनों की मांँग उत्पन्न हुई। हरित क्रांति के कारण ही भारत में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशी आदि की मांग में भी काफी वृद्धि हुई । कुल मिलाकर हरित क्रांति कई विकासशील देशों, विशेष रूप से भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक रही। भारत गाँवों का देश(75 प्रतिशत आबादी कृषि आधारित) रहा है और यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के साथ जुड़ी हुई है। इसके बावजूद अनेक वर्षों तक यहाँ कृषि से जुड़े लोग भुखमरी के कगार पर अपना जीवन बिताते रहे। स्वामीनाथन ने अपने प्रयोगों से कृषि क्षेत्र को एक नवीन दिशा व दशा प्रदान की। आज भले ही वे हमारे बीच मौजूद नहीं हैं लेकिन देश को अकाल से उबारने और किसानों को मजबूत बनाने वाली नीति बनाने में उन्होंने अहम योगदान निभाया था। बताता चाहूंगा कि उनकी अध्यक्षता में एक आयोग का भी गठन किया गया था जिसमें किसानों की दशा को सुधारने के लिए कई अहम सिफारिशें की गई थीं। स्वामीनाथन को भारत रत्न से नवाजा जाना एक महानतम कृषि वैज्ञानिक का सम्मान है.
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड.