लेख

क्रूरतम इलाज

बेशक विज्ञान ने अनेक प्रगति की है. उपचार के लिए नये-नये साधन उपलब्ध कराये है, जो मानवीय जीवन के लिए हितकारी साबित हो रहे है. लेकिन आज भी अंधश्रद्धा का प्रभाव कुछ क्षेत्र में इतना अधिक है कि, वे उपचार के नाम पर क्रूरता को खुली आंखों से देखते है. विशेषकर यह क्रूरता उनकी अपनी संतान के साथ होती है. लेकिन पालकों का मन फिर भी नहीं पसीजता. उपचार करने वाले तांत्रिक को बीमारी समाप्ती का मुख्य आधार मानते हुए इस क्रूरता को खुले आम देखा जाता है. यह घटना चिखलदरा के समीप खटकाली गांव में हुई है. यहां एक 3 वर्षीय बालक बीमार था. जिसे उसके माता-पिता स्वास्थ्य केंद्र में न ले जाते हुए तांत्रिक के पास गये. तांत्रिक ने उपचार के नाम पर जिस क्रूरता का परिचय दिया यह बात मेलघाट क्षेत्र में आज भी कितना पिछडापन है. इस बात को उजागर करती है. नौनिहाल को इलाज के नाम पर दर्जनों गर्म चटके पेट पर दागे गये. जिससे बालक चीखता-चिल्लाता रहा पर न तो पालकों का दिल पसीजा और ना ही क्रूरता की पराकाष्टा को छूने वाले तांत्रिक का इस मामलें को गंभीरता से लिया गया है.
मेलघाट में कुपोषण की त्रासदी के बाद प्रशासन ने पूरा ध्यान देना आरंभ किया है. आज मेलघाट में स्वास्थ्य एवं शिक्षा के नाम पर करोडों रुपए खर्च किये जाते है. लोगों में जनजागृति हो, इसलिए कोरकू भाषा समझने वाले शिक्षक, आशा वर्कर्स व सेविकाओं की नियुक्ति की गई है. लेकिन पाया जाता है कि, इस दिशा में जिस रुप में कार्य होना चाहिए. उस रुप में कार्य नहीं हो पा रहा है. अन्यथा इस तरह इलाज की नौबत नहीं आती. सरकार की ओर से स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करने के लिए अनेक केंद्र जारी किये गये है. हालांकि अधिकांश केंद्र ग्रामीण क्षेत्र में है. जिसका आदिवासी बंधू लाभ उठा सकते है. लेकिन उन्हें उपचार के लिए केंद्रों में जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है. सरकार का लक्ष है कि, चाहे छोटी बीमारी हो या बडी स्वास्थ्य केंद्रों को भी उसका इलाज हो. लेकिन पालकगन इस बारे में अभी भी उदासीन है. वे बालकों के उपचार के लिए तांत्रिक की शरण लेते है. उन्हें भय है कि, बालक पर आयी बीमारी का यह भी चिकित्सक से इलाज करवाया गया तो देवी या देवता नाराज हो जाएगे. इसके चलते तांत्रिक की शरण लेना ही उनके पास एकमात्र विकल्प रहता है.
बालक के साथ उपचार के नाम पर जो कू्ररता बढती गई, वह केवल अमानवीय है बल्कि दिल पर आघात करने वाली है. विशेषकर यह बात विज्ञान की भी हो रही है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि, वे इस बात की समीक्षा करें कि, आदिवासियों को जागरुक करने वाले उन्होंने जो अभियान छेडा है उसे कहा तक सफलता मिली है. हालांकि बालक को अस्पताल में लाया गया है. उसका उपचार जारी है. साथ ही उसे खतरे के बाहर बताया जा रहा है. लेकिन इस तरह की उपचार करना भी अपने आपमें एक अपराध है. जरुरी है कि, जिस तांत्रिक की ओर से नौनिहाल को यातना दी गई. उसके खिलाफ कडी से कडी कार्रवाई की जानी चाहिए. साथ ही इस तरह की उपचार प्रणाली पर रोक लगाई जाये. तभी आदिवासी क्षेत्र में जनजागृति हो सकती है. अन्यथा इस तरह की घटनाएं बार-बार होती रहेगी, ऐसी घटनाओं को रोक लगाना चाहिए. साथ ही आदिवासी बहुल क्षेत्र के नागरिकों को इस बात का ऐहसांस कराना जरुरी है कि, उनका पिछडापन कैसे दूर किया जाए. स्पष्ट है आदिवासी क्षेत्र मेें आज भी भीषण पिछडापन है. उसे दूर करने के लिये प्रयास जरुरी है. बहरहाल जिस बालक के साथ यह अन्याय हुआ है उसका उपचार किया जाना चाहिए. यातना के कारण बालक के मन पर जो भय निर्माण हुआ है. उसे दूर करने का भी प्रयास होना आवश्यक है. कुलमिलाकर आज भी देश में अनेक स्थानों पर लोग अंधश्रद्धा के शिकार है. हालांकि सेवाभावी संस्थाएं अंधश्रद्धा दूर करने के लिए पहल आवश्य कर रही है. लेकिन उसके सार्थक परिणाम अभी नहीं मिले है. सरकार को चाहिए कि, इस तरह के अघोरी प्रणाली से जो उपचार हो रहा है उसे न केवल रोका जाना चाहिए बल्कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जानी चाहिए.

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