विश्व 2 अप्रैल को ऑटिज्म जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है. स्वलीनता अर्थात ऑटिज्म मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है. जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डीसऑर्डर यह विकासात्मक विकलांगता का एक प्रकार है. इसके शुरुआती लक्षण बालक के एक से तीन साल की उम्र के दौरान दिखाई देते है. आमतौर पर 2 से 3 साल के बालकों में यह लक्षण साफतौर पर दिखाई देते है. ऑटिज्म का प्रमाण लडकियों से अधिक लडकों में दिखाई देता है. इसमें लडकों का प्रमाण 75 प्रतिशत तथा लडकियों का प्रमाण 25 प्रतिशत पाया जाता है.
* ऑटिज्म के लक्षण
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीनों की आयु में (या इससे पहले भी) दिखते हैं जो सामान्य से लेकर गंभीर हो सकते हैं.
-भाषा विकास में विलंब. इसमें शाब्दिक प्रतिसाद कम मिलता है.
-अति चंचलता व अपनी ही दुनिया में जीना.
– दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को ना समझ पाना
– नाम से पुकारने पर प्रतिसाद न देना.
-आंखों में आंखें मिलाकर ना देखना या आई-कॉन्टैक्ट ना बनाना.
-खुद होकर नए मित्र ढुंढना या अन्यों से मैत्री करना कठिन लगना.
-निश्चित जीवनशैली जीना, इसमें जरासा भी बदल होने पर अस्वस्थ होना.
-हमेशा कुछ हलचल करते रहना.
-कुछ बातें समझने के लिए समय लगना.
अभिभावकों को यह जानना आवश्यक है कि, ऑटिज्म यह बीमारी नहीं है, बल्कि अवस्था है. किंतु ऑटिज्म से पीडित व्यक्ति का मस्तिष्क अन्य लोगों की अपेक्षा अलग प्रकार से काम करता है.
* ऑटिज्म के कारण
अभी तक ऑटिज्म के सही कारणों का पता नहीं चल सका है. हालांकि, यह डिसऑर्डर कुछ अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारणों से होता है. जैसे कि गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग के विकास को बाधित करते हैं. जैसे-
दिमाग के विकास को नियंत्रित करने वाले जीन में कोई गड़बड़ी होना
सेल्स और दिमाग के बीच सम्पर्क बनाने वाले जीन में गड़बड़ी होना
गर्भावस्था में वायरल इंफेक्शन या हवा में फैले प्रदूषण कणों के सम्पर्क में आना
* ऑटिज्म का निदान (डायग्नोसिस)
फिलहाल, ऑटिज्म के डायग्नोसिस या निदान के लिए कोई विशिष्ट टेस्ट नहीं है. आमतौर पर, अभिभावकों को बच्चे के व्यवहार और उनके विकास पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है. ताकि, डिसऑर्डर का पता लगाने में मदद हो. तीन साल से अधिक बालकों का व्यवहार अर्थात बिहेवियर व विकास की स्किल्स पर से ऑटिज्म का निदान किया जा जाकता है. इसके लिए कुछ पैरेंटस् का इंटरव्यू आधारित टेस्ट जैसे की सीएआरएस/आयएसएए टेस्ट उपलब्ध है.
* उपचार व ट्रीटमेंट
ऑटिस्टिक बच्चों का अलग व्यवहार यह जानबुझकर नहीं किया जाता, यह एक अवस्था के कारण होता है, इस बात को समझते हुए उन्हें प्रेम और आधार दिया जाए.
-टीवी, मोबाइल टालें.
-ज्यादा खेलने न दें.
-बालकों से प्रत्यक्ष फेस टू फेस संपर्क करें.
– बालक जिससे आकर्षित हो, ऐसा संवाद करें.
-बालकों को अन्य बालकों में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने दें.
-प्रक्रिया युक्त खाद्यपदार्थ अर्थात प्रोसेसड फूट देना टालें.
ऑटिज्म औषधि उपचार से पूरी तरह ठीक नहीं होता. लेकिन सही उपचार द्वारा ऑटिज्मग्रस्त बालक स्वावलंबी जीवन जी सकें, ऐसी उपाय योजना कर सकते है.
ऑटिज्म पर विविध उपचार पद्धति उपलब्ध है. उदाहरण के तौर पर बिहेवियर थेरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी, सेंसरी इंटिग्रेशन थेरपी, प्ले थेरेपी, स्पीच एन्ड लैंग्वेज थेरेपी, आदि.
कुछ ही केसेस में कुछ अलग व्यवहार पर औषधि का उपयोग डॉक्टरों की सलाह से कर सकते है. इसलिए अपने बच्चों में किसी भी तरह के असामान्य लक्षण दिखाई दिए तो तुरंत विशेषज्ञ डॉक्टरों से सलाह लें.
-डॉ. ऋषिकेश घाटोल, बाल रोग विभाग,
डॉ.राजेंद्र गोडे वैद्यकिय महाविद्यालय,
मार्डी रोड, अमरावती