असुरक्षित बचपन
बालश्रम प्रतिबंधक १९८६ के अनुसार १४ वर्ष से कम आयु के बालको को काम पर रखने को जुर्म करार दिया है्. बावजूद इसके आज भी बालश्रम का चोरी छिपे दुरूपयोग हो रहा है. बेशक आज बालश्रम विरोधी दिवस के अवसर पर बालको की पीड़ा को महसूस किया जा रहा हो. लेकिन यह सच है कि आज भी बालको का बचपन असुरक्षित हो गया है्. कम वेतन में काम हो इसलिए परिपक्व कर्मचारियों को काम पर रखने की बजाय अधिकांश प्रतिष्ठान संचालक बालको को काम पर रखकर नियमों का उल्लंघन करते है. हालाकि बालश्रम विरोधी कानून के अंतर्गत तीन माह से एक वर्ष तक अथवा १० से २० हजार रूपये जुर्माना का प्रावधान है. लेकिन पाया जाता है कि बालको से भीख मंगवाने से लेेकर अनेक जटिल कार्य करवाए जाते है. लेकिन समाज इसकी ओर दुर्लक्ष करता है. यही कारण है कि बालश्रम पर अय्याशी करनेवाले तत्व आज भी खुले आम घूमते पाए जाते है तथा बालश्रम में जुटा बालक यह जान ही नहीं पाता कि कब उसका बचपन खत्म हो गया. इसलिए बालश्रम विरोधी दिवस मनाते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बालश्रम रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है. बालश्रम रोकने की दृष्टि से सार्वजनिक कार्यक्रमों में बालश्रम विरोधी जनजागृति होना आवश्यक है. केवल एक दो मामलो में हाथ बटा देना ही पर्याप्त नहीं है. इसके लिए हमें व्यापक जनजागृति की आवश्यकता है. हाल ही में नागपुर में एक महिला द्वारा अपने नवजात शिशु की पिटाई करने का वीडियो वायरल हुआ था. जिस पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की महिला पदाधिकारियों ने उक्त महिला को न केवल योग्य सबक किया बल्कि ससुराल के लोगों द्वारा की गई प्रताडऩा के कारण उक्त महिला ने अपने बालक के साथ बुरी तरह मारपीट की थी उसे आवश्यक सहायता भी प्रदान की गई. अभिप्राय यह कि यदि आमनागरिक ऐसे मामलों को गंभीरता से ले तो उन पर रोक लग सकती है. सामान्य आदमी यह सोचकर मामला घर का है. उसे नजर अंदाज कर देगा. ऐसे में लोगों को ही जागरूकता का परिचय देना होगा. कोई भी बालक अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर पाता. इसलिए जहां पर भी नौनिहालों के साथ अन्याय होता है वहां पर आम नागरिक को भी हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि नौनिहालों के साथ अन्याय न हो.
बालको के शोषण का सबसे बड़ा केन्द्र बालको से भीख मंगवाना है. ऐसे तत्वों पर कडी निगरानी रखना आवश्यक है. अनेक मंदिरों व प्रतिष्ठानों मेंं स्पष्ट रूप से लिखा रहता है कि यहां बाल श्रमिक कार्य नहीं करते. लेकिन हकीकत कुछ और रहती है. इसलिए जरूरी है कि बालको के साथ अन्याय न हो इसलिए बालको को भीख देने का क्रम रोकना चाहिए. कई बार पाया जाता है कि बालको से भीख मंगवाने के लिए उन्हें भारी यातनाए दी जाती है. इसलिए सभी को चाहिए कि बालको को भीख न दे. संभव हो सके तो बालको को खाना खिला दे या जो पैसे भीख में दिए जानेवाले है. उससे कुछ खाद्य पदार्थ लेकर बालको को दिए जाए. बीते दिनों कुछ ऐसे मामले भी सामने आए थे कि जिसमें नवजात बालको का अपहरण कर दूसरे शहर में उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया गया. स्पष्ट है यदि बालको को भीख न दी जाए तो ऐसे गिरोह अपने अपने आप समाप्त हो जायेंगे.
बालको के हित में अनेक बाते की जाती है. लेकिन पाया जाता है कि कार्रवाई के रूप में कोई काम नहीं किया जाता. केवल बाल दिवस व बालश्रम विरोधी दिवस पर ही उन्हेें याद किया जाता है. बाकी दिन में उन्हें अनेक यातनाओं से गुजरना पडता है. हालाकि बालको के हित के लिए प्रशासन की ओर से चाईल्ड लाईन का कार्य आरंभ किया गया है. इसके माध्यम से यदि कोई बालक मुसीबत में फंसा है तो उसे मुक्त किया जा सकता है. बालश्रम विरोधी दिवस मनाते समय हर किसी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि बालको के साथ अन्याय न हो तथा जो तत्व अपनी सुख सुविधा के लिए बालको का इस्तेमाल करते है उन्हें चाईल्ड लाईन या कानून की मदद से कार्रवाई का शिकार बनाया जा सकता है. इसलिए केवल बालश्रम विरोधी दिवस मनाना ही पर्याप्त नहीं है. जरूरी है कि हर कोई बालको की पीडा को समझे एवं बालको का बचपन लौटाने के लिए जो भी सहयोग किया जा सकता है वह अवश्य करे.
अभिप्राय यह आज भी बालको के साथ अन्याय अत्याचार का सिलसिला जारी है. हालाकि हर व्यक्ति के मन में बालको के प्रति अपनापन रहता है.लेकिन स्वार्थी तत्व जो सक्षम व्यक्ति से नहीं लड सकते. इसलिए वे अपने से कमजोर बालको को ही अपना शिकार बनाते है. ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रशासन को आगे आना चाहिए. साथ ही बालको के साथ अन्याय न हो इस दृष्टि से जनजागृति भी की जानी चाहिए. यदि हर कोई बालको की पीडा को समझे तो बालश्रम के विरोध में सफल कार्य किया जा सकता है.