लेख

वसुधाताई देशमुख : अष्टपैलू व बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी

अध्यक्ष अमरावती जिला महिला बैंक अमरावती

वसुधाताई देशमुख का संबंध सामाजिक-आर्थिक जीवन से भी है. अमरावती में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटील द्वारा अमरावती जिला महिला बैंक की स्थापना वर्ष 1975 में की गई. इस बैंक की स्थापना में वसुधाताई का बराबर का सहयोग है. बैंक की स्थापना से वसुधाताई देशमुख अब तक महिला बैंक की संचालक हैं. वसुधाताई ने 1987 से 1995 इस कालावधि में बैंक के अध्यक्ष पद पर कार्य किया. उन्होंने अमरावती जिले की जरुरतमंद महिलाओं को व्यवसाय के लिए वित्त आपूर्ति की. महिला बैंक यह महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण वित्त संस्था है. काफी समय तक वसुधाताई का बैंक पर नियंत्रण रहा. बैंक के चुनाव में वसुधाताई के नेतृत्व में समता पैनल चुनाव में रहता है. वसुधाताई ने दीर्घ काल तक बैंक का अध्यक्ष पद विभूषित किया. अपने परिसर की महिलाओं को बैंक के माध्यम से बड़ी आर्थिक सहायता प्राप्त करवाई है. अनेक महिलाओं को स्वयं रोजगार व्यवसाय के लिए कर्ज आपूर्ति की है. इस कारण से अनेक महिला आर्थिक दृष्टि से सक्षम हुई हैं. इस कारण ही चांदूर बाजार, अचलपुर परिसर की महिलाएं वसुधाताई के साथ खड़ी रही व आगे राजनीतिक जीवन में वसुधाताई को इन कार्यों का लाभ होते दिखाई दिया. बैंक यह क्षेत्र वसुधाताई के जीवन का एक अलग व महत्वपूर्ण पहलू है.
विधान परिषद सदस्य महाराष्ट्र राज्य- वसुधाताई देशमुख 1979 से 1987 में जिला परिषद सदस्य रहते उन्होंने महाराष्ट्र जलापूर्ति मंडल के अध्यक्ष, महिला आर्थिक विकास महामंडल का अध्यक्ष पद विभूषित किया. उनके इन कार्यों की एवं उनके कर्तृत्व व वक्तृत्व की दखल राजनीतिक श्रेष्ठजनों द्वारा ली गई. उन्हें 1987 में स्थानीय स्वराज्य संस्था, अमरावती मतदार संघ से कांग्रेस की उम्मीदवारी मिली. वसुधाताई विजयी होकर विधानपरिषद सदस्य बनी. इस चुनाव में जिला परिषद सदस्यों का सहभाग होता है व वसुधाताई के नेतृत्व का मूल स्तंभ पंचायत व्यवस्था है. वसुधाताई 1987 से 1993 एवं 1993 से 1999 इस कालावधि में लगातार 12 वर्ष विधान परिषद सदस्य रही. वसुधाताई ने 1987 से 2003 इस प्रदीर्घ कालावधि में विधिमंडल सदस्य के नाते काफी काम किए हैं. जनता की जरुरतों को जानते हुए पंचायतराज व्यवस्था से उदीयमान हुए वसुधाताई देशमुख का नेतृत्व एवं विकास.
प्रस्तावना- वसुधाताई देशमुख महाराष्ट्र रज्य की एक कृतिशील राजनीतिक नेता के रुप में परिचित हैं. राज्य के मंत्रिमंडल में उन्होंने विविध खातों का मंत्री पद विभूषित करने के साथ ही जनसामान्यों की विशेष रुप से ग्रामीण प्रश्नों के लिए आगे आने वाली के रुप में ख्याति प्राप्त है. उनके कार्यों की समीक्षा राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र में काम करने इच्छितों का नेतृत्व कर महिला-पुरुषों को मार्गदर्शक साबित होगा. इसमें कोई शंका नहीं. महिलाओं के लिए तो उनके काम विशेष रुप से प्रेरणादायी साबित होंगे.
वसुधाताई देशमुख का बचपन और सार्वजनिक जीवन – वसुधाताई देशमुख के पिता का मुख्य घराना दर्यापुर तहसील के शिवर का है. वसुधाताई के पिता यादवराव देशमुख को देवरावजी रंभाजी देशमुख ने दत्तक लेने के कारण टाकरखेडा यह यादवराव देशमुख की कर्मभूमि रही. स्व. देवराव रंभाजी देशमुख का व्यवसाय खेती था. उन्होंने स्वतंत्रता के समय सक्रिय सहभाग लिया वहीं अमरावती नगरपालिका के अध्यक्ष के रुप में उनके काम सफल साबित हुए थे. घ़र में ऐसे सामाजिक व राजनीतिक पार्श्वभूमि रहते घर की खेती व्यवसाय के कारण यादवराव को टाकरखेडा गांव में ेरहना क्रमप्राप्त था. उन्होंने खेती करते-करते ही प्रतिकूल परिस्थिति से मार्ग निकालते हुए सामाजिक व राजनीतिक जीवन व कार्यों की शुरुआत की. उस समय टाकरखेडा गांव में जाने के लिए रास्ता नहीं था, बिजली नहीं थी, यादवराव देशमुख के साथ काम करने का अवसर उन्हें मिला. इसी समय इस घराने को राजनीतिक वारसा प्राप्त हुआ. वसुधाताई के पिता यादवराव देशमुख ने गांव में कुछ सुधार कर अपने गांव में श्रीराम विद्यालय की स्थापना की. वहीं आष्टी से टाकरखेडा रास्ता तैयार किया. उन्होंने सरपंच, पंचायत समिति के अध्यक्ष एवं कृषि उपज बाजार समिति के अध्यक्ष आदि पद विभूषित किए. वसुधाताई को राजनीतिक वारसा पिता की ओर से ही मिला. वसुधाताई को स्वयं को शुरुआत से ही सामाजिक क्षेत्र में काम करने की इच्छा रही. पिता के राजनीतिक कार्य उनके सामने थे. 1960 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण, कृषि मंत्री डॉ. पंजाबराव देशमुख, महाराष्ट्र राज्य ग्रामीण विकास मंत्री आबासाहब खेडकर का श्रीराम विद्यालय व गांववासियों की ओर से टाकरखेडा में सत्कार कार्यक्रम आयोजित किया गया था. उस समय श्रीराम मंदिर में प्रदर्शनी का आयोजन वसुधाताई ने ही किया था. इस समय शाला की वसुधाताई का सीधा संबंध राजनीतिक श्रेष्ठों से आया. वसुधाताई ने उस समय उत्साह से उनके हस्ताक्षर से भी लिया था. वह हस्ताक्षर अब भी टाकरखेडा के निवासस्थान पर है. वसुधाताई की प्राथमिक शिक्षा टाकरखेडा में हुई. शाला में सभी कार्यक्रमों में उनका सक्रिय सहभाग होता था. जिस समय तुकडोजी महाराज के स्वच्छता अभियान के कार्यक्रम के लिए मोझरी के स्वयंसेवक आये थे, उस समय उनका मुकाम वसुधाताई के घर पर था. उस समय पहले क्रमांक की प्राथमिक शाला को मिला वहीं वसुधाताई को लंगड़ी खेल में प्रथम पुरस्कार मिला. कम उम्र में ही वसुधाताई का गांव के अनेक सार्वजनिक उपक्रम में सक्रिय सहभाग रहने से गांववासियों ने उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया. घोड़े पर बिठाकर उनकी गांव में यात्रा निकाली गई. 1960 के दशक में ग्रामीण भाग में स्त्री शिक्षा का प्रमाण अत्यल्प रहते वसुधाताई ने 10 वीं तक की शिक्षा पूर्ण की. दसवी पास होने के बाद वसुधाताई का विवाह शिरजगांव बंड के नानासाहब देशमुख के साथ हुआ. नानासाहब का घराना सुखसंपन्न था. नानासाहब का खेता का व्यवसाय था. इसके साथ ही पुस्तक प्रकाशन का व्यवसाय अमरावती में था. इस कारण उनका अधिक वास्तव्य अमरावती में और काम का पसारा बड़ा था. वे ग्रंथ प्रेमी थे. अनेक साहित्यिकों से उनके संबंध थे. गो.नी. दांडेकर, बाबासाहब पुरंदरे, ग.त्र्य.माडखोलकर की कादंबरिया उन्हें प्रसिद्ध की. कुछ के तो अपने कादंबरी लेखन उनके शिरजगांव बंड के बाड़े में रह गए. नानासाहेब को इस बात का काफी अभिमान था. वसुधाताई के भी इन साहित्यिकों से स्नेह संबंध निर्माण हुए. वसुधाताई को दसवीं के बाद की अगली शिक्षा के लिए नानासाहब ने सहमति दी. वसुधाताई ने घर संभालकर एम.ए. मराठी तक की शिक्षा पूर्ण की. वहीं एम.ए. राजनीतिक शास्त्र शिक्षा पूरी की. एम.ए. में प्रा. बी.टी. देशमुख ने उन्हें पढ़ाया था. उनका ही आदर्श वसुधाताई ने लिया. एक उच्च विद्या विभूषित महिला के रुप में वसुधाताई का व्यक्तित्व साकार हुआ. शिक्षा शुरु रहते समय ही वसुधाताई ने खेती व्यवसाय की तरफ ध्यान दिया. यह उनके व्यक्तित्व का नया आयाम कहा जा सकता है. उन्होंने शिरजगांव बंड में विविध स्थानों पर के खेत बेचकर एकत्रित खेत लिया व सभी तरह के सीड का उत्पादन लेने की शुरुआत की. इसमें ज्वारी, कपास, जूट आदि का समावेश था. उसी तरह चांदूर बाजार भाग में एक भी संतरा बगीचा नहीं था. वसुधाताई ने सबसे पहले संतरे का बगीचा लगाकर इस भाग में संतरा उत्पादन होता है यह दिखाया दिया. अब बड़े पैमाने पर इस भाग में संतरा उत्पादन हो रहा है.
जिला परिषद सदस्य पद पर चयन- महाराष्ट्र में 1 मई 1962 से पंचायतराज व्यवस्था अमल में लायी गई. उस समय पंचायत राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए कोई भी आरक्षित जगह नहीं थी. ऐसे समय में 1979 में जिला परिषद तलवेल-शिरजगांव बंड सर्कल से उन्हें उम्मीदवारी मिली. इस चुनाव में वसुधाताई भारी वोटों से विजयी हुई. 1979-1987 तक वे जिला परिषद सदस्या रही. यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की यात्रा की शुरुआत हुई. 1972 से 1987 इस कालावधि में वे चुनकर आयी एकमात्र सदस्य थी. अध्यक्ष महिला आर्थिक विकास महामंडल 1987 में जिला परिषद सदस्य रहते समय महिला आर्थिक विकास महामंडल में अध्यक्ष के रुप में उनका चयन हुआ. उनकी कालावधि 1981 से 1983 ऐसे तीन वर्ष थी. उस समय इस मंडल का काम पुणे, मुंबई, सोलापुर आदि जिलों में था. इस महामंडल का काम वसुधाताई देशमुख ने सोसाइटी को लागू होता है. सद्य स्थिति में पिपल्स वेल्फेअर सोसाइटी अंतर्गत 26 स्कूल, आश्राम शाला, महाविद्यालय कार्यरत हैं. विशेषतः धारणी, चिखलदरा इस दुर्गम आदिवासी क्षेत्र में हरिसाल, सावलीखेडा, खापरखेडा, बोरी, शिरपुर, पिंपलखुटा इन स्थानों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुविधा संस्था द्वारा की गई है. पिपल्स वेलफेअर सोसाइटी अंतर्गत कुल 428 कर्मचारी कार्यरत हैं. शुरुआत में संस्था का उद्देश्य शालेय शिक्षा ही था. लेकिन ग्रामीण भाग में उच्च शिक्षा की सुविधा हो, इस उद्देश्य से उन्होंने चांदूर बाजार में स्व. नारायणराव अ. देशमुख महाविद्यालय की 1991 में स्थापना की. इस महाविद्यालय में बीए, बीबीए, बीसीए, बी.लीब, डीबीएम व एमए भूगोल यह अभ्यासक्रम हैं. वसुधाताई का मूल स्वभाव अत्यंत धार्मिक व आध्यात्मिक है.उन्होंने संस्था अंतर्गत रहने वाली शालाओं को दिए नाम से उनकी ख्याति है. इसकी समीक्षा लेना आवश्यक लगता है. जिजामाता विद्यालय चांदूर बाजार, संत गुणवंतबाबा विद्यालय तलेगांव मोहना, देवकीनंद विद्यालय सुरली, राजे शिवाजी उच्च माध्यमिक विद्यालय हरिसाल, श्री दत्तप्रभू आश्रमशाला पिंपलखुटा, वसुंधरा विद्यालय दहीगांव-पूर्णा इन नामों से वसुधाताई के दिल का बड़ा पौराणिक,ऐतिहासिक व्यक्ति विषय का आदर भाव प्रकट होता है. सभी स्कूल, महाविद्यालय सुविधापूर्ण होकर गुणवत्तापूर्ण हैं. वसुधाताई के शैक्षणिक कार्यों के कारण ग्रामीण भागों में दर्जेदार शिक्षा की सुविधा उपलब्ध हुई.
– संतोष अशोकराव शेंडे
मराठी पत्रकार संघ के भातकुली तहसील अध्यक्ष, टाकरखेड़ा संभु

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