धार्मिक स्थलों पर ही प्रतिबंध क्यों?
राज्य में अनलॉक की प्रक्रिया आरंभ करते हुए अनेक मामलों में निर्बंध शिथिल किए गये है. लेकिन राज्य के धार्मिक स्थलों व धार्मिक पर्व पर प्रतिबंध अभी भी कायम है. निश्चित रूप से यह विरोधाभास लोगों को सोचने के लिए मजबूर करता है. बेशक सरकार का दावा है कि धार्मिक स्थलों को खोलने की अनुमति दी गई तो वहां बढनेवाली भीड़ के कारण कोरोना का संक्रमण तीव्र हो सकता है. इसलिए मंदिर खोलने या धार्मिक पर्वो को आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जा रही है. वर्तमान समय में अनेक पर्व आते है. इस हालत में लोगों की भीड़ न जमा हो. इस बात को ध्यान में रख धार्मिक स्थलों को बंद रखने का कार्य जारी है. संभव है सरकार के तर्क में कुछ सच्चाई भी हो पर जब सभी क्षेत्र को अनलॉक किया जा रहा है तो केवल धार्मिक स्थलों पर प्रतिबंध क्यों है? यह प्रश्न भी लोगों के सामने आ रहा है.
आम तौर पर जब सारे मार्ग बंद हो जाते है तो लोग ईश्वर की शरण में जाते है. लेकिन आज ईश्वर के द्वार भी बंद पड़े है. ऐसे में भक्तों की व सामान्य नागरिको की भावनाएं कितनी आहत होती होगी. इस बात का सरकार को विशेष अहसास नहीं है. मंदिर आरंभ करने को लेकर भारतीय जनता पार्टी की ओर से राज्यभर में शंखनाद आंदोलन किया जा रहा है. कुछ स्थानों पर भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मंदिरों को खोलने में सफलता पा ली है. जाहीर है जब आदेश अति होने का स्वरूप मिल जाता है तो लोग उसका पालन करना भी कम कर देते है या बंद कर देते है. मंदिरों को डेढ़ वर्षो से ताले लगे हुए है. इससे आम नागरिक भगवान के दर्शन से वंचित है. इस बारे में सरकार को अनेक निवेदन भी दिए गये है. लेकिन निवेदनों पर गौर नहीं किया गया. इसके चलते अनेक भक्तों ने सदन में नेता प्रतिपक्ष व समाजसेवी अण्णा हजारे के पास निवेदन सौंपे है. जिसके चलते अण्णा हजारे ने भी मंंदिर आरंभ न होने पर जेलभरों आंदोलन की चेतावनी दी है. जाहीर है अब लोगों ने मंदिरों को आरंभ करने की चाह तीव्र कर दी है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह योग्य रूप से चिंतन मनन कर धार्मिक स्थलों को आरंभ करने की प्रक्रिया पूर्ण करे.
ंधार्मिक स्थलों के जारी रहने से लोगों को न केवल राहत मिलेगी बल्कि वहां रहकर फलफूल के अलावा पूजा साहित्य की बिक्री करनेवाले को भी परेशानी का सामना करना पड रहा है. खासकर जिन लोगों की आजीविका धार्मिक स्थलों से जुडी है उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड रहा है. कोरोना संक्रमण का असर का कारण देकर मंदिरों को आरंभ न करना यह ज्यादती है. इसलिए जरूरी है कि धार्मिक स्थलों को आरंभ किया जाए. सरकार का मानना है कि इससे बीमारी बढने का खतरा है. इसलिए जरूरी है कि मंदिरों को आरंभ करते समय कोरोना नियमों का पालना करने का बंधन भी लगाया जा सकता है. साथ ही धार्मिक स्थलों की ओर से पूरी तरह पालन किए जाने के निर्देश भी दिया जा सकता है. जिसे धार्मिक स्थल प्रबंधन द्वारा स्वीकार भी किया जा सकता है.
कोरोना का संक्रमण केवल राज्य में ही जारी है क्या? क्योंकि पड़ोस के राज्य मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश आदि के तीर्थस्थानों पर लोगों की भीड़ दिखाई देती है. सरकार ने वैसे भी डेढ़ वर्षो तक धार्मिक स्थलों को बंद कर रखने का कार्य किया है. एक बार धार्मिक स्थलों को आरंभ करने की अनुमति देकर देखे. संभव है धार्मिक स्थलों द्वारा कोरोना नियमों का पूरा पालन किया जाए. जिससे भक्तों को कोई भी नुकसान न होगा. आज अनेक मॉल,मधुशालाए खुल गई है. ऐसे मेें केवल धार्मिक स्थलों को बंद रखने का कोई औचित्य नहीं. बीते वर्ष भी धार्मिक कार्यक्रमों पर प्रतिबंध था. तब भी समस्या समाप्त नहीं हो पायी.ऐेसे में एक बार धार्मिक स्थलों को आरंभ किया जाना चाहिए. जिससे संभव है राज्य के लिए कोई शुभ स्थिति निर्माण हो.
कुल मिलाकर धार्मिक स्थलों पर प्रतिबंध को लेकर लोगों में नाराजी है वह नाराजी अब तक लोगों ने हृदय में छिपा रखी थी. सरकार के कोरोना संक्रमण रोकने के प्रयास को साथ देेने का भी मूललक्ष्य था. उस लक्ष्य की दिशा में कार्य भी किया गया. लोगों ने अपनी आस्थाओं को संभाले रखा. अनेक भक्त मंदिर के बंद दरवाजे तक पहुंचते रहे तथा द्वार को ही माथा टेककर अपनी आस्था पूर्ण करते रहे. अब उनकी चाह है कि धार्मिक स्थल आरंभ किए जाए. सरकार को भी उनकी भावनाओं को समझना चाहिए. जब सभी क्षेत्रों में निर्बंध शिथिल हो रहे है तब धार्मिक स्थलों के मामले में ही इतनी कडाई क्यों?