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लोणार के दैत्यसुदन मंदिर में भी सूर्य किरणों का अभिषेक

प्रतिवर्ष मई माह में विष्णुमूर्ति के माथे पर चमकता है सूर्य तिलक

लोणार/दि.17– वैज्ञानिक महत्व के साथ ही अज्ञात्मिक महत्व रहने वाले लोणार में दैत्यसुदन मंदिर के तौर पर वास्तुकला का एक अद्भूत व शानदार नमूना है तथा इस दैत्यसुदन मंदिर में स्थित भगवान विष्णु यानि दैत्यसुदन के मस्तक पर प्रतिवर्ष मई माह के दौरान सूर्य तिलक दमकता है. जिसके तहत इस वर्ष 14 से 19 मई के दौरान दैत्यसुदन के माथे पर सूर्यकिरणों का अभिषेक हो रहा है. विशेष उल्लेखनीय है कि, अयोध्या में नवनिर्मित राम जन्मभूमि मंदिर में स्थापित रामलला की मूर्ति पर हाल ही में रामनवमी के पर्व पर सूर्य किरणों का अभिषेक हुआ. ठीक उसी तर्ज पर लोणार के दैत्यसुदन मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति पर भी प्रतिवर्ष मई माह के दौरान पूरे 5 दिन सूर्य किरणों का अभिषेक होता है. हालांकि इसे केवल 10 मिनट के लिए ही देखा जा सकता है. जिसके चलते इस दौरान मंदिर में भाविक श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड उमडती है.

बता दें कि, मानवीय संस्कृति की आस्था और श्रद्धास्थान ने लोणार का अपना एक अलग महत्व है. कई हजार वर्ष पहले अंतरिक्ष से गिरे उल्का पींड की वजह से लोणार में उल्का निर्मित झील की निर्मिति हुई थी. इसके साथ ही यहां पर मानव संस्कृति भी विकसित होती चली गई. लोणार स्थित दैत्यसुदन मंदिर वर्ष 1878 में दूसरी बार दुनिया के सामने आया. क्योंकि इससे पहले यह मंदिर मिट्टी के ढेर के नीचे दबा हुआ था. बाहर से किसी अनियमित तारे की तरह दिखाई देने वाला यह मंदिर बेहद प्राचीन और सुंदर कलात्मकता का उदाहरण है. हेमांड पंथी शैली से निर्मित इस मंदिर के चारों ओर नक्काशीदार खंबे है. साथ ही इस मंदिर का परिसर बेहद प्रशस्त है. इस मंदिर के गर्भगृह में काले पाशान से निर्मित शस्त्रधारी भगवान विष्णु और उनके पैरों के नीचे दबे लवणासुर नामक राक्षस की मूर्ति है. जिसका भगवान विष्णु द्वारा वध किया जा रहा है. मंदिर के निर्माण समय ही वास्तुशास्त्र व खगोलशास्त्र का विशेष तौर पर ध्यान रखे जाने के चलते प्रतिवर्ष मई माह के दौरान 5 दिन इस मंदिर में सूर्य किरणों के द्वारा अभिषेक किया जाता है और यह विलोभनीय दृश्य इन पांच दिनों के दौरान केवल 10 मिनट के लिए दिखाई देता है.

जानकारी के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण उत्तर चालुक्य राजा विजयादित्य यानि छटवे विक्रमादित्य ने त्रिभुवनकीर्ति नामक शिल्पकार के मार्गदर्शनानुसार 11 वीं शताब्दी में नवरात्र तांत्रिक पद्धति से करवाया था. जिसमें जीरो शैडो डे वाले दिन सूर्य जब ठिक सिर के उपर होता है, तो सुबह 11.10 बजे से 11.30 बजे के दौरान सूर्य की किरणे सीधे मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान विष्णु के मूर्ति से आकर टकराती है और सूर्य किरणों के इस अभिषेक में नहाई मूर्ति और भी विलोभनीय दिखाई देती है. यह किरणोत्सव अभी और दो दिन दिखेगा.

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