मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट को लगा ग्रहण, चिखलदरा का स्कायवॉक पडा ठंडे बस्ते में
आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के बाद सिडको के अधिकारी भी हुए ‘कन्फ्यूज’

* अब तक सिडको ने नई डिजाईन या अनुमति का कोई प्रस्ताव तैयार नहीं किया
* ‘अमरावती मंडल’ ने पहले ही प्रकल्प के ठंडे बस्ते के जाने को लेकर जताया था अंदेशा
चिखलदरा/दि.4 – पर्यटन नगर चिखलदरा में पर्यटन संबंधी सेवाओं व सुविधाओं के विकास हेतु वर्ष 2006 में स्थापित किए गए सिडको विकास प्राधिकरण के इंजीनियरों, प्लानर एवं ऑफीस स्टाफ पर अब तक सर्वे, नियोजन, नक्शा बनाना जैसे कामों के लिए करोडों रुपए खर्च हो चुके है. लेकिन आज तक सिडको द्वारा चिखलदरा में कोई एक प्रोजेक्ट भी तैयार नहीं किया जा सका है. जिसके चलते चिखलदरा में आज तक पर्यटकों की संख्या नहीं बढ पाई है. वहीं मुख्यमंत्री के तौर पर जब देवेंद्र फडणवीस पहली बार चिखलदरा आए थे, तो उन्होंने चिखलदरा में पर्यटन व्यवसाय को गतिमान करने हेतु यहां पर स्कायवॉक का निर्माण करने की घोषणा करते हुए काम को शुरु भी करवाया था. लेकिन मुख्यमंत्री तौर पर सीएम फडणवीस का दूसरी बार कार्यकाल शुरु होने के बावजूद उनका स्कायवॉक नामक ड्रीम प्रोजेक्ट अनिश्चितता के भंवर में लटका हुआ है. इससे पहले वन विभाग की अनुमति नहीं मिलने के चलते कई वर्षों तक अधर में लटका हुआ यह प्रोजेक्ट अभी जैसे-तैसे शुरु हुआ था, परंतु अब आईआईटी कानपुर की ओर से सुझावों के साथ मिली रिपोर्ट ने इस प्रकल्प के पूरा होने पर ही सवालिया निशान लगा दिया है.
आईआईटी कानपुर की ओर से मिली रिपोर्ट के मुताबिक 500 मीटर लंबाई वाले इस झुलेनुमा स्कायवॉक के बीचोबीच सुरक्षा के लिहाज से एक स्टे टॉवर लगाया जाना चाहिए. ऐसे में इस रिपोर्ट को देखकर सिडको के अधिकारी काफी हद तक संभ्रम में है. जिसके चलते उन्होंने कोई स्ट्रक्चरल डिजाइन नहीं बनाई और न ही इस बारे में कोई निर्णय ही लिया. क्योंकि अगर नई डिजाइन बनाई जाती है, तो एक बार फिर वन विभाग की अनुमति हासिल करने के लिए चिखलदरा से दिल्ली तक कई साल चक्कर काटने पड सकते है. जिसके चलते इस प्रोजेक्ट को लेकर उत्सुकता व रोमांच भी खत्म हो जाएंगे. इसी दुविधा के चलते सिडको द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया जा रहा. वहीं दूसरी ओर प्रोजेक्ट के ठेकेदार द्वारा लगातार अपना काम जारी रखा गया है. क्योंकि ठेकेदार को भी पता है कि, जितना काम होगा, उतने का बिल तो निकल ही जाएगा, फिर चाहे प्रकल्प शुरु हो अथवा न शुरु हो. इस बात से ठेकेदार का कोई लेना-देना नहीं है. बल्कि उसे केवल अपना काम करके अपना बिल निकालने से मतलब है.
परंतु ऐसी तमाम अंधेरी गलियों से होकर गुजरते इस प्रकल्प की असल सच्चाई बताने हेतु कोई भी तैयार नहीं है. जिसके चलते यहां के स्थानीय बाशिंदो सहित पर्यटन व्यवसायी व पर्यटन प्रेमी इसी उम्मीद में है कि, चिखलदरा में बहुत जल्द स्कायवॉक नामक प्रकल्प शुरु होने जा रहा है. जिसके चलते चिखलदरा में पर्यटकों की अच्छी-खासी चहल-पहल दिखाई देगी.
* भीमकुंड के अलावा कहीं कोई पर्यटन सुविधा नहीं
सिडकों ने विगत 15 वर्षों के दौरान सर्वे, नियोजन, नक्शा, कंसलटंट, इंजीनियर व ऑफीस जैसे मदों पर 50 करोड से अधिक रुपए खर्च कर दिए, परंतु चिखलदरा में सिडको की ओर से कोई एक प्रोजेक्ट भी साकार नहीं हुआ. जिसके चलते पर्यटन नगरी में पर्यटकों की संख्या में कोई इजाफा भी नहीं हुआ. वहीं भीमकुंड पर वन विभाग ने महाज डेढ करोड रुपए खर्च करते हुए साहसिक खेलों की एक्टीवीटी शुरु की. जिसके चलते चिखलदरा की ओर पर्यटकों का रुझान बढा. साथ ही साथ करीब 30 युवा व्यापारियों को भीमकुंड पॉइंट पर रोजगार भी मिला है. ऐसे में अब मुख्यमंत्री सहित जिले के नेताओं को चिखलदरा में स्कायवॉक सहित अन्य पर्यटन सुविधाओं के बारे में सोचने के साथ ही जल्द से जल्द कोई निर्णय भी लेना होगा.
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* करीब 4-5 दिन पहले सिडको से महल्ले नामक एक अधिकारी आए थे, जिन्होंने वन विभाग की पुरानी अनुमति को ही आगे भी जारी रखने के बारे में जानकारी हासिल करने का प्रयास किया, तो हमने उन्हें बताया कि, पहले आप स्ट्रक्चर चेंज वाली डिजाइन को सबमिट करें. साथ ही सिडको के कंसलटंट से प्रस्ताव तैयार कर प्रस्तुत करे. जिसके बाद इस बारे में विचार किया जाएगा.
– अनंता डिगोले
उपवनसंरक्षक, गाविलगड वन्यजीव विभाग.





