भीख मांगता बचपन

शहर के अधिकांश यातायात सिग्नल के पास से गुजरनेवाले वाहनों के आगे हाथ फैलाकर भीख मांगनेवाले नौनिहालों का मिलना कोई नई बात नहीं है. हर शहर में या तहसील क्षेत्रों के प्रमुख चौराहों पर इस तरह के दृश्य देखे जा सकते है. यह नौनिहालों की आर्थिक मजबूरी है या फिर कोई उन्हें जबरन भीख मांगने के लिए प्रेरित कर रहा है. इस बात पर विगत कई वर्षो से चिंतन जारी है. हाल ही में अमरावती के राजकमल चौक पर गश्त लगा रहे पुलिस कर्मियों को घुमंतु समुदाय के बालक वाहन रोककर भीख मांगते हुए दिखाई दिए. पुलिस ने इस मामले में खोजबीन की तो पाया गया कि दिवानखेडा निवासी एक ३५ वर्षीय युवक बच्चों को डरा धमका कर उन्हे भीख लेने के लिए मजबूर कर रहा था. पुलिस ने उस व्यक्ति को हिरासत में ले लिया है. स्पष्ट है कि आज भी ऐसे अनेक तत्व मौजूद है जो नौनिहालों को भीख मांगने के लिए मजबूर करते है. हाल ही में कुछ शहरों में ऐसे मामले सामने भी आए. जिसके चलते अनेक शहरों के लोगों ने निर्णय लिया है कि वे बच्चों को नगद राशि की भीख न देकर उन्हें खाने की वस्तु देंगे. इससे बालको को जबरन भीख मांगने के लिए मजबूर करनेवालों का हौसला टूटेगा. अमरावती में भी इस घटना के बाद लोगों ने सबक लेना चाहिए कि वे भी नौनिहालों को नगद भीख न देकर कुछ खाने की वस्तुएं दे. वैसे भी शहर में इन दिनों नन्हें बालको की भीख मांगती हुई भीड कई जगह नजर आने लगी है. उस पर नियंत्रण करने के लिए सबसे सीधा उपाय यह है कि बालको को नगद भीख न दी जाए. प्रशासन को भी चाहिए कि वे ऐसे बालकों पर निगरानी रखे. कहीं यह बालक अपहरण किए हुए बालक तो नहीं है. यदि प्रशासन की ओर से इस बार में ध्यान दिया जाता है कि सडकों पर आधे, अधूरे वस्त्र पहनकर भीख मांगते नन्हें बालको की भीड रोकी जा सकती है.
कुल मिलाकर बालको का जो शोषण हो रहा है उसे रोकने के लिए कडे कदम उठाए जाना जरूरी है. भले ही बालको के सगे माता पिता उन्हेें भीख मांगने के लिए बाध्य करते है तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए.





