एड. गोेपाल यादव के खेत में मिले डायनासोर के अंडे और उल्कापिंड केे अवशेष
तीन दिनों से यह अवशेष सौंपने जिला खनिकर्म कार्यालय के काट रहे चक्कर

* महिला अधिकारी के पास इन्हें देखने का समय नहीं
* जिला खनिकर्म के पास इन्हें देखने का भी समय नहीं
अमरावती/दि.11 – शहर के समीप भानखेडा स्थित मालेगांव में एक खेत में डायनासोर के अंडे और उल्कापिंडों के अवशेष मिलने का दावा किया गया है. एड. गोपाल यादव अपने खेत में मिले इन अंडों और अल्कापिंडों के अवशेष को सौंपने के लिए विगत तीन दिनों से जिला खनिकर्म अधिकारी प्रणिता चापले के कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनके पास इसे जांच के लिए स्वीकारने की बात तो छोडिए इन्हें देखने का भी समय नहीं है.
उल्लेखनीय है कि एड. गोपाल यादव का शहर के समीपस्थ भानखेडा बु. के मालेगांव में खेत है. इस खेत में विगत वर्ष जेसीबी की सहायता से नाले की गहराईकरण का कार्य किया गया था. इस दौरान उन्हें 3 से 4 जीवाश्म अंडे मिले जो डाइनासोर के अंडोें की तरह दिखते हैं. इसके साथ ही उन्हें यहां से उल्का पिंड के अवशेष जैसा पत्थर भी मिला. एड. गोपाल यादव ने बताया कि एक वर्ष पहले जब उन्हें अंडे और अल्कापिंड का अवशेष मिला था तो उसकी रूचि इसमें बढी और उन्होंने सोचा कि संभवत: और भी उल्का पिंड के अवशेष उन्हें मिल सकते हैं. इसके चलते उन्होंने नाले के किनारे जहां ये अवशेष मिल थे वहां की बारीकी से छानबीन शुरू की इस दौरान उन्हें 3-4 प्रकार के उल्कापिंड के अवशेष मिले.
एड. गोपाल यादव ने कहा कि उन्हें इन पत्थरों के विशेष होने का अंदाजा पहले दिन से ही हो गया था. लेकिन इसकी जांच के लिए उसके पास कोई जरिया नहीं था. ऐसे में उन्होंने उल्कापिंड के अवशेषों संबंधी जानकारी इंटरनेट और इसके जानकारों से हासिल की. उन्होंने बताया कि उल्कापिंड की पहचान करने के लिए कई मानक हैं जिसमें चुंबकत्व ओैर घनत्व शामिल है. इस परीक्षण में यह पत्थर सही साबित हुए हैं. हालांकि इसकी पुष्टि कोई विशेषज्ञ ही कर सकता है इसलिए वे इसे जिला खनिकर्म अधिकारी को सौंपना चाहते है ताकि इन पत्थरों और अंडे की असलियत सामने आ सके.
एड. गोपाल यादव ने बताया कि उनके खेत में 3-4 तरीके के उल्कापिंड के अवशेष मिले हैं. उन्होंने कहा कि अपने स्तर पर इसकी जांच करने पर इनमें एक आइरन उल्कापिंड है. एक मंगल ग्रह का उल्कापिंड है. एक संभावित लोहे का उल्कापिंड है. वहीं एक लौह निकल उल्कापिंड है. इसके साथ उन्हें जीवाश्म अंडे भी मिले हैं जो देखने में डायनासौर के अंडे की तरह दिखते हैं.
* क्या है उत्कापिंड होने की निशानी
– एड. गोपाल यादव ने बताया कि असली उल्कापिंड आमतौर पर चुंबक से आकर्षित होते है और सामान्य पृथ्वी की चट्टानों से अधिक घने होते हैं. उल्कापिंडों में आमतौर पर कोई बुलबुले या छेद नहीं होते हैं, लेकिन उनमें अक्सर छोटे, चमकदार धातु के टुकडे और कभी- कभी एक पतली, काली संलयन परत होती हैं.
– उन्होंने कहा कि अधिकांश उल्कापिंड लोहे और निकल के कारण चुंबकीय होते हैं. यदि नमूना किसी चुंबक से चिपकता है, तो यह एक संभावित उल्कापिंड हैं.
– इसी प्रकार उल्कापिंड आम पृथ्वी की चट्टानों की तुलना में बहुत अधिक घने होते है. इसे महसूस करके जांचा जा सकता हैं, कि अल्कापिंड सामने आकर की सामान्य चट्टान से भरी लगता हैं.
– वहीं चट्टान को काअने या खुरचने के बाद, अंदर चनकदार धातु के टुकडे दिखाई दे सकते है, जो उल्कापिंड का एक सामान्य संकेत है.
– एड. गोपाल यादव ने कहा कि इस साधारण जानकारी के आधार पर इसे उल्कापिंड माना जा सकता है लेकिन इसकी पुख्ता जानकारी तो जियोलॉजिकल विभाग ही देगा.





