किसानों का आंदोलन
अपनी विभिन्न मांगों को लेकर किसानों द्वारा किया जा रहा दिल्ली कूच को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर विगत दो दिनों से तनावपूर्ण स्थिति है. आरंभिक दौर में किसानों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए दिल्ली के चारों ओर की सीमाओं पर कडा बंदोबस्त किया गया है. लेकिन किसानों ने दिल्ली जाने की अपनी जिद कायम रखी. जिसके चलते प्रशासकीय यंत्रणा को किसानों को रोकने के लिए बलप्रयोग करना पड़ा. पहले पानी का वर्षाव किया गया. बाद में आंसू गैस छोड़े गये. अंतत: सरकार को किसानों को दिल्ली मेंं जाने की अनुमति मिल गई.किसानोंं का आंदोलन जिस एकजुटता के साथ हो रहा है. उससे सरकार को कहीं न कहीं नरम होना पड़ रहा है. सरकार का आरोप है कि विपक्षी पार्टियां इस आंदोलन को और हवा दे रही है. लेकिन यहां इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसानों ने अपनी एकजूटता दिखाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है. आज तक चाहे जो भी सरकार हो किसानों की पीड़ा समझे बिना उनके बारे में निर्णय लेती है. इसमें किसानों को अपना अहित नजर आ रहा है. निश्चित रूप से किसानों का विश्वास अब यंत्रणा पर नहीं है. भूमिपुत्र जमीन को ऊपजाऊ बनाकर जिस तरह फसलें उत्पादित करता है उसी तरह उसकी देखभाल करता है. यह सारी प्रक्रिया करते समय उसे भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. बावजूद इसके यदि उसे योग्य समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता है. किसानों द्वारा हरदम यह मांग की जाती रही है कि उन्हें सहायता से अधिक योग्य समर्थन मूल्य दिया जाए. लेकिन आपदा की स्थिति में सरकार की ओर से उन्हें सहायता दी जाती है. जो कि ऊंट के मुंह में जीरा साबित होती है. यदि सरकार की ओर से किसानों को उनके उत्पादित फसलों का योग्य समर्थन मूल्य दे तो उन्हेें किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं. इस बारे में विधानसभा में अनेक बार नेतागण यह बात रख चुके है. लेकिन समर्थन मूल्य मिलना तो दूर उन्हें लागत के अनुसार कीमत भी नहीं मिल पाती है.
किसानों का रोष स्वाभाविक है. हालाकि यह कहा जा रहा है कि सरकार द्वारा पारित बिल के विरोध में विपक्ष किसानों को उकसा रहा है. लेकिन यहां यह भी चिंतनीय है कि विपक्ष जब सदन में ही अपनी बात नहीं मनवा पाता है तो वह सत्तादल के विरोध में कहां तक सफलता हासिल कर सकता है. इस हालत में जरूरी है कि किसानों को योग्य मूल्य देने के लिए सरकार पहल करे.
किसान इतने भी कमजोर नहीं कि वे किसी बहकावे में आकर अपन आंदोलन की दिशा बदल दे. लेकिन किसानों का मानना है कि वे किसी के बहकावे में आकर यह काम नहीं कर रहे है. किसानों ने अब तक अनेक पीड़ाए बर्दाश्त की है. जो राजनीतिक दल विपक्ष में रहता है उसे बात करने का अवसर नहीं मिल पाता. मुख्य बात तो यह है कि विपक्ष की संख्या सदन में अत्यंत कम है, ऐसी हालत में जब वे बिल का विरोध नहीं कर सकते तो किसानों को बरगलाना उनके लिए संभव नहीं है. किसान उनकी समस्याओं के बारे में अब सड़क पर आ गये है. बेशक सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयक किसानों के लिए हितकारी है. लेकिन इसे सामान्य किसान को कोई जानकारी नहीं है.यदि उन्हें जानकारी होती तो वे इस तरह का कदम नहीं उठाते है. यह सरकार का दायित्व था कि वह अपने बिल से सभी को अवगत कराती है. भले ही इसके लिए सार्वजनिक तौर पर कुछ सभाओं का भी आयोजन किया जा रहा है. यदि सरकार की ओर से इस बिल को लेकर सार्वजनिक चर्चा की जाती तो किसान अपने हित की बात कहता. बहरहाल केन्द्र सरकार ने किसानों को ३ दिसंबर को चर्चा करने का आश्वासन दिया है. लेकिन तब तक किसान क्या करेंगे यह स्पष्ट नहीं हो पाया है. हालाकि इस आंदोलन से अनेक किसानों के मन में आत्मविश्वास जगा है. अब वे अपनी मांगे पूरी करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.
किसानों के हिस्से में आरंभ से ही मजबूरियां आती रही है. कभी बेमौसम बरसात तो कभी सूखा स्थिति निर्माण होने पर उसे लगातार नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में अनेक किसानों की हालत दयनीय हो गई है. इसलिए अनेक किसानों ने अब तक आत्मघाती कदम उठाकर आत्महत्या की है. यह किसानों की शोंकातिका है कि अब तक किसानों की समस्याओं को नहीं समझा जा रहा है. इसलिए जरूरी है कि स्वयं सरकार किसानों की बातों को सुने, उनकी समस्या पर चिंतन करेे साथ ही योग्य हल निकाले जिससे किसानों को राहत मिल सके. खासकर किसानों का तीन विधेयक को लेकर विरोध है. किसानों को इस बात से अवगत कराना होगा कि सरकार की ओर से लाए गये विधेयक किसानों के लिए कितने हितकारी है. इसके लिए यथाशीघ्र चर्चा कर योग्य निर्णय लिया जाना चाहिए. बहरहाल किसान अपनी मांगों को लेकर अडे हुए है. तीन बिलों का विरोध किया जा रहा है. सरकार स्वयं चर्चा करने के लिए तैयार है. लेकिन उसका समय ३ दिसंबर दिया गया है. ऐसे में किसान तत्काल चर्चा की मांग कर रहे है. सरकार को भी चाहिए कि अन्नदाताओं के सड़क पर उतरने की मजबूरी को समझे व उनसे योग्य चर्चा कर समाधान की खोज करे तभी किसानों को सही राहत मिल सकती है अन्यथा किसानों का आंदोलन इसी तरह तीव्र बना रह सकता है.बहरहाल यह जरूरी है कि किसानों की पीड़ा को समझा जाए. सरकार इस बारे में सार्थक पहल करें.