संपादकीय

होली पर्व में सावधानी आवश्यक

वर्तमान में कोविड-19 का संक्रमण तीव्र स्वरूप में लगभग पूरे देश में जारी है. विशेषकर महाराष्ट्र में यह बीमारी चरम पर है. रोजाना 25 हजार से अधिक संक्रमित पाए जा रहे है. बीमारी रोकने के लिए तथा स संक्रमण पर प्रतिबंध की द़ृष्टि से अनेक सावधानियां बरतने क निर्देश स्वास्थ्य विभाग की ओर से दिए जा रहे है. ऐसे में आगामी चार दिनों बाद होली का पर्व मनाया जायेगा. इस पर्व में संक्रमण का खतरा अधिक रहता है. इस हालत में सावधानी अति आवश्यक हो गई है. केन्द्र सरकार ने भी इस बारे में राज्य सरकारों को निर्देश दिए तथा होली को लेकर विशेष सावधानियां बरतने की बात कहीं है. आवश्यकता पडने पर अनेक निर्बंध भी लगााने को कहा है. कोरोना का संक्रमण जब सामान्य रूप में आरंभ हुआ था तो गत वर्ष मार्च माह में होली का पर्व रहने के बावजूद प्रधानमंत्री ने यह पर्व नहीं मनाया. इस वर्ष भी कोरोना का संक्रमण अत्यंत तीव्र गति से जारी है. जिसके चलते होली के पर्व के नाम पर हुडदंग न हो इसलिए अनेक दिशा निर्देश जारी किए गये है. हालांकि बीते एक वर्ष से लॉकडाउन तो कभी प्रशासनिक निर्बंध झेल रहे आम आदमी की मनोदशा अब ऐसी नहीं है कि वह कोई पर्व मना सके. क्योंकि बीते वर्ष में कोरोना संक्रमण व उससे बचाव के लिए जारी उपाय योजनाओं में पीसकर सामान्य व्यक्ति पूरी तरह टूट चुका है. ऐसे में वह पर्व मनाने की मनोदशा में है भी नहीं. लेकिन कुछ लोग इन छोटे बडे पर्व मेंं दिमाग का बोझ झटककर कुछ क्षण हंसी खुशी, हुडदंग में बिताकर मन को स्वयं को राहत देने का प्रयास करते है. ऐसे लोगों के लिए ही निर्बंध आवश्यक है.
होली के अवसर पर पर्यावरण की भारी क्षति होती है. होलिका दहन में अनेक पेड़ काटकर जला दिए जाते है. वर्तमान में कोरोना का संक्रमण श्वास से संबंधित बीमारी के रूप में स्थापित है. ऐसे में यदि पर्यावरण का नुकसान होता है तो संक्रमितों को श्वास लेने में कठिनाई होगी. सामान्य व्यक्ति भी इस जटिलता से नहीं बच पायेगा. इसलिए कम से कम पर्यावरण को नुकसान न हो इस बात का शहरी ग्रामीण क्षेत्र की होलियों में ध्यान रखना आवश्यक हो गया है. होलिका दहन के दूसरे दिन रंगोत्सव मनाया जाता है. इस उत्सव में भी प्राकृतिक संपदा को क्षति पहुंचती है. अनावश्यक रूप से पानी की बरबादी होती है. कुछ वर्ष पूर्व तथाकथित संत द्वारा हजारों लीटर पानी बरबाद कर होली का पर्व मनाया गया था. उस समय इस घटना को लेकर काफी तीव्र प्रतिक्रियाए व्यक्त की गई थी. जिसके चलते अन्य शहरों में संबंधित संत द्वारा पानी की बरबादी कर होली का पर्व नहीं मनाया गया. स्पष्ट है सामान्य स्थितियों में भी होली का पर्व मनाते समय अनेक बातों का ध्यान रखना जरूरी रहता है. वर्तमान में तो संक्रमण का खतरा अत्याधिक बढ गया है. इस हालत में हर किसी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि पर्व के नाम पर एक दूसरे का रंग लगाने का कार्य नहीं होना चाहिए. क्योंकि इससे त्वचा को भी नुकसान हो सकता है.
होली पर्व में विशेषकर नौनिहालों द्वारा विशेष उत्साह का प्रदर्शन र किया जाता है. बीमारी का यह दौर नौनिहालों पर भारी पड सकता है. इसलिए पालको को भी विशेष रूप से सचेत रहना होगा. बेशक प्रशासन की ओर से अनेक प्रतिबंध लगाए जा रहे है. लेकिन हम सब की भी जिम्मेदारी है कि पर्व के उत्साह में बीमारी को न्यौता न दिया जाए. इसके लिए हम सबको विशेष सावधानी बरतना होगा. प्रशासन को भी चाहिए कि सरकार द्वारा जारी निर्देशों का योग्य अमल करे ताकि बीमारी के संक्रमण को बढने से रोका जा सके. वर्तमान में कोरोना का संक्रमण किस तरह बढता जा रहा है. उसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास आवश्यक हैे. पर्व के अवसर पर कुछ लापरवाहियां अवश्य बरती जाती है और यही लापरवाही भविष्य के लिए घातक सबित होती है. इसलिए नागरिको को मैं जिम्मेदार के सिध्दांत को अपनाते हुए बीमारी के संक्रमण को बढने से रोकना आवश्यक है. यदि यहां पर ढिलाई बरती जाती है तो भविष्य में गलत परिणाम सामने आ सकते है. अत: नागरिको को अपनी जिम्मेदारी समझकर होली के इस पर्व में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए एवं प्रशाासन को भी कडे निर्देशों का पालन करना जरूरी है.

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