संपादकीय

कुपोषण निधि की वापसी

आदिवासी कल्याण विभाग तथा जिला परिषद प्रशासन की लापरवाही के कारण आदिवासी बहुल क्षेत्र मेलघाट में कुपोषितों के हित में जारी की गई निधि समय पर उपयोग में न लायी जाने के कारण वापस सरकार के पास चली गई है. मेलघाट में कुपोषण के उन्मूलन के लिए विगत 30 वर्षो से प्रयास जारी है. जिले को कुपोषणमुक्त बनाए जाने का अभियान भी चलाया जा रहा है. लेकिन अब तक अभियान के संतोषजनक परिणाम सामने नहीं आ पाए है. निश्चित रूप से शासकीय यंत्रणा की कमजोरी के कारण यह सब हो रहा है. 20 वर्ष का एक लंबा अंतराल बीतने के बाद भी कुपोषण की स्थिति जस की तस है.केवल कुपोषण ही नहीं अन्य मामलों में भी मेलघाट का अनुशेष कायम है.
सरकारी योजनाओं की विफलता के लिए जिला परिषद प्रशासन व आदिवासी प्रकल्प विभाग की लापरवाही को भी जिम्मेदार माना जा रहा है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में आदिवासी बहुल क्षेत्र के लिए भेजी गई कुल राशि में से 83 करोड़ रूपये का उपयोग करने में जिला प्रशासन नाकाम रहा. परिणामस्वरूप यह निधि राज्य सरकार को वापस चली गई. जाहीर है सरकारी यंत्रणा अपने दायित्व का योग्य निर्वहन नहीं कर सका है. मेलघाट में आदिवासियों में कुपोषण के प्रति जनजागृति के लिए सरकार की ओर से शिक्षा अभियान जारी किया गया है. लेकिन इसमें भी लापरवाही के कारण आदिवासियों को योग्य शिक्षा नहीं मिल पा रही है. जिसके कारण आज भी आदिवासी अंधश्रध्दा के शिकार है. बीते दिनों दो बालको पर भूमका (तांत्रिक) द्वारा ईलाज कराए जाने के मामले सामने आए. जिसमें पाया गया कि ईलाज के नाम पर बालको को यातनाए दी गई. उन्हें गंभीर रूप से जख्मी किया गया. लोहे की सलाखों से चटके दिए गये. इस उपचार के दौरान एक बालक की मृत्यु भी हो गई.
मेलघाट में कुपोषण दूर करने के लिए सरकार की ओर से कई कदम उठाए जा रहे है. लेकिन पाया जा रहा है कि सरकारी यंत्रणा मेलघाट के कुपोषण को नष्ट कर पाने में विफल रही है. सरकार की ओर से जब आदिवासियों के लिए पर्याप्त धनराशि दी जाती है तो उसका सही विनियोजन होना आवश्यक है. लेकिन पाया जाता है कि इस दिशा में सरकारी तंत्र की ओर से कोई उत्साहपूर्वक कार्य नहीं होता है. आमतौर पर अनेक विकास कार्य केवल इस बात के लिए प्रलंबित रहते है कि सरकार की ओर से पर्याप्त निधि नहीं मिल पा रही है. इसके विपरित मेलघाट में सभी विभागों को पर्याप्त निधि मिलने के बाद भी निधि का उपयोग नहीं हो पा रहा है. इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए. यदि सरकारी तंत्र एवं जिला प्रशासन की ओर से निधि मिलने के साथ ही सार्थक प्रयत्न आरंभ कर दिए जाते तो निधि वापस लौटने की नौबत नहीं आती.
सरकार को चाहिए कि जब वह निधि का आवंटन करती है. तब से ही अधिकारियों को निधि के उपयोग का निर्देश देना चाहिए साथ ही हर तीसरे महिने निधि के विषय में व्यापक चर्चा कर उसकी समीक्षा की जानी चाहिए. यदि यह सब कार्य होता है तो निधि की वापसी की नौबत नहीं आयेगी. इसके लिए सभी अधिकारियो को, जिला प्रशासन को तत्काल कदम उठाना आवश्यक है. निधि रहने के बाद भी विकास कार्यो का न होना यह चिंतनीय है. जरूरी है कि प्रशासन निधि वापसी की समस्या पर चिंतन करे व योग्य हल निकाले. आज भी मेलघाट में औसत 260 बालक कुपोषण के कारण मृत्यु के शिकार होते है. उसी तरह महिलाएं भी गर्भावस्था के दौरान बीमारी का शिकार हो जाती है. आदिवासी परिवारों के पास जीवनयापन के बेहतर संसाधन उपलब्ध न रहने से उनका खान-पान हल्के स्तर का रहता है. यही वजह से कुपोषण की समस्या कायम रहती है.
आदिवासियों में कुपोषण के लिए वहां रोजगार का न होना भी कारण है. क्योंकि हर वर्ष बड़ी संख्या में आदिवासी रोजगार के लिए विभिन्न प्रांतों में पलायन करते है.जिसके कारण उन्हें रोजगार तो मिलता है. लेकिन पर्याप्त मजदूरी न मिलने के कारण उन्हें अभावग्रस्त जीवन जीना पड़ता है. परिणामस्वरूप बालको में कुपोषण की स्थिति फिर से निर्माण हो जाती है. यही हाल महिलाओं का भी रहता है. सरकार की ओर से पर्याप्त निधि मिलने के बाद भी कुपोषण की समस्या का कायम रहना अपने आप में शोकांतिका है. कुल मिलाकर मेलघाट में कुपोषण हटाने के लिए सरकारी स्तर पर किए जानेवाले प्रयासों में कमी नहीं है. सरकार अपने स्तर पर भरपूर निधि का आवंटन आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए कर रही है. लेकिन उसका योग्य विनियोजन होना भी आवश्यक है. यदि सही तरीके से राशि का उपयोग किया जाए तो निश्चित रूप से कुपोषण की समस्या का हल निकाला जा सकता है. इसके लिए मेलघाट में कार्यरत सरकारी यंत्रणा को विशेष ध्यान देना जरूरी है.

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