वन जमीन पर अतिक्रमण, पुनर्वास के नाम पर भूमि हडपीं
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को लगाई फटकार

अमरावती/दि.6 -सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसंबर 2025 को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए झुग्गी पुनर्वास के नाम पर महापालिका, नगर परिषद या नगर पंचायत की सीमा के भीतर वन भूमि के अतिक्रमण को लेकर सरकार के कान खडे कर दिए हैं. इसके तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत शर्मा से वन भूमि पर झुग्गी बस्तियों के अतिक्रमण को लेकर दोषी जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है.
सेवानिवृत्त वन अधिकारी हेमंत छाजेड की शिकायत के अनुसार, राज्य में वन एवं वन भूमि पर अवैध कच्ची बस्ती विकास कार्यक्रम के अंतर्गत अनुमति प्रदान करते समय, सर्वोच्च न्यायालय, केंद्रीय अधिकारिता समिति एवं केंद्र सरकार की स्वीकृति लिए बिना, भूमि को परस्पर सहमति से निर्धारित उद्देश्य के अलावा अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग करने की अनुमति देकर, असंवैधानिक तरीके से संगठित अपराध का कृत्य किया है. अतः, यह कहा गया है कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाए और दोषियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई के साथ-साथ बाजार मूल्य पर राशि वसूलने का आदेश जारी किया जाए.
सरकारी निर्णय क्रमांक 7(3) दिनांक 1 अप्रैल 1980 के अनुसार, यह सत्यापित करना अनिवार्य है कि वन भूमि किस उद्देश्य से और कैसे दी गई है. हालांकि, मुख्यमंत्री, आयुक्त, मुख्य अधिकारी ने कभी भी उस वन भूमि पर अतिक्रमण की गई झोपड़ियों का सत्यापन और पुनर्वास नहीं किया है. दरअसल, महाराष्ट्र क्षेत्रीय नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 14 के अनुसार, विकास योजना में वन और वन भूमि को हरित क्षेत्र के रूप में दिखाना अनिवार्य है. हालांकि, ऐसी कार्रवाई किए बिना, उस वन भूमि पर अवैध रूप से बनी झोपड़ियों के पुनर्वास की अनुमति देकर संगठित अपराध किया गया है.
* 45वर्षों तक लगातार उपेक्षा
वन मंत्री और वन विभाग ने पिछले 45 वर्षों से इस गंभीर मुद्दे को लगातार नजरअंदाज किया है और सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बिना, झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण को आपसी सहमति से तय किए गए उद्देश्य के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग करने की अनुमति दी है.
यह सरासर संगठित अपराध का मामला है. इसलिए, दोषियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करना अनिवार्य है, लेकिन आज तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
सर्वोच्च न्यायालय ने ज्योति बिल्डर्स के खिलाफ मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं अन्य मामले में 2 दिसंबर, 2025 को पारित अपने आदेश के अनुसार, स्लम पुनर्विकास प्राधिकरण मामले में जबरन भूमि अधिग्रहण के परमादेश को खारिज कर दिया है. अतः इस मामले में दोषी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई है.
-हेमंत छाजेड, सेवानिवृत्त वन अधिकारी,
नासिक




