अमरावतीमनोरंजनमहाराष्ट्र

फिल्म वही सच्ची, जिसे घर के भीतर दिल में स्थान मिले

फिल्म निर्माता साहू का प्रतिपादन

अमरावती/दि.24-फिल्मों का वर्तमान दौर एक्शन, थ्रीलर तथा पश्चिमात्य संस्कृति से ओतप्रोत भरा है. जहां एक्शन- थ्रीलर – धूमधडाम म्यूजिक हो, वहां सांस्कृतिक गीत- संगीत की उम्मीद करना बेइमानी है. संस्कृति से जतनभरी फिल्मों से इतर कम्प्यूटर के इस दौर में मिक्स मिर्च-मसालों से भरी थ्रीलर, एक्शन फिल्म बनाना बेहद आसान है. लेकिन फिल्म वही सच्ची तथा सार्थक मानी जाएगी, जिसे घर के भीतर प्रवेश तथा दिल में स्थान मिले. उक्ताशय का प्रतिपादन मेरी मां कर्मा के निर्माता डी. एन. साहू ने व्यक्त किए. वे शहर के छत्रसालगंज (मसानगंज) परिसर में मौजूद साहू मंगल कार्यालय में समाजबंधुओं से मुखातिब अवसर पर बोल रहे थे.

बकौल साहू, आज के दौर की फिल्मों की बडे पर्दे पर जगह मिल जाती है. लेकिन इन फिल्मों को परिवार के साथ देखना बेहद मुश्किल है. समय के साथ एक बार फिल्म पर्दे से हट गई तो फिर उसे घर के भीतर परिवार के साथ देखना नामुमकीन है. फिल्में ऐसी हो जिसे घर के भीतर प्रवेश की इजाजत मिले तथा उस फिल्म को परिवार के साथ हम बार- बार देखने के लिए लालायित रहे.

पेशे से किसान तथा मूलरूप से छत्तीसगढ के बडोदागंज की निर्माता- निर्देशन में यह दूसरी फिल्म है. उनका कहना रहा कि, आज के दौर में हर कोई एक्शन-थ्रीलर भरी फिल्में बना रहा हैं. बावजूद इसके उन्होंने धार्मिक फिल्म की ओर रूख किया. इसके पीछे की वजह बताते हुए डी.एन. साहू का कहना रहा कि, हर व्यक्ति को उसकी संस्कृति से प्रेम तथा समाज पर गर्व होना चाहिए. फिलवक्त फिल्म इंडस्ट्रीज जमें जो फिल्मों का निर्माण हो रहा, वह पूरी तरह से धर्म, संस्कृति , समाज र आघात है. हमें अपने बच्चों को हमारे धर्म तथा संस्कृति से अवगत कराना होगा. इस समय उन्होंने फिल्म के निर्माण तथा उन्हें इसके निर्मिती में कैसे प्रेरणा मिली. इस पर प्रकाश डाला. उन्होंने समाज बंधुओं से अधिक से अधिक इस फिल्मको देखने का अनुरोध किया. उन्होंने यहां स्पष्ट किया कि, उनका अनुरोध व्यवसायिक नहीं अपितु हमारे धर्म, समाज, संस्कृति से परिचय कराना है.

दो पन्नों से मिली प्रेरणा:
मेरी मां कर्मा इस फिल्म की प्रेरणा उन्हें मातारानी कर्मामाई के जीवन पर प्रकाशित मात्र दो पन्नों के एक पॉम्पेट्स (पुस्तक) से मिली. उनका सोचना तथा कहना रहा कि, क्या हमारी कुलमाता, साहू बंधुओं की जगत जननी का परिचय मात्र दो पन्नों में सिमट कर रह गया. क्यों न समाज बंधुओं को फिल्म के माध्यम से माता कर्मामाई की जानकारी दी जाए. फिल्म पूरी तरह से ग्रंथों पर आधारित है. इस फिल्म में किसी भी तथ्यो से छेडछाड नहीं करने की बात उन्होंने कही.

ले चलहूं अपन दुआरी – मेरी मां कर्मा इस फिल्म से पूर्व डी.एन. साहू ने फिल्म ले चलहू अपन दुआरी नामक फिल्म का निर्माण किया. छत्तीसगढ-झारखंड में कहे जानेवाले ले चलहूंअपन दुआरी का शुध्द हिंदी में सरल-सपाअ अर्थ ले चलूं अपने द्बार है. यह फिल्म पूरी तरह से संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्था से सरोकार रखती है. सेना का सिपाही जब अपने समाज से इतर इन्टरकास्ट विवाह करता है तो उसे कैसी बाधाओं से गुजरना पडता है. सैनिक अपनी पत्नी को समाज की देहलीज पर पूरे अधिार के साथ घर में प्रवेश करना चाहता है. फिल्म में दो गांवों में इतनी दूरिया निर्माण हुई, जिसे एक बच्चे ने दूर किया. सत्कार समारोह अवसर पर छत्रसाल शिक्षा संस्था के अध्यक्ष अनिल साहू, बालाजी मंदिर संस्था के विश्वस्त अजय साहू, सुनील देहले, मिलन बानपुरे, सुरेश गुमान साहू, मंटूलाल साहू, सत्यप्रकाश गुप्ता, कामेश साहू, श्रीमती कुसुम साहू, सोनल गुप्ता, पंकज गुप्ता, ताराबाई गुप्ता, शिमला साहू, महेश टोले, महेश साहू, अशोक साहू, एड. तुलसीराम गुप्ता, मुकेश गुप्ता, कैलाश चावलवाले, रमेश गुप्ता, प्रणय साहू, सुनील साहू, इंजीनियर, रवि पंचमलाल साहू, डी. के. साहु, दीपक गुप्ता आदि प्रमुखता से उपस्थित थे. मान्यवरों के हाथों डी.के. साहू तथा यू. के. साहू का शॉल श्रीफल तथा पुष्पगुच्छ देकर सत्कार किया गया.

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