नई दिल्ली/दि.२९ – कोरोना महामारी के चलते घोषित किए गए लॉकडाउन की वजह से सिनेमाघरों पर ताले लगे हुए है. जिसके चलते फिल्म मेकर अपनी छोटी और बडी बजटवाली फिल्मों को हॉटस्टार जैसे अन्य पोर्टल पर रिलीज कर रहे है. शुक्रवार को हॉटस्टार टीवी पोर्टल पर महेश भट्ट की फिल्म सडक-२ को रिलीज किया गया.
यह फिल्म वर्ष १९९१ में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई सडक़ की स्कीवेल है. लेकिन सडक-२ फिल्म दर्शकों को रास नहीं आयी है और दर्शकों ने फिल्म को सीरे से नकार दिया है. फिल्म की पटकथा पर नजर डालें तो जहां वर्ष १९९१ में महेश भट्ट की फिल्म सडक रिलीज हुई थी. जिसमें रवि ( संजय दत्त) और पूजा ( पूजा भट्ट) की प्रेम कहानी सभी ने देखी. अब २९ साल बाद सडक २ रिलीज हुई है. फिल्म में रवि का किरदार अभी भी वैसा ही रखा गया है, बस आर्या ( आलिया), विशाल ( आदित्य रॉय कपूर) जैसे कुछ और किरदार जोड दिए गए हैं. इस बार फिल्म में अंधभक्ति या कह लीजिए अंधविश्वास पर जोर दिया गया है. पूरी कहानी इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है. ज्ञान प्रकाश ( मकरंद देशपांडे) एक बाबा है जो लोगों को ये बताता है कि वो भगवान से बात कर सकता है. अब आर्या के मन में भी यही डाला गया है कि उसकी मां की मौत भगवान चाह रहे थे. वो कैंसर से पीड़ति थी. लेकिन मॉर्डन जमाने की आर्या ये मानने को तैयार नहीं कि उसकी मां ऐसे ही उसे अलविदा कह चली गई. उसे अहसास हो जाता है कि उसकी मां की मौत इस बाबा की वजह से हुई है.
कहानी में रवि द टैक्सी ड्राइवर की एंट्री भी तब होती है जब आर्या को कैलाश मानसरोवर जाना होता है. आर्या के साथ उसका बॉयफ्रेंड विशाल भी साथ चलता है. दोनों आर्या और विशाल को विश्वास है कि अगर हर कोई एकजुट हो जाए तो इन फेक बाबाओं का धंधा बंद किया जा सकता है. इसी उम्मीद के साथ वो दोनों रवि संग इस यात्रा पर निकल जाते हैं. बीच-बीच में रवि की पूजा संग प्रेम कहानी को भी दिखाया जाता है. वहीं २९ साल पुराने लम्हों को ताजा करने की कोशिश की जाती है. इस यात्रा के दौरान रवि, आर्या को अपनी बेटी समान प्यार करने लगते हैं. आर्या भी उन्हें ना सिर्फ अपनी जिंदगी में काफी तवज्जो देती है बल्कि कई मौकों पर उनकी सलाह भी मानती है. आर्या ने अपनी पूरी आपबीती रवि को बताई होती है. वो अपने मिशन के साथ रवि को भी जोड लेती है. अब आगे की कहानी बस यही है कि कैसे रवि, आर्या और विशाल संग उस फेक बाबा का राज खोलते हैं. कैसे लोगों को अंधविश्वास से ऊपर उठाया जाता है. महेश भट्ट की ये खासियत हमेशा से रही है कि उनकी फिल्मों में कोई ना कोई इमोशन तो जरूर निखरकर सामने आता है.
लेकिन सडक २ बनाते समय लगता है खुद महेश भट्ट भी कनफ्यूज हो गए कि उन्हें इस फिल्म को किस जॉनर में रखना है. इस सिंपल सी कहानी में उन्होंने सस्पेंस भी डाला है, इमोशन भी डाला है, एक्शन की भी भरमार कर दी है और तो और कई जगहों पर कुछ संदेश देने की भी कोशिश की है. लेकिन अफसोस इतने सारे पहलुओं को एक ही फिल्म में डालना खराब फैसला था. सडक २ की कहानी में बिखराव है. किरदार कई, कहानी में शेड कई लेकिन सब एकदम दिशाहीन. सडक पर आलिया-संजय और आदित्य की गाडी तो चलती रहेगी लेकिन आप कहीं पीछे छूट जाएंगे. महेश भट्ट की इस फिल्म में कलाकारों की भरमार है, लेकिन अगर हम कहे नाम बडे और दर्शन छोटे, तो ये गलत नहीं होगा. सडक २ को देख यहीं समझ आता है कि पिता की फिल्म में बेटी का टैलेंट वेस्ट कर दिया गया है. आलिया पूरी फिल्म में ना सिर्फ कमजोर लगी हैं बल्कि अपने किरदार से भी कोसों दूर नजर आई हैं. आदित्य रॉय कपूर का तो फिल्म में होना ना होना एक समान लगता है. वो सिर्फ फिल्म में गाना गाने के लिए रखे गए हैं.
इस फिल्म में सिर्फ संजय दत्त कुछ हद तक देखने लायक लगे हैं. बाबा के रोल में मकरंद देशपांडे का काम ठीक कहा जाएगा. उन्होंने कुछ हद तक जरूर उस किरदार में ढलने की कोशिश की हैं. सडक २ का दिशाहीन होना, कहानी में बिखराव दिखना और तो और आलिया जैसे टैलेंट का वेस्ट हुआ है. फिल्म का क्लाइमेक्स तो ऐसा रखा गया है कि मानो आप एकता कपूर का कोई सीरियल देख रहे हैं. फिल्म में ड्रामा बहुत है, लेकिन ओवर ड्रामा उससे भी ज्यादा है. यही कहा जा सकता है कि इस दिशाहीन सडक पर अगर आपको ट्रैवल करना है तो अपने रिस्क पर कीजिए.