बाढ व बारिश का जोर कम होने के बाद भी किसानों के सामने तीन साल रहेगा संकट

पानी के तेज बहाव ने बहा ली जमीन की उर्वरकता

* अगले सीजन में दिखाई देगा असली खतरा
मुंबई /दि.29 मराठवाडा सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में हुई अतिवृष्टि के चलते खेत-खलिहानों में बाढ व बारिश का पानी घुसने की वजह से फसले काफी हद तक बर्बाद हुई है. साथ ही पानी की तेज बहाव में फसलों के साथ ही खेत-खलिहानों की उपजाऊ मिट्टी भी बहकर चली गई है. ऐसे में जहां पर कल तक फसले खडी थी, वहां अब पत्थर व रेती का ढेर पडा है. ऐसे में जमीन की उर्वरकता के बह जाने के चलते अब दुबारा खेतों में उपजाऊ मिट्टी तैयार होने में किसानों को तीन साल तक मेहनत करनी पडेगी.

* यह होगा नुकसान?
– जमीन में पोषक तत्व कम हो जाने के चलते उत्पादन क्षमता घटेगी.
– जमीन की जलधारण क्षमता कम होगी और फसलों को पानी भी बेहद कम मिलेगा.
– खेत में रेत का स्तर जमा हो जाने के चलते फसलों की वृद्धि पर विपरित असर होगा.

* क्या है उपाय?
– खेतों में कंपोस्ट खाद व गोबर खाद का प्रयोग कर उर्वरकता तैयार करनी होगी.
– मिट्टी का बचाव करनेवाले मूंग व हरभरा जैसी फसलों का प्रयोग करना होगा.
– मिट्टी की उर्वरकता व गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए फसलों का चयन करने के साथ ही फसलो में बदलाव करने होंगे.

* मिट्टी के बहकर चले जाने तथा गाद जमा हो जानेवाले खेतों में जमीन की उर्वरकता को पूर्ववत करने हेतु अगले कुछ वर्षों तक किसानों को मृदा संवर्धन के काम शुरु करने होंगे.
– डॉ. संजय भोयर
प्राध्यापक, मृदा विज्ञान
डॉ. पं. दे. कृ. वि. अकोला.

* बाढ के चलते खेतों में मिट्टी सहित पोषक अन्नद्रव्यों का बडे पैमाने पर नुकसान हुआ है. खेतों की उर्वरकता चले जाने की वजह से फसलों की उत्पादकता पर दीर्घकालिन परिणाम हो सकता है. ऐसे में सातत्यपूर्ण उपायों की जरुरत है.
– डॉ. हरिहर कौसडीकर
विभाग प्रमुख, मृदा विज्ञान
व. ना. म. कृ. वि., परभणी.

* अब उत्पादन खर्च बढेगा
मृदा विज्ञान अभ्यासकों के मुताबिक अगले तीन से चार सीजन के दौरान कडक हो चुकी जमीन में बुआई कैसे की जाए और फसलों का उत्पादन कैसे लिया जाए, यह समस्या किसानों के सामने रहेगी. मराठवाडा सहित विभिन्न जिलो में इस बार खेतों की उपजाऊ मिट्टी का जमकर नुकसान हुआ है. जिसके चलते सेंद्रीय कर्ब एवं अन्य पोषक घटकों का प्रमाण घटा है. अगले कुछ वर्षों के दौरान इसके गंभीर परिणाम के तौर पर उत्पादन में कमी आएगी. ऐसे में मृदा संधारण व धूप प्रतिबंधक उपायों के लिए किसानों को अतिरिक्त खर्च करना पडेगा. जिससे लागत खर्च में वृद्धि होगी.
3,07,713
चौरस किमी महाराष्ट्र का क्षेत्रफल है. जिसमें खेती-किसानी का प्रमाण सर्वाधिक है.
– 1,05,269
चौरस किमी यानि 34 फीसद क्षेत्र पर मिट्टी की धूप कायम होती है.

 

Back to top button