बाघ के संवर्धन की तरफ नजर, तेंदुए की तरफ अनदेखी

अमरावती/दि.2 – राज्य में वन विभाग द्बारा 12 वर्षों से बाघ संवर्धन पर जोर दिए जाने से तेंदुए की तरफ अनदेखी हुई. इस कारण जंगल के बाहर तेंदुओं की संख्या बढती गई. मनुष्य और तेंदुए के बीच संघर्ष तेज हो गया है. हमला करनेवाले तेंदुओं की अचूक पहचान करने के अलावा उन्हें पकडने की कार्रवाई न करने के निर्देश प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन्यजीव) ने दिए हैं.
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 11 (1) (क) के तहत बाघ और तेंदुए पकडने बाबत प्रधान मुख्य वनसंरक्षक एम. श्रीनिवास रेड्डी ने नए निर्देश जारी किए है. मनुष्य पर अथवा पालतू प्राणियों पर हमला करनेवाले तेंदुए को पकडने के लिए भेजे जानेवाले प्रस्ताव अनेक बार अधूरे हैं. आवश्यक दस्तावेज संलग्नित नहीं रहते. इस कारण ऐसे प्रकरणों में तेंदुओं को पकडने अथवा बेहोश करने की अनुमति देना वन विभाग को संभव होता न रहने की बात उन्होेंने स्पष्ट की हैं.
* तेंदुए ‘अनुसूची-1’ से कैसे निकालोगें
पुणे, अहमदनगर, नाशिक, ठाणे, पालघर, मुंबई, कोल्हापुर, सातारा जिलों में संघर्ष तेज होने की पृष्ठभूमि पर शासन द्बारा तेंदुओं को ‘अनुसूची-1’ से हटाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है. 1972 के वन्यजीव सुरक्षा कानून के मुताबिक बाघ, शेर, चिता, तेंदुआ, हाथी और गेंडे जैसे प्राणियों को ‘अनुसूची-1’ में सर्वोच्च सुरक्षा मिली हैं.
* मुख्य वन्यजीव रक्षक को विश्वास समझाना महत्वपूर्ण?
मनुष्य-बाघ संघर्ष की घटनाओं पर नियंत्रण लाने में वन अधिकारी विफल साबित हो रहे है. ‘अनुसूची-1’ में रहने से उन्हें सर्वोच्च सुरक्षा का दर्जा है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम प्रावधान के मुताबिक मुख्य वन्यजीव रक्षक को संबंधित तेंदुआ मनुष्य के लिए घातक रहने का विश्वास होने के अलावा उसे पकडने के लिए अथवा बेहोश करने की अनुमति नहीं दी जाती.





