चिखलदरा देवी पॉइंट पर ध्वज वंदन के बाद घटस्थापना
पांडवों द्बारा देवी की स्थापना किए जाने की है श्रध्दा

अमरावती /दि.23 – देवी पॉइंट यह चिखलदरा का विख्यात धार्मिक और पर्यटन स्थल है. यहा पहाडों की गुफा में स्थित गर्भगृह में देवी के दर्शन होते है. यह स्थान मेलघाट के आदिवासी बंधुओं के लिए काफी श्रध्दा का माना जाता है. नवरात्रोत्सव के पहले ही दिन मेलघाट के विभिन्न इलाकों से आए सैंकडो आदिवासी बंधू देवी के दर्शन के लिए उपस्थित थे. सोमवार 22 सितंबर को सुबह घटस्थापना के बाद सतपुडा पहाडियों में नवरात्रोत्सव की औपचारीक शुरूआत हुई.
नवरात्रोत्सव के पहले दिन चिखलदरा के देवी पॉइंट पर धार्मिक विधि की शुरूआत हुई. सुबह मंदिर के पूजारी ने उंचे पहाड पर नए ध्वज का वंदन कर उत्सव की शुरूआत की. पश्चात श्री अंबादेवी संस्थान के सचिव देवीदास हाते ने सपत्निक देवी का अभिषेक कर विधिवत घटस्थापना की.
* पांडावो द्बारा देवी की स्थापना किए जाने की श्रध्दा
उंची पहाडियों के बीच स्थित इस देवी की स्थापना पांडवों द्बारा किए जाने की मान्यता है. अज्ञातवास में पांडोवो का रहना सतपुडा पर्वत के विराट राजा के राज्य में हुआ माना जाता है. उस अवधि में जंगल परिसर में अपने आराध्य देवता रहने चाहिए, इस मकसद से पांडवो ने पहाडियों ेके बीच देवी की स्थापना की, ऐसी स्थानीय लोगों की आस्था है. इस पहाडी में देवी की पूजा दो स्वरूप में की जाती है. एक यानी पत्थर रखकर तैयार किए गए रूप और दूसरा यानी मूर्ति के रूप में देवी की पूजा रहती है. नवरात्रोत्सव में यहा आदिवासी समाज का विशेष उत्साह देखने मिलता है.
* देवी पॉइंट से चंद्रभागा नदी का उगम
देवी पॉइंट की पहाडियों के बीच स्थित गुफा के सामने लगातार पानी की बूंदे टपकती रहती है. कुछ स्थानों पर पानी की बडी धार झरने के स्वरूप में गिरती है. यह झरनों का पानी और पहाडियों के बीच से टपकनेवाला पानी ही चंद्रभागा नदी का उगम स्थान है. यह पूरा पानी देवी के सामने स्थित बडे कुंड में जमा होता है. पश्चात सामने गहरी खाई में बहता जाता है. इस पानी का प्रवाह ही चंद्रभागा नदी है. चिखलदरा के नीचे मोझरी, सामने अचलपुर और दर्यापुर से चंद्रभागा नदी बहती है, जो बाद में पूर्णा नदी से मिल जाती है.
* पूर्व सीएम सुधाकर नाईक के कारण हुआ कायाकल्प
पूर्व मुख्यमंत्री सुधारकर नाईक के प्रयासों के कारण चिखलदरा की देवी की आराधना में बडा बदला हुआ है. पहले चिखलदरा के देवी को आदिवासी की देवी के रूप में पहचाना जाता था. मन्नत के रूप में मुर्गी और बकरे की बली देने की प्रथा चालू थी. लेकिन अब यह प्रथा बंद है. इसका श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री सुधाकर नाईक को जाता है. 1984-85 में सुधाकर नाईक ने इस धार्मिक स्थल की जिम्मेदारी अमरावती की श्री अंबादेवी संस्थान को देने का अनुरोध किया. मुख्यमंत्री के इस अनुरोध का सम्मान करते हुए मंदिर संस्थान ने देवी पॉइंट का कामकाज हाथ में लिया.
* नवरात्रोत्सव कैसे मनाया जाता है?
वर्तमान समय में इस स्थल का नवरात्रोत्सव का महोत्सव पूरी तरह बदल गया है. श्री अंबादेवी मंदिर संस्थान के उपाध्यक्ष हेमंत डोंगरे ने बताया कि वर्तमान के नवरात्रोत्सव में हर दिन सुबह और शाम पूजा-आरती होती है और मंदिर परिसर में पूरा दिन भजन होते है. विजयादशमी को उत्सव मूर्ति की भव्य रैली निकाली जाती है. इस कारण देवी की आराधना को एक आधुनिक और सांस्कृतिक रूप मिला है. आदिवासी परंपरा के मुताबिक देवी के द्बार के पास निंबू चढाने की प्रथा है. चिखलदरा में देवी के मंदिर परिसर में जहां नीचे उतरना पडता है वहां प्रवेश द्बारा खडा किया गया है. इस प्रवेश द्बारा के एक तरफ कोरकू जनजाति के आदिवासी बंधू उनकी प्रथा के मुताबिक प्रवेश द्बार की ज्योत जलाकर पूजा करते है.
द्बारकानाथ में बहाते है निबू
इस बार दो-तीन निबू यहा चढाए जाते है. उसी स्थल पर श्रीफल फोडने की भी परंपरा है. देवी के मंदिर में जाने के लिए यह द्बारकानाथ है. द्बारकानाथ की पूजा किए बगैर देवी के दर्शन के लिए सामने जाना संभव नहीं रहता,ऐसा आदिवासी श्रध्दालू कालूराम चतुरकर ने कहा. साथ ही देवी की गुफा के सामने रहे अन्य देवता की पूजा भी श्रीफल और निबू फोडकर करने की प्रथा है. चिखलदरा के देवी के दर्शन को आदिवासी बंधू बडी श्रध्दा से आते है. निबू, दीप, हल्दी, कुमकूम आदि सभी पूजा साहित्य के साथ देवी के दर्शन को आते है. यहा देवी के गर्भगृह के समाने अनेक बार महिलाओं के शरीर में कुछ समय के लिए देवी आती दिखाई देती है. ऐसे समय उस महिला के घर के सदस्य उसकी पूजा करते है.
* मन्नत पूरी करने की प्रथा
देवी के सामने की गई मन्नत पूरी करने की आदिवासी बंधूओं में प्रथा है. मंदिर परिसर में किसी को भी पशू बली देने की अनुमति नहीं है. फिर भी कुछ श्रध्दालू भगवान को बकरी चढाई समझकर एक बकरी मंदिर परिसर में छोडकर चले जाते है. अश्विन माह के नवरात्रोत्सव से चैत्र माह के नवरात्रोत्सव को आदिवासी बंधू अधिक महत्व देते है. चैत्र नवरात्रोत्सव में देवी के मन्नत के मुताबिक बडी संख्या में मुर्गी और बकरे की बली दी जाती है. लेकिन मंदिर परिसर में बली देने पर पाबंदी है. मुख्य रूप से मंदिर के निकट जंगल परिसर में बली देने का सिलसिला रहता है, ऐसा हेमंत डोंगरे ने कहा.
* रोशनाई से जगमगाया मंदिर परिसर
नवरात्रोत्सव निमित्त संपूर्ण मंदिर परिसर, पहाडी, पानी का कुंड और पूरा परिसर रोशनाई से जगमगा उठा है. मंदिर परिसर में दिन में भव्य यात्रा रहती है. यहा हाथी और उंट पर सफारी करने की सुविधा है.
* अष्टमी को भक्तों को साडी का वितरण
नवरात्रोत्सव में देवी को ओटी में बडी संख्या में साडी आती है. यह साडी बाहर बेची नहीं जाती. अष्टमी के दिन देवी के दर्शन को आनेवाले श्रध्दालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है, ऐसा हेमंत डोंगरे ने कहा.
* बाघ के कारण दहशत का वातावरण
मेलघाट में पिछले 6 माह में बाघ के कारण 6 लोगोें की जान गई है. इस कारण परिसर में बाघ की दहशत कायम है. चिखलदरा में भी पिछले 7 दिनों से अनेकों को बाघ दिखाई दिया है. इस कारण नवरात्रोत्सव पर बाघ की दहशत के कारण सतर्कता आवश्यक है. वन विभाग की तरफ से अंधेरा होने पर घर के बाहर निकलते समय सावधानी बरतने की सलाह दी गई है. इस कारण अंबादेवी मंदिर संस्थान की तरफ से भी सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक कदम उठाए गए है, ऐसा हेमंत डोंगरे ने कहा.





