सरकारी दस्तावेज पर डिजिटल हस्ताक्षर का अधिकार निजी व्यक्ति को कैसे?
गैजेट नोटिफिकेशन के अनुसार जिम्मेदारी थी निबंधक के पास

* फर्जी जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र मामले में उठ रहे सवाल
अमरावती/दि.3 – राज्य सरकार के सार्वजनिक स्वास्थ विभाग की अधिसूचना के अनुसार निबंधक द्वारा जन्म-मृत्यु का पंजीयन कर नागरिकों को इससे संबंधित प्रमाणपत्र जारी किए जाने के स्पष्ट निर्देश है. परंतु अमरावती मनपा के स्वास्थ्य व चिकित्सा अधिकारी ने खुद पर रहनेवाली इस जिम्मेदारी से लगभग अपना पल्ला झाडते हुए एक निजी व्यक्ति को डिजिटल हस्ताक्षर करने का अधिकार बहाल किया. इसकी वजह से ही विगत कुछ माह के दौरान अमरावती महानगर पालिका से जन्म व मृत्यु के फर्जी प्रमाणपत्र जारी हुए, ऐसी जानकारी अब स्पष्ट हो रही है.
उल्लेखनीय है कि, गैजेट नोटिफिकेशन के अनुसार जन्म-मृत्यु पंजीयन के निबंधक मनपा के स्वास्थ व चिकित्सा अधिकारी डॉ. विशाल काले है. आरोपों के मुताबिक उन्होंने अपने अधिनस्थ कर्मचारियों के कंधे पर बंदूक रखते हुए अपनी रोटियां सेकी और डिजिटल हस्ताक्षर के अधिकार ठेका नियुक्त कर्मचारी यानि एक तरह से एक निजी व्यक्ति को बहाल कर दिया. ऐसे में जाली दस्तावेजों के आधार पर जन्म-मृत्यु का पंजीयन कर फर्जी प्रमाणपत्र हासिल करनेवाले लोगों के साथ-साथ इस काम के लिए जिम्मेदार रहनेवाले डॉ. विशाल काले जैसे अधिकारी के खिलाफ भी फौजदारी कार्रवाई होने की जरुरत जताई जा रही है. साथ ही चर्चा यह भी चल रही है कि, अपने उपर मंडराते इस संभावित खतरे को देखते हुए ही डॉ. विशाल काले ने खुद ही सिटी कोतवाली पुलिस थाने पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई. ताकि फिर्यादी के तौर पर वे किसी भी तरह की कार्रवाई से बचे रह सके.
* किसके कंधे पर किसका बोझ
अमरावती महानगर पालिका से जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्रों में दुरुस्ती के नाम पर 1709 फर्जी प्रमाणपत्र जारी हुए है. जिसमें से 505 नागरिकों के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग द्वारा अपराधिक मामले दर्ज किए गए. वहीं स्वास्थ्य विभाग में यदि और भी अधिक जांच-पडताल की जाती है, तो ऐसे फर्जी प्रमाणपत्रों की संख्या हजारों में जाने की पूरी संभावना है. मनपा के जरिए जो प्रमाणपत्र जारी किए गए, वे सभी जन्म-मृत्यु विभाग के कुछ विशिष्ट कनिष्ठ कर्मचारियों द्वारा वरिष्ठों के ‘आशीर्वाद’ से ही जारी हुए है, यह विशेष उल्लेखनीय है.
* ‘विशाल’ आर्थिक व्यवहार
फर्जी जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्रों की आड लेते हुए मनपा के स्वास्थ्य विभाग ने ‘विशाल’ आर्थिक व्यवहार हुए. लेकिन इसके बावजूद उन संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए सर्वसामान्य नागरिकों के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज क्यों किए जा रहे है, यह सवाल भी चर्चा में बना हुआ है. खुद संदेह के घेरे में रहनेवाले स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक ही रात में 504 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने को सीधे तौर पर मामले में शामिल अधिकारियों द्वारा अपनी चमडी बचाने का प्रयास कहा जा सकता है. चूंकि इस मामले में जाली दस्तावेजों के आधार पर फर्जी प्रमाणपत्र जारी करनेवाले जन्म-मृत्यु विभाग के अधिकारी व कर्मचारी भी समान रुप से दोषी है. अत: अब उनके खिलाफ एफआईआर कब दर्ज होती है, यह देखना महत्वपूर्ण साबित होगा.
‘वाइंडर’ भी संदेह के घेरे में
मनपा के जन्म-मृत्यु पंजीयन विभाग में कब्जा जमाए बैठे निजी ‘वाइंडर’ की भूमिका भी फर्जी जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र मामले में संदेहास्पद है. ऐसे ‘वाइंडर’ के जरिए ही पूरी लिंक चला करती थी और प्रमाणपत्रों के काम लाए जाते थे. जिसके बाद तीन खास लोग ‘मुहिम फतह’ किया करते थे. जिसके बाद एक सेवानिवृत्त चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा ‘कलेक्शन’ करते हुए विभाग प्रमुख तक उनका हिस्सा पहुंचाया जाता था. अब ऐसी जानकारी भी सामने आ रही है.
* बाहर से भी प्रमाणपत्र हुए अपलोड
सबसे सनसनीखेज जानकारी यह है कि, 15 अक्तूबर को रात 12 बजे तक मनपा की वेबसाइट पर मनपा के कार्यालय में रखे कम्प्युटर की बजाए बाहर के किसी कम्प्युटर से प्रमाणपत्र अपलोड किए गए. ऐसे में अब इस बात का पता लगाया जाना बेहद जरुरी है कि, आखिर इसके पीछे किस ‘मास्टरमाइंड’ का दिमाग चल रहा था और उसके इशारे पर किस व्यक्ति ने यह पूरी गडबडी की.
सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के गैजेट नोटिफिकेशन की कॉपी.





