टिकट मिला तो ठीक, वर्ना निर्दलीय दावेदारी
इच्छुकों ने स्थानीय निकायों के चुनाव हेतु चुना पर्याय

अमरावती /दि.23 – मनपा के आगामी चुनाव के लिए महायुति व महाविकास आघाडी इन दोनों राजनीतिक गठबंधनों में शामिल घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे का मामला अब तक हल नहीं हुआ है, बल्कि मतदाताओं की पसंद को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट और आर्थिक क्षमता जैसे मानकों के आधार पर ही उम्मीदवारी दिए जाने के स्पष्ट संकेत सभी पार्टियों के नेताओं की ओर से इच्छुक प्रत्याशियों को दिए जा रहे है. जिसके चलते जनाधार में थोडे पीछे रहनेवाले तथा खर्च के लिए अपेक्षित निधि नहीं रहनेवाले इच्छुकों के प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाने की पूरी संभावना है. जिसके चलते पार्टी से उम्मीदवारी मिली तो ठीक अन्यथा किसी भी स्थिति में निर्दलीय के तौर पर चुनाव लडना ही है, ऐसी स्पष्ट भूमिका कई इच्छुकों द्वारा अपनाई गई है. जिन्होंने अपने-अपने प्रभागों में अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत भी कर दी है.
उल्लेखनीय है कि, किसी भी स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों का अपना एक अलग महत्व होता है. क्योंकि निर्दलियों की वजह से सभी पार्टियों के राजनीतिक समीकरण एवं वोटों के गणित गडबडाते है. साथ स्थानीय स्वायत्त निकायों में सत्ता स्थापित करते समय भी राजनीतिक दलों के सदस्यों के बजाए निर्दलीय सदस्यों का स्थान व भूमिका काफी महत्वपूर्ण होते है, ऐसा अब तक कई बार हुई राजनीतिक उठापटक में साबित भी हो चुका है.
* चुनाव के बाद निर्दलियों को मिलता है ‘भाव’
चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा भले ही निर्दलियों को बेहद हलके में लिया जाता है. परंतु जब चुनाव के बाद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता, तब बहुमत के लिए ‘जादुई आंकडे’ को प्राप्त करने हेतु समविचारी दलों के निर्वाचित सदस्यों सहित निर्दलीय सदस्यों को एकजुट करते हुए गठबंधन किया जाता है. इस पद्धति के तहत अब तक कई बार निर्दलीयों ने सत्ता स्थापना में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जिसके चलते चुनाव के बाद निर्दलीय प्रत्याशी काफी महत्वपूर्ण साबित होते है. जिसके चलते उन्हें सभी राजनीतिक दलों द्वारा जमकर ‘भाव’ दिया जाता है.
* सभी दलों को सता रहा ऐन समय पर होनेवाली बगावत का खतरा
इस समय महानगर पालिका के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. जिसके बाद जिला परिषद व पंचायत समितियों के चुनाव भी होंगे. ऐसे में संबंधित निकाय क्षेत्रों से चुनाव लडने के इच्छुक विविध राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने चुनाव लडने हेतु टिकट मिलने के लिए अपनी-अपनी पार्टियों व नेताओं के पास जबरदस्त तरीके से लॉबिंग व फिल्डींग करनी शुरु कर दी है. जिसमें गिने-चुने कार्यकर्ताओं को सफलता मिलनेवाली है. वहीं कई लोगों को असफलता ही मिलती है. ऐसे में पार्टी के साथ एकनिष्ठ रहनेवाले कई कार्यकर्ता ऐन समय पर टिकट के लिए अपना पत्ता कट जाने के चलते पार्टी के खिलाफ बगावत करते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतर जाते है. जिसमें से कई बागी प्रत्याशियों द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्र में वोटों के गणित व राजनीतिक समिकरणों को पूरी तरह से उलट-पुलट कर रख दिया जाता है. साथ ही कई बार वोटों के बंटवारे का फायदा उठाते हुए निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव भी जीत जाते है.
* भाजपा के पास टिकट के दावेदारों की सर्वाधिक भीड
इस समय गल्ली से लेकर दिल्ली तक भाजपा की सत्ता रहने के चलते महानगर पालिका, जिला परिषद व पंचायत समिति के चुनाव हेतु भाजपा के पास टिकट के लिए दावेदारों की सबसे अधिक भीडभाड है. फिलहाल अमरावती महानगर पालिका में चुनाव की धामधूम चल रही है. जहां पर भाजपा द्वारा 87 में से 75 सीटों पर चुनाव लडने की तैयारी की जा रही है और इन 75 सीटों के लिए भाजपा के पास 650 से अधिक इच्छुकों ने आवेदन करने के साथ ही अपने साक्षात्कार भी दिए है. जिसमें से भाजपा द्वारा चुनाव जीत सकने में सक्षम रहनेवाले प्रत्याशियों का चयन करने की माथापच्ची की जा रही है. खास बात यह भी है कि, भाजपा की मनपा चुनाव हेतु शिंदे गुट वाली शिवसेना व युवा स्वाभिमान पार्टी के साथ युति होने की भी चर्चा चल रही है. इसके चलते भाजपा को अपने कोटे की सीटों का सहयोगी दलों के साथ बंटवारा भी करना होगा. जिसके चलते भाजपा में टिकट को लेकर प्रतिस्पर्धा और भी अधिक तेज हो जाएगी.
* कई इच्छुक कर रहे निर्दलीय के तौर चुनाव लडने की तैयारी
महानगर पालिका, जिला परिषद व पंचायत समिति की राजनीति में भाजपा व कांग्रेस सहित राकांपा एवं शिवसेना के दोनों धडे ही प्रमुख राजनीतिक दल है और इन सभी 6 प्रमुख राजनीतिक दलों के पास उम्मीदवारी के लिए इच्छुकों की अच्छी-खासी कतार लगी हुई है. परंतु युति और आघाडी होने की संभावना के चलते कई इच्छुकों की ऐन समय पर टिकट कटने की भी पूरी संभावना है. जिसके चलते पार्टी की उम्मीदवारी पर पूरी तरह से निर्भर रहने की बजाए कई इच्छुकों ने निर्दलीय के तौर पर ही चुनाव लडने का निर्णय ले लिया है और अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अपने स्तर पर चुनाव प्रचार करना भी शुरु कर दिया है. इसके चलते अब राजनीतिक गहमा-गहमी एक अलग मोड पर पहुंचती दिखाई दे रही है.





