‘न होत गुरुची पूजा, गुरुस गंध लावोनिया, गुरुस माळ वाहोनिया’

राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने बताया गुरु पूर्णिमा का महत्व

अमरावती /दि.10– गुरु पूर्णिमा का पर्व यानि आत्मपरिक्षण का पर्व होता है. गुरु द्वारा दिए गए अमूल्य ज्ञानदान की अदायगी और उनके उपकार हम सभी पर सदैव रहे, इस हेतु गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए व्यास पूर्णिमा यानि गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. जिसका महत्व विषद करते हुए राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज कहते है कि,
न होत गुरुजी पुजा, गुरुस गंध लावोनिया।
न होत गुरुची पुजा, गुरुस माळ वाहोनिया॥
तसेच जागि वागणे, जरिहि प्राण जाई क्षणा।
पुजा गुरुचि होतसे, वचनि त्याचिये भावना॥
यानि गुरु के प्रति श्रद्धा को पूजाअर्चना कर प्रदर्शित करने की बजाए यदि उनके विचारों एवं ज्ञान के आचरण को अपने दैनंदिन जीवन में स्थान दिया जाए, तो वह सही मायनों में नित्य गुरु पूजा साबित होगी.
उल्लेखनीय है कि, भारत वर्ष में हजारों वर्षों से गुरु-शिष्य परंपरा चली आ रही है. जिसे ध्यान में रखते हुए राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने कहा था कि, गुरु जैसा दैवत नहीं पूरे त्रिभुवन में. जिसका सीधा अर्थ है कि, हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु को दैवत का रुप दिया गया है, जो पूरे त्रिभुवन में सवश्रेष्ठ है. गुरु पूर्णिमा के निमित्त गुरु के आदर को अपनी आंखों के सामने रखकर अदृष्य शक्ति के तादाद में साधते हुए उसके शब्दों पर विश्वास रख अपना कार्य करना ही असल गुरुभक्ति है.
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के मुताबिक केवल गुरु का स्मरण कर ताली बजाते बैठना किसी भी तरह की गुरुभक्ति नहीं है. प्रयत्नों के बिना फल मिलने की कल्पना राष्ट्रसंत को कभी भी मान्य नहीं थी, बल्कि गुरु के ज्ञान का उपयोग कर कर्मवादी होना ही असल गुरुभक्ति है, ऐसा राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का स्पष्ट मानना रहा. ग्रामगीता में राष्ट्रसंत कहते है कि, गुरु के बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं, यानि गुरु तत्व ही सर्वश्रेष्ठ है. यही वजह है कि, भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा को सबसे पवित्र पर्व माना जाता है, ऐसी जानकारी श्रीगुरुदेव सेवाश्रम के अध्यात्म विभाग प्रमुख डॉ. राजाराम बोथे द्वारा दी गई.
* गुरुभक्ति के आद्य देव यानि श्रीगुरुदेव
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने भारतीय समाज के समक्ष गुरुभक्ति के आद्य देव के तौर पर श्रीगुरुदेव को रखा, जिन्हें सभी जाति, धर्म व पंथ में श्रेष्ठ माना गया है. साथ ही उन्होंने अपने आश्रम का नाम भी गुरुकुंज आश्रम रखा, यह श्रीगुरुदेव के श्रेष्ठतम आदर्श, शुद्ध ज्ञानमय व सद्बोध देनेवाली निरपेक्ष शक्ति का उदाहरण है. जिसे राष्ट्रसंत ने अपने भजनों व भाषणों के जरिए समाज के समक्ष उपस्थित किया.

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