चांदूर बाजार तहसील में इस बार संतरा बागान कटाई का दौर शुरु

लागत खर्च बढने से पेडों पर कुल्हाडी चलाने किसान विवश

चांदूर बाजार/दि.13 -एक समय रंगतदार और मीठास से ओतप्रेत रहने वाले नागपुरी संतरा आज विदर्भ की पहचान के बजाय पीडा का प्रतीक बनता जा रहा है. चांदूर बाजार तहसील जिसे किसी समय में सुवर्ण संतरा पट्टा के रूप में सम्मान के साथ पहचाना जा रहा था, वहां आज की स्थिति इतनी बिकट हो गई है कि, किसान खुद के सपनों की तरह उनके संतरा बगीचों का अंत करने विवश हो गए है. गांव-गांव में पेडों क कटाई का दौर चल रहा है, संतरा बगीचे खडे होने पर भी इसके पीछे खडे रहने की ताकत किसानों के पास बची नहीं.
संतरा उत्पादन खर्च में भारी बढोतरी, मजदूरी के दर, खाद-औषधियों की कीमतों में वृद्धि, सिंचाई की समस्या, अनियमित बारिश, ओलावृष्टि और सूखे की मार के कारण संतरे का उत्पादन घटा. उसमें ही बाजारभाव में भारी गिरावट से संतरा उत्पादक आर्थिक संकट में आ गए. पिछले कुछ वर्षों से संतरा फसल को उचित दाम नहीं मिल रहे. उत्पादन पर भारी खर्च करने के बादभी कुछ हाथ नहीं लग रहा.
* कर्ज का बढ रहा बोझ
कई किसानों ने बगीचों की अच्छे से देखभाल करने के लिए बैंकों से कर्ज, सहकारी संस्थाओं का कर्ज, साहूकारों से उधार लिया. हालांकि, संतरे का मार्केट नहीं मिला, और ना ही उचित दाम मिला. जिसके कारण किसानों पर कर्ज का बोझ बढता गया.
* संतरा संशोधन केंद्र का इंतजार
जिले में संतरा संशोधन केंद्र की कृषि विभाग व किसानों द्वारा सरकार से कई बार मांग की जा रही है. संतरा उत्पादक किसानों के लिए विशेष पैकेज घोषित किया जाए, गारंटी मूल्य दें, निर्यात प्रोत्साहन दिया जाए और रोग नियंत्रण के लिए प्रभावी मार्गदर्शन दिया जाए, यह मांगे की जा रही है. हालांकि, मिलने वाला प्रतिसाद कम रहने से किसान चिंता में आ गए है.
* प्रादेशिक पहचान इतिहास में
विदर्भ में नागपुरी संतरा यह केवल फल नहीं, तो इस प्रदेश की पहचान, अभिमान और हजारों परिवारों की आजीविका जरिया था. किंतु नागपुरी संतरा नामशेष हो रहा है. यदि ऐसी ही स्थिति रही तो कुछ वर्षों में संतरा बगीचों का अस्तित्व इतिहास तक ही सीमित रहने का डर सता रहा है. संतरा बगीचों को बचाने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
* बोझ लग रहे पेड
पूरी तरह से विकसित संतरा बगीचे की सालभर देखभाल के लिए काफी खर्च होता है. खर्च की अपेक्षा बिक्रीभाव शून्य हो है. पेडों का अस्तित्व किसानों को बोझ लगने लगा है. ऐसी स्थिति में अनेक किसानों ने पेडों की कटाई करने का कठोर निर्णय लिया है. कई गांवों में सैकडों संतरा पेड की कटाई हो रही है. कृषि भूमि पर या बगीचों के स्थान पर खाली जगह दिखने लगी है. कुछ किसान सोयाबीन-चना फसल की ओर मुड रहे है. व्यापारी भी संतरा खरीदी से हाथ झटकते दिख रहे है.

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