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केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली से ७४ फीसदी जनता खुश

राष्ट्रीयस्तर के सर्वेक्षण में सामने आयी रिपोर्ट

नई दिल्ली/दि.१०- ग्रामीण भारत की बड़ी आबादी देश में कोविड-19 महामारी से लडऩे के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य सरकारों द्वारा उठाये गये कदमों से संतुष्ट है. एक राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण में यह खुलासा किया गया है. ग्रामीण भारत में किये गये राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का समर्थन करने वालों में से 37 प्रतिशत ने कहा कि वे सरकार के काम से ‘बहुत संतुष्ट हैं. जबकि 37 प्रतिशत ने कहा कि वे केंद्र सरकार के कामकाज से ‘कुछ हद तक संतुष्ट हैं. कुल मिलाकर 74 प्रतिशत लोगों ने केंद्र सरकार के कामकाज से संतोष जताया.

सर्वे के अनुसार, 78 प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि वे अपनी-अपनी राज्य सरकारों के कामकाज से भी संतुष्ट हैं. सोमवार को सर्वे रिपोर्ट जारी की और बताया कि 30 मई से 16 जुलाई, 2020 के बीच हुए इस सर्वे में कुल 25,371 प्रतिभागियों का साक्षात्कार किया गया. जिसके अनुसार सभी प्रतिभागी अपने अपने घरों के प्रमुख कमाने वाले थे, इस तरह यह सर्वे पुरुष प्रधान रहा और लगभग 80 प्रतिशत उत्तरदाता पुरूष ही रहे. हालांकि इसमें 20 फीसदी महिलाओं ने भी हिस्सा लिया.
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) में लोकनीति-सीएसडीएस की टीम ने सर्वेक्षण की रूपरेखा तैयार की और इसका विश्लेषण किया. सर्वे में शामिल 14 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि वे मोदी सरकार से ‘कुछ हद तक असंतुष्ट हैं, जबकि सिर्फ 7 फीसदी ने कहा कि वे सरकार के उपायों से ”बहुत ही अधिक असंतुष्ट हैं.

सर्वे के अनुसार, दस में से सात लोगों (73 प्रतिशत) ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार का प्रवासी मजदूरों के प्रति रवैया अच्छा रहा. इनमें से 29 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि सरकार का रवैया ‘बहुत अच्छा रहा, वहीं 44 प्रतिशत ने कहा रवैया ‘अच्छा रहा. सर्वे के अनुसार सिर्फ 23 फीसदी या हर चार में से एक प्रतिभागी ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की व्यवस्था खराब थी, जिसमें से 9 फीसदी ने बहुत खराब और 14 फीसदी ने इसे खराब कहा. इसमें 40 फीसद लोगों ने कहा कि लॉकडाउन ‘बहुत कठोर था, जबकि 38 प्रतिशत ने कहा कि यह ‘जरूरत के हिसाब से कठोर था. वहीं 11 प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि लॉकडाउन को और कठोर होना चाहिए था. जबकि केवल 4 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्होंने कहा कि लॉकडाउन बिल्कुल नहीं होना चाहिए था.

सर्वे में राज्य सरकारों के बारे में भी लोगों की धारणा काफी सकारात्मक रही. 76 प्रतिशत लोगों ने कहा कि राज्य सरकार का प्रवासियों के प्रति रवैया काफी अच्छा रहा, जबकि केवल 20 प्रतिशत ने इसे बुरा बताया.
इसमें कहा गया कि जिन लोगों के पास राशन कार्ड थे, उनमें से 71 फीसदी लोगों को लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा निर्धारित राशन (गेंहू या चावल) मिला। सर्वे के दौरान 17 फीसदी लोग ऐसे मिले जिनके पास राशन कार्ड नहीं था और ऐसे राशन कार्ड विहीन लोगों में से सिर्फ 27 फीसदी लोगों को ही राशन मिल सका. सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान 23 फीसदी प्रवासी मजदूर ऐसे रहे, जिन्होंने पैदल ही शहर से अपने घर-गांव की यात्रा की. वहीं 33 फीसदी प्रवासी मजदूरों ने कहा कि वे रोजगार के लिए फिर से शहरों की तरफ वापस जाना चाहते हैं. इसमें निष्कर्ष सामने आया कि लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित कुशल कामगार और अकुशल मजदूर रहे. 60 फीसदी कुशल कारीगरों का काम पूरी तरह ठप रहा, जबकि 64 फीसदी अकुशल मजदूर भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए और उनका काम पूरी तरह से ठप हो गया.
लॉकडाउन से गरीब और मिडिल क्लास सबसे ज्यादा प्रभावित
सर्वे कहता है कि सबसे अधिक गरीब प्रभावित हुए. 75 फीसदी गरीब परिवारों और 74 फीसदी निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की मासिक आय में गिरावट दर्ज होने की बात सामने आई. जिन राज्यों में सर्वे किया गया उनमें राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं. वहीं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर, लद्दाख तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भी इसमें शामिल रहे.

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