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100 वर्ष में अनाज के 90 प्रतिशत प्रकार गायब

एफएओ की जानकारी *अन्न विविधता संपुष्ट में आना धोखादायक

* स्थानीयों की जगह ली विदेशी फसलों ने
नई दिल्ली/दि.26- 100 वर्ष में अनाज के करीबन 90 प्रतिशत प्रकार गायब हुए हैं. इसमें चावल, तिल्ली, दाल एवं अंकुरित अनाज का समावेश है. इससे अधिक चिंता की बात यह है कि अपने खाद्य में फिलहाल जिस अनाज का समावेश है. इनमें से एक तृतीयांश अनाज के प्रकार 2050 तक संपुष्ट में आएंगे, ऐसी धक्कादायक जानकारी अन्न व कृषि संगठना ने दी.
अनाज के प्रकार संपुष्ट में आने से कृषि जैवविविधता धोखे में आ गई है. फिलहाल जो अनाज अस्तित्व में है, उनमें चावल, गेहूं एवं मक्का समान प्रकार विश्वभर के लोगों का पेट भर रहे हैं. अधिक से अधिक उत्पादन लेने के प्रयास में अनाज में कितना बदल हुआ, उसका कितना हाइब्रेड तैयार हुआ. जिसके चलते बड़े पैमाने पर दिखाई देने पर उसमें का पोषण मूल्य घटा है.
अंकुरित अनाज के अनेक प्रकारों की बजाय लोग लंबा चावल एवं बारिक गेहूं का इस्तेमाल करने लगे हैं. पिज्जा एवं बर्गर के समान ही यह एक प्रकार की एकरुपता है. विश्वभर के किसी भी देश के आऊटलेट में जाने पर पिज्जा एवं बर्गर का स्वाद एक समान ही होता है. यही प्रकार फसलों के साथ भी हुआ. स्थानिक अंकुरित अनाज, साग-सब्जी गायब हुए और रंगीन पत्ता गोभी, संकरित ककड़ी ने उनकी जगह ली है.
देश से क्या गायब हो रहा है?
– कर्नाटक की मोट तेदी से संपुष्ट में आ रही है. उसके स्थान पर तुअर की दाल की फसल ली जा रही है. छत्तीसगढ़ का कर्हानी यह काला चावल गायब हो रहा है. इसकी बजाय सरकार हाइब्रिड चावल पर जोर दे रही है.
– दंतेवाड़ा का महेर धान नाम का काला चावल गायब हो रहा है. इसका स्थान हाइब्रिड चावल नेे लिया है.
– ओडिसा में अलसी एवं बाजरी के अनेक प्रकार मिलते थे, वह तेजी से गायब हो गए. उनकी जगह हल्दी व अनानस के उत्पादन ने ली है.
– मेघालय में लाल एवं थोड़ा चिकट चावल होता था. उसकी जगह हायब्रिड ने ली है.

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